Saturday, December 22, 2018

चुप्पी क्यों ???

पापा ये लड़की रोड में ऐसे क्यों घूम रही है ?? आशी ने  बड़ी ही विनम्रता एवं मासूमियत से सड़क में एक घूमती लड़की को देखकर कहा । आशीष जी के पास उस सवाल का जवाब तो था पर शायद वो अपनी बेटी को बताना नहीं चाहते थे सो बात घूमाकर कहे बेटा हम आइसक्रीम खाने आए है न बताओ आप कौन-सी वाली खाओगी ? शायद आशीष जी आशी को समाज के उस पहलू से अवगत नही कराना चाहते थे जिसकी वो जिज्ञासु थी । पापा उस लड़की के कपड़े क्यों फटे हैं ? उसकी मम्मी ने उसकी चोटी क्यों नहीं बनाई , उसके बाल तो कितने लम्बे हैं । बेटा मैं आपसे आइसक्रीम के लिए पूछ रहा हूँ न । और मैं आपसे उस लड़की के बारें में पूछ रही हूँ न पापा । आप चुप क्यों हो ? बताओ न ।
                  छ: साल की आशी ने आशीष जी के सामने एक ऐसा आईना रख दिया जिसमें वह खुद से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे । और इसी आईने को देखने की जरुरत इस समाज को है। हमारे सामने ही रोजाना कितना कुछ घटित हो जाता है और हम चुपचाप बस देखते रह जाते हैं । जहाँ कोई पीडि़त इस समाज से जिस समय उसकी मदद की अपेक्षा रखता है , उसी समय समाज उसका तमाशा बना खुद तमाशबीन बन सब देखकर चुप रह जाता है। क्या समाज का यह दायित्व नहीं बनता की वह अपनी चुप्पी तोड़ मानवता की एक नई बुनियाद खडी़ करें ?
                            ......रूचि तिवारी
नोट : यह  विचार लेखिका के निजी है।

Thursday, December 20, 2018

जिंदगी : ??????

खुद में जो खो जाऊँ
तो सोचने को बहुत है,
सितारों में जो सिमट जाऊँ
तो खोने को बहुत है ।
है अलहदा जिंदगी तू बहुत
तूझमें जो डूब जाऊँ तो
जीने को दिन कम
और करने को काम बहुत है।
सोचती हूँ एक शाम ढूँढ लूँ
तेरे दिए गए सिरदर्द के लिए बाम ले लूँ
छोड़ इन सब कहानियों को
दूर जा तुझ संग एक जाम ले लूँ ।
चल एक सिक्का उछालते हैं
एक पहलू पर तू दूजे पर मुझे बैठाते है
ओ खुशनुमा जिंदगी ,
तू मुझसे शिकायतें करना , मैं तुझसे करूँगी
हँसने की वजह हो या न सही ,
चल एक दूसरे पर हम खुद ही बेवजह मुस्कराते हैं ।
                                 .............रूचि तिवारी

Saturday, December 15, 2018

ऐ उन्नति ...

इस तरह तेरा ऐतबार किया ,
खुद से भी ज्यादा उसने तुझे प्यार किया
निकली बस दो पल की खुशी
ऐ उन्नति ! तूने उससे ही ऐतराज़ किया ।
पिरो तूझे ख्वाहिशों में ,
थी उसने एक माला बुनी
एक एक मोती दर मोती
गढ़ी थी उसने कई बातें अनकही ।
मशक्कत कर रही थी उसकी कलाई
तू उसके संग थोड़ा वक्त भी न बिताई
देख अपना खुद का यह आलम ,
अपनों संग अच्छे से उसने खुशियाँ भी न मनाई ।
तेरा अलग ही रौब है
तुझको खोने का सबको खौफ है
तेरे लिए सभी क्या-क्या नहीं हैं करते
ऐ उन्नति ! देख , तेरे लिए सब कितना है लड़ते ।
                           ...............रुचि तिवारी

Friday, December 14, 2018

देखो , मेरा शहर स्मार्टनेस की राह में

जबलपुर को स्मार्ट सिटी बनाने में म्यूनिसिपल काॅरपोरेशन (नगर निगम) जी तोड़ मेहनत कर रहा है , कभी ये सिर्फ़ सुनने में जनता को मिलता था । पर अब सभी शहरवासी गर्व महसूस कर रहें हैं क्योंकि अब उन्हें शहर का नया स्वरुप नज़र आ रहा है।
                      शहर में कुछ दिनों पहले जहाँ स्ट्रीट आर्ट फेस्टिवल मनाया गया वहीं 12~13 दिसंबर से शहरवासियों को हैक्सी साईकिल शेयरिंग स्कीम भी मुहैया होने लगी है ।

                     स्ट्रीट  आर्ट फेस्टिवल
स्ट्रीट आर्ट फेस्टिवल के तहत जहाँ लोक कला को बढा़वा दिया गया उसी के साथ-साथ शहर को संस्कृति के रंग में रंग दिया गया । शहरी कलाकारों नें दीवारों पर कलाकृति ऊकेर शहर की सुंदरता में चार चाँद लगाए ।
दीवारों में लिखे सामाजिक संदेश जागरूकता फैलाने में एक अहम मदद कर रहें हैं । इस आर्ट फेस्टिवल की खास बात यह रही कि चित्रकारी शहरी कलाकारों एवं कला निकेतन काॅलेज के फाइन आर्टस के विद्यार्थियों ने किया । जिसके माध्यम से सभी कलाकारों को शहर में ही एक अच्छा मंच तो मिला ही साथ-साथ उन्हें अपने शहर के विकास कार्यों में योगदान देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ । स्ट्रीट आर्ट मुहिम के तहत शहरवासियों को शहर का नया सौंदर्यीकरण और जागरूकता का नया माध्यम काफी पसंद आ रहा है एवं  ऐसा मानना है कि स्वाभाविक तौर से मनोवैज्ञानिक और मानसिक  असर  होंगें ।
                          हैक्सी साईकिल शेयरिंग
नवंबर में हुए स्ट्रीट आर्ट फेस्ट के बाद दिसंबर में शुरु हुई हैक्सी साईकिल शेयरिंग व्यवस्था नें जबलपुर स्मार्ट सिटी को एक नए मुकाम पर पहुँचाया है।12~13 दिसंबर से शुरु हुई यह व्यवस्था नगर निगम का एक ऐसा कदम है जो कि न सिर्फ़ स्वच्छ भारत अभियान को पूरा करेगी वरन् स्वस्थ भारत का भी निमार्ण करेगी । इस व्यवस्था के तहत शहर में प्रमुख स्थानों पर डाॅकिंग स्टेशन बनाए गए हैं जिनको सरल शब्दों में साईकिल स्टैंड कह सकते हैं । इन स्टेशनों में साईकिल उपलब्ध रहेंगी जिनमें GPS प्रणाली का उपयोग किया गया है। कोई भी व्यक्ति डाॅकिंग स्टेशन से न्यूनतम कीमत पर साईकिल का आधे घंटे के लिए उपयोग कर सकता है और आधे घंटे पूरा होने पर रिन्यू करके आगे ले जा सकता है। खास बात यह है कि जरुरी नहीं की आपने जिस स्टेशन से साईकिल ली थी फिर वहीं रखने जाएं।आप इसे अपने कार्यस्थल के नजदीकी स्टेशन पर रख दें।ध्यान देने वाली बात यह है कि इसका उपयोग करने से पहले आपको अपना रजिस्ट्रेशन एप के माध्यम से करना होगा । आप अपनी सुविधानुसार इसका भुगतान महीने या या दैनिक उपयोगनुसार कर सकते हैं ।
नगर निगम की इस पहल में एक और कार्य हो रहा है ग्रीन काॅरिडोर का और फुटपाथ एवं सड़कों के किनारों के सौंदर्यीकरण का । ऐसी व्यवस्थाएं एक ओर जहाँ पर्यावरण संरक्षण , सुलभ परिवहन में मददगार साबित होंगीं वहीं शहरवासियों को स्वस्थ माहौल मिलेगा । प्रदूषण से जहाँ निजात पाने में हमारे कदम बढे़गें वहाँ शहर को टूरिज्म में बढा़वा देने का मौका । एक तरफ हम हमारे शहर के सौंदर्यीकरण का गर्व से बखान करेंगे वहीं दूसरी तरफ टूरिस्टों की नज़रें इस रंगीन शहर में रुकने को ऐतबार करेंगी ।
                           _ रुचि तिवारी
                                    (नागरिक पत्रकार)
#smart city Jabalpur
#citizen journalism
                                    
picture : Abhishek Patel

Wednesday, December 5, 2018

करते हैं लोग

अच्छाई का मोह दिखा
मन में कपट रखते हैं लोग ,
सच्चाई का रुप दिखा
सबसे फरेब करते हैं लोग ।
सेवा का भाव दिखा
महान बनने की कोशिश करते हैं लोग ,
सिर्फ़ ज़माने से ही नहीं बल्कि
खुद से भी दिन रात झूठ बोलते हैं  लोग ।
झूठे सपने वादे कर
उम्मीद जगाते हैं लोग ,
खुद की कमियां पूरी करते नहीं
दूसरों की अनगिनत गिनाते हैं लोग ।
मदद की आड़ दिखा
स्वार्थ खोजते है लोग ,
दूसरों की वस्तुओं में
अपना लोभ पूरा करते हैं लोग ।
कहने को हर कार्य में ' रुचि ' रखते हैं लोग
अंदर ही अंदर थमने की तलाश में रहते हैं लोग ,
हर किसी के मुँह पर वाह वाह और
पीठ पीछे बुराई करते हैं लोग ।
दिखाने को पवित्र बनते हैं लोग
और हर काम विशुद्ध करते हैं लोग ,
ज़माने की भलाई चाहते हैं
और ज़माने से ही जंग करते हैं लोग ।
                                   _ रूचि तिवारी

Monday, December 3, 2018

ऐसी नारी है वो

जो नहीं चाहती वो
ऐसा काम मत करना
जो कर दे वो तुम्हें हैरान
तो उसे सरेआम बदनाम मत करना ।
कशिश में है बँधी उसकी वो खामोशी
फौलाद है वो नही कोई चिंगारी
हो जाती है जो वो थोडे़ में मुत्मइन
खुद की खुशी से ज्यादा तुम्हारी खुशी है उसे प्यारी ।
बेअसर नहीं कोई करतूत तुम्हारी
हर नज़रें उसकी हर एक हरकत पे तुम्हारी
नज़रअंदाज़ करती नही फितरत है ये उसकी , नही कोई बीमारी
हर एक काम मे जरुरी तो नहीं वास्ता ऐ यारी ।
जो इंकार कर दे वो एक मुलाकात से
साबित नही होती उससे वफादारी
खैर , ऐसी नहीं है ' रूचि ' ,
अपनी शर्तों की जीवनी ही है उसकी कहानी ।
कसक लिए चलती है वो
फिर भी बरकरार रखती है हर कार्य को
दबाएँ इच्छाएं जरुरतें देखती है वो
हाँ , क्योंकि चंद लफ्जों में जो बयां न हो ऐसी नारी है वो ।
                                  _   रूचि तिवारी

Thursday, November 29, 2018

काफी दिनों बाद!

काफी दिनों बाद
आज तुम्हें यूँ देखा ,
औरों की परवाह छोड़
खुद में मगरुर देखा ।
छोड़ अपनी ख्वाहिशें
जो तुमने हमें देखा ,
कई अरसे बाद 
तुम्हें यूँ खुश देखा ।
गुलाबी शाम में तुम्हें मुस्कराते देखा
हौले-हौले तुम्हें तुमसे मिलता देखा
हाँ , तुम्हारी चमक को आज फिर परखा
गुज़रे कई महीनें , सालों बाद तुम्हारा ये अंदाज़ देखा ।
बरसों बाद तेरे आँचल से फिर लिपटा
लम्बे अरसे बाद बचपन को समेटा
इस कदर तुझे चहकता देखा
तेरा बदन आज फिर झूमते देखा ।
तेरे फैसले पर तुझे मगरुर देखा
आज तुझे न मजबूर देखा
गुरुर रखना अपनी ' रुचि ' पर
क्योंकि आज तेरी एक और जुस्तजू को देखा ।
                                   _ रुचि तिवारी

Thursday, November 22, 2018

हैरान मत होना

जो कभी मुझे गुनगुनाते सुन लेना
तो हैरान मत होना ,
जो कभी मुझे थोडा़ शांत देख लेना
तो परेशान मत होना ।
जो कभी मैं कहीं मगरुर दिख जाऊँ
तो हैरान मत होना ,
सुन ली होगी अपने मन की
बस इतना समझ लेना ।
जो कभी अचानक चहचहा उठूँ
तो हैरान मत होना ,
आज खुलकर मेरा रूप दिखा
बस इतना जान समझ लेना ।
जो कभी थोडा़ शांत नज़र आऊँ
तो परेशान मत होना,
कौंध दिया होगा कुछ मुझे
बस इतना समझ लेना ।
अगर दिख जाऊँ गुनगुनाती
तो हैरान मत होना ,
होंगी बिखेरी खुशियाँ
बस इतना समझ लेना ।
जो मैं अडियल हो जाऊँ कभी
तो हैरान मत होना ,
हलचल है मेरे अंदर
कुछ कर गुज़रने की
बस इतना समझ लेना।
                                             _ रुचि तिवारी

Wednesday, November 21, 2018

विचार मैं ऊकेरने चला

नमस्कार ! मैं कलम ,
यूँ शोभा बढा़ए दुकान की चमचमा रही थी
एक बाबू आए जिनकी निगाहें कुछ तलाश रहीं थी
तमतमा उठी हथेली और निराशा जाग रही थी
क्योंकि उन्हें मनमुताबिक कलम पसंद आ न रही थी ।
कुछ नयन इस तरह फिरे
और जा मुझपर टिके
उनके हाथ मुझपर आ गिरे
फिर करने लगे मोलभाव मुझे लिए ।
यूँ बेबाकी से मुझे चलाने लगे
अपने विचार कागज़ पर उतारने लगे
शब्दों का भंडार इतना गहरा नहीं
बस अपनी अभिरुचि को बरसाने लगे ।
पूछ पडे़ एक महाशय ,
क्या अंतर और लहजा़ भी है पता ?
तू कैसे यूँ ही लिखने लगा ?
जा पहले थोडा़ सीख पढ़ आ ।
मेरी ओर निहार नज़रें चमचमाई
खिली हुई मुस्कान मुझे समझ न आई
चला कुछ ऐसा सिलसिला
क्योंकि अब था उन्होंने कहा
न मुझे बनना महान तुम्हारे जैसा
न रूतबा न रौब कभी मैंने चाहा
एक रुचि है मेरी इस कलम के लिए
सो अपने विचार मैं ऊकेरने चला।
                                              रुचि तिवारी

Wednesday, November 14, 2018

शुक्रिया दीपावली

ओ दीपावली ! तुमको शुक्रिया ।
तुमने दिल उमंग से भर दिया ।
रोशनी थी जो दीयों ने दिया
उनसे सबका घर जगमग जगमग किया।
झिलमिल झिलमिल लडी़ जली
भीनि सी खुशबु उडी़
आपस की आना कानी जली
खुशियों की एक लहर चली।
सूखे रिश्तों में महक पडी़
पास हुई मिठास जो थी कहीं दूर खड़ी
इन गूँजते मकानों में
ठहाकों की फिर आवाज खिली।
छूट गई थी यादें जो वो
सबके मिलने से ताजा हुई
कुछ पुराने किस्सों की
अलबेली ही शुरूआत हुई
मिलना सबका कुछ यूँ हुआ
रिश्तों में गहराई का खुदा कुआं
यूँ थोड़ी फुरसत अपनो को दी
खुद के भीतर ही एक रोशनी कर दी।
वो जगमग जलता दीपक
एक पाठ सीखा गया
छोटी सी है वो लौ
दूर करती है पूरे अँधेरे को वो ।
उन खट्टास को छोड़ मीठा तुम घोल गई
साल भर के लिए फिर बेशकीमती याद  दे गई ।
मिला दी एक बार फिर सबको
अब तो फुरसुत ही कहा है अपनो को ।
शुक्रिया दीपावली ! एक नई आस जगाने को।
शुक्रिया दीपावली  ! हम सबको मिलाने को ।
शुक्रिया दीपावली ! चहुँओर रोशनी जगमगाने को ।
शुक्रिया दीपावली ! खुशियाँ फैलाने को।
               
                                            _ रूचि तिवारी

Tuesday, November 13, 2018

मतदान

छत पर बैठी सोच रही थी
नीचे से एक गूँज उठी थी
एक रिक्शा गाना बजाए
चला हर राह को अपना बनाए।
ध्यान उसने कुछ ऐसा खींचा
कानों को सबके उसने पीटा
नियमों को था उसने मींजा
बच्चें बूढ़ों सभी को घसीटा ।
सुनकर मुझको पता चला
अब तुमको है करना मतदान भला
जिम्मा और ये है अधिकार
व्यर्थ न जाने दो इसे यार ।
अगले दिन अखबार पढा
जिसमें था मतदान को गढा़
दिखे कई मुझे विज्ञापन
दर्शा रहे थे जो अपनापन ।
प्रसारों ने क्या किया बताया
प्रचारों ने क्या करना है समझाया
मुझको तो यही भाया
मतदान सबसे जरुरी यह समझ आया।
अब बस है इतना कहना _
चलो करें मतदान राष्ट्र निर्माण में अपना भी हो योगदान|
एक वोट से देश बदल जाएगा सही चयन से परिवेश बदल जाएगा|
शिक्षा हो या स्वास्थ,  सब कुछ मिलेगा ,तुम्हारी एक उंगली से देश का विकास रूपी पहिआ  भी चलेगा|
परंतु यह संभव तभी होगा जब तुम्हारा वोट  सही होगा|
कुछ लोग तुम्हें झूठे सपने दिखाएंगे धन का लालच देंगे और शराब भी पिलाएंगे
इस भंवर से बच गए तो धर्म जाति के नाम पर भटकाएंगे|
प्रण लेते हैं न डरेंगे न बटेंगे न वोट का सौदा होगा
अब तो सही चुनाव और लोकतंत्र का महल खड़ा होगा|
                                  _ रुचि तिवारी

Sunday, November 11, 2018

मैं हिंदी

   नमस्कार ! मैं हिंदी ,
          जो उस दिन गद्य के रुप में
          सबके समक्ष प्रकट हो गई ,
          कह दिया मुझे ,
          थोडे़ साहित्यिक सुंदर शब्द मिला लेना
          जो उसके बाद एक दिन काव्य रूप में
          सबके सामने आ गई ,
          तो उर्दू में जा मिलने का फरमान दे दिया
          जो शायरी , गजलों में आ गई
          उर्दू फारसी में खो सी गई ,
          मंत्रों के उच्चारण अर्थ में
          संस्कृत सी मैं हो गई
           एक सफर मैं कर रही
           कितनों से मिलते हुए
           खुद का वजूद तलाश रही
           थोडा़ सिमटे , थोडा़ घुलते मिलते हुए ।
                                              _ रूचि तिवारी
           

Tuesday, November 6, 2018

आज नहीं ' अभी ' में जीते हैं

दृश्य 1 : एक जनरल किराना स्टोर , यूँ तो मैं भाई के साथ खड़ी थी और गोलू के खटाखट सामान निकलने की तरकीब गौर कर रही थी तभी वहाँ 3 साल की रूही आई । रूही को मैं जानती नहीं थी । वह अपने दादा जी के साथ आई थी। हम भी खरीददारी कर ही रहे थे । रूही की पायल की छनक ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा । सफेद रंग की प्यारी-सी फ्रॉक में वह खिलखिलाता हुआ चेहरा और चमकदार बदन में वह किसी असली परी को हराकर अपना ही नूर बरसा रही थी । दुकान में प्रवेश उसने जिस खिलखिलाहट से थी उससे तो वहाँ का पूरा समां ही बंध गया था। दादा जी भी सामान की पर्ची गोलू को थमा स्नैक्स काॅर्नर गये और वहाँ पर रूही के बोलते ही " बब्बा ये वाला ये वाला " करते वो सारे पैकेट उठाते गये जबतक रूही ने चुप होकर राहत भरी साँस नहीं ले ली । तब तक गोलू भी दादा जी का पूरा सामान लगभग पैक कर ही चुका था ।   वो सारे पैकेट्स गोलू को दिए और अलग बैग में रखने को कहा । वह अलग बैग उन्होंने रूही को पकड़ाया । बैग पकड़ते ही रूही के चेहरे की चमक संग उसने जो चाल चलनी शुरू की उसे देख ऐसा लग रहा था मानों रुही को वह पूर्ण संतुष्टी मिल गई हो जो उसे जीवन में चाहिये थी। बैग में इतना कुछ भी नहीं था कि उसे वह दो से तीन दिन तक रख सके । सिर्फ़ चिप्स के तीन या चार पैकेट जिन्हे वह चंद घंटों या ज्यादा से ज्यादा शाम तक में  खत्म कर सकती है ।
दृश्य 2 : मार्केट से वापस लौटने पर घर के पास ही रह रहे 6 वर्षीय सुबोध पर नज़र गई । उसके घर की पुताई का अंतिम ही चरण चल रहा था आज । पुताई वाले अंकल लकड़ी की सीढ़ी पर चढ़े पुताई कर रहे थे। सीढ़ी में नीचे तरफ़ जूट की उलझी हुई-सी रस्सी उसी में बंधी हुई फैली थी जिसमें अचानक वहाँ से आते-जाते कोई भी फँसकर गिर सकता था । सुबोध के पास वैसे तो खिलौने का अंबार है। कोई उसके खिलौने छू भी नही सकता । हाँ , आरती , स्नेहा , परी, आरु , क्षति और शुभ के साथ खेलते वक्त थोडा़ बाँट लेगा पर अगर कभी बिना साहब के मूड के छू लो तो खैरियत खुद की मनानी पड़ती है। खैर , आज सुबोध उन खिलौनों की दुनिया से दूर उस रस्सी को सुलझा रहा था जो किसी "  पज़ल " से कम नहीं  थी। ऊपर बालकनी से आंटी उसे चिल्ला चिल्लाकर मना कर रहीं थी पर वह तो " अभी " में जी रहा था । " अभी " उसके पास खेलने सिर्फ़ वह रस्सी थी । उसने यह नहीं सोचा कि सिर्फ़ आज तक ही उस रस्सी और सीढ़ी का उसके साथ साथ है । इस समय उसे सिर्फ़ वह रस्सी सुलझाना था जो उसके सामने थी मानों जैसे की उसके जीवन का लक्ष्य सिर्फ़ पूर्ण करके हासिल होगा।
             कितनी अनोखी होती है इन मासूमों की दुनिया । न तो कल किससे खेले थे उसकी सुध और न तो कल किससे खेलना है उसकी चिंता । आज क्या करना है क्या नहीं न तो कोई शैड्यूल और न ही टाइम मैनेज कर मीटिंग फिक्स करना ।
         जीना है तो बस उस पल में जो अभी है। क्या है , क्या नहीं है , क्या होना चाहिये कुछ नहीं । जो सामने है बस वही दुनिया है । वह खुद को उस ढाँचे में डाल तुरंत तबदील हो जाते है । हर स्थिति में माकूल हो जाते है। दुनियादारी से परे अपनी दुनिया बसाते है जो सपनों की नहीं हकीकत की होती है , किसी दूसरे लम्हों की नही उसी वक्त की होती है जिसमें वह जी रहे होते है।
सुनते तो हम भी हैं अक्सर कल में नहीं आज में जियो पर फिक्र तो कल की ही सताती है । ये मासूम जिनको आज और कल में फर्क तक नहीं पता वो तो हम सबकी सोच से परे  " अभी " में  जीते हैं।

  •                                                 _ रूचि तिवारी

Sunday, November 4, 2018

फर्क प्राइस टैग का !!!

१ नवंबर को रचनाकार " सुरेश कुशवाहा ' तन्मय ' " जी कि " मानसिकता " नामक लघुकथा पढ़ी । उनकी रचना ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या अब हम वही भारतीय रह गये हैं जिनके लिए देश की माटी , देश के किसान , हमारे स्वदेशी उत्पाद सर्वोपरि थे ? या कहीं बहुत कुछ खो सा गया है ? आप सभी के साथ वह लघुकथा और अपने विचार साझा करने का विचार की और दो दिन बाद सुरेश सर के संपर्क में आकर अपने ब्लाग पर पब्लिश करने की अनुमति ली। खैर , दिवाली को लेकर चल रही तैयारियों की व्यस्तता के चलते थोड़ी देर से आपके समक्ष ला रहीं हूँ ।
लघुकथा इस प्रकार है ~
                         " मानसिकता  "
दीपावली से दो दिन पहले खरीदारी के लिए वो सबसे पहले पटाखा बाजार पहुंचा। अपने एक परिचित की दुकान से चौगुनी कीमत पर एक हजार के पटाखे खरीदे।
फिर वह शॉपिंग सेंटर पहुंचा, यहां मिठाई की सबसे बड़ी दुकान पर जाकर डिब्बे सहित तौली गई हजार रूपये की मिठाई झोले में डाली।
इसके बाद पूजा प्रसाद के लिए लाई-बताशे, फल-फूल और रंगोली आदि खरीदकर शरीर में आई थकान मिटाने के लिए पास के कॉफी हाउस में चला गया।
कुछ देर बाद कॉफी के चालीस रूपये के साथ अलग से बैरे की टीप के दस रूपये प्लेट में रखते हुए बाहर आया और मिट्टी के दीयों की दुकान की ओर बढ़ गया।
“ क्या भाव से दे रहे हो यह दीये ? ”
“ आईये बाबूजी, ले लीजिये, दस रूपये के छह दे रहे हैं ”
“ अरे!  इतने महंगे दीये, जरा ढंग से लगाओ, मिट्टी के दीयों की इतनी कीमत ? ”
“ बाबूजी, बिल्कुल वाजिब दाम में दे रहे हैं। देखो तो, शहर के विस्तार के साथ इनको बनाने की मिट्टी भी आसपास मुश्किल से मिल पाती है। फिर इन्हें बनाने सुखाने में कितनी झंझट है। वैसे भी मोमबत्तियों और बिजली की लड़ियों के चलते आप जैसे अब कम ही लोग दीये खरीदते हैं। ”
“ अच्छा ऐसा करो, दस रूपये के आठ लगा लो ”,
दुकानदार कुछ जवाब दे पाता इससे पहले ही वह पास की दुकान पर चला गया। वहां भी बात नहीं बनी। आखिर तीन चार जगह घूमने के बाद एक दुकान पर मन मुताबिक भाव तय कर वह अपने हाथ से छांट-छांट कर दीये रखने लगा।
“ ये दीये छोटे बड़े क्यों हैं? एक साइज में होना चाहिए सारे दीये ”
“ बाबूजी, ये दीये हम हाथों से बनाते हैं, इनके कोई सांचे नहीं होते इसलिए.... ”
घर जाकर पत्नी के हाथ में सामान का झोला थमाते हुए वह कह रहा था –
“ ये महंगाई पता नहीं कहा जा कर दम लेगी। अब देखों ना, मिट्टी के दीयों के भाव भी आसमान छूने लगे हैं। ”
                                           
                                  _ सुरेश कुशवाहा ' तन्मय '
सबसे पहले गौर करने वाली बात यह है कि रचनाकार ने कितनी खूबसूरत तरीके और चुनिन्दा शब्दों के जरिये इतनी बड़ी बात कह दी । सही ही तो है , अगर वही दीये  किसी दुकान में पैकेट में 80 रु. के 6 प्राइस टैग के साथ बिकते तो बेशक खुशी-खुशी बिना मोल-भाव किए खरीद लेते । क्यों ? क्योंकि उसमें टैग लगा होता एम आर पी (MRP) का । यह बात सिर्फ़ दीयों तक सिमित नहीं । चलिए एक और उदाहरण लेते है , हमारे घर के नजदीकी बाजा़र में बैठे या हमारे घर के दरवाजे तक आने वाले सब्ज़ी या फल वाले भईया का । उनके पास से सब्ज़ी या फल खरीदते वक्त हमारी प्रतिक्रियाएं कुछ इस प्रकार होती हैं ~ अरे भईया ! बहुत मँहगा बता रहे है , सही रेट बताईये । यूँ कुछ 10 ~15 मिनट मोलभाव कर खरीददारी होती है परंतु वही सब्ज़ी या फल हम बिना मोलभाव के माॅल से ले आते है । वह भी उससे मँहगी कीमत पर । वहाँ क्यों नहीं मोलभाव किया जाता ?? कमी सिर्फ़ प्राइस टैग की ही तो है इन लोगों के पास । वस्तु एवं उत्पाद तो वही है ।
एक बात और है कि अब दीपावली पर माटी के दीये कम और मोमबत्तियाँ एवं रंग बिरंगी लाईट प्रचलन में ज्यादा है । स्वदेशी उत्पाद को छोड़ विदेशी के पीछे भागना और परंपरागत तरीकों को रौंदते हुए नए तरीके से त्योहार मनाना एक विचारणीय विषय है ।
               
                                  _ रुचि तिवारी

Tuesday, October 30, 2018

वक्त की आड़

और अब मैं क्या कहूँ
लफ्ज़ ही बेबुनियाद है
एक तो वक्त की आड़ है
दूजा ऊपरवाले की मार है।
पीड़ा तो अंतर्मन की है
जताना ही बेकार है
क्या दे दोगे तुम हल
जो खुद पर इतना इख्तियार है !
ताक रही आँखे हैं
बैठा संग लिए आस है
एक किरण की चाहत है
सुना था अंधियारे के बाद उजियार है ।
आड़ लगा इस वक्त का
देख लिया रुप सबका
खुद को मखमल पर सोने में भी चैन नहीं
और कहते तुम्हारा हाल सुनने की फुरसत नहीं ।
यूँ इसको शांत सरल न समझो
एक चिंगारी ही काफी है पूरी आग के लिए
वक्त की आड़ सिर्फ़ आज है
होना तो कभी ऊपरवाले को भी मेहरबान हैं ।
                            _ रुचि तिवारी

चला एक राही सपने संजोए

चला एक राही सपने संजोए
मन में उमंग और आशा पिरोए
मस्त मगन एक धुन सवार किए
सपनो को हकीकत में बदलने के लिए
चला एक राही सपने संजोए ।
आशा उम्मीदों की आस लिए
बढे़ हैं पग धीमे धीमे साथ ही एक कसक लिए
काबू पाने हौसला भी है संग लिए
डरे भी तो भला किस लिए
चला एक राही सपने संजोए ।
निश्चय कर मुकाम पाने के लिए
बडे़ ही जतन तथा त्याग किए
बैठा है कितनी मुरादें लिए
अडिग रहने का संकल्प लिए
चला एक राही सपने संजोए ।
                              _ रूचि तिवारी

Sunday, October 28, 2018

अभी नवरात्रि को बीते सिर्फ़ .....

26 अक्टूबर 2018 तक नवरात्रि को बीते सिर्फ़ 7 दिन ही हुए थे । फिर भी नवरात्रि का उमंग लोगों में भरा हुआ है । 27 अक्टूबर 2018 को खबर आई कि शहडोल जिला के अमलाई थाना अंतर्गत रूगंठा नर्सरी स्कूल के समीप स्कूल जा रही कक्षा 8वीं की छात्रा के साथ उसी के मोहल्ले के रहवासी युवक ने घिनौनी वारदात को अंजाम दिया ।
अजीब है न , सिर्फ़ 8~10 दिन ही तो हुए हैं । अभी की ही तो बात थी पूरा देश नवरात्रि मना रहा था । हर कोई कन्यापूजन कर रहा था । हर एक युवक , युवतियाँ , बडे़ ~ बूढे़ सभी देवी माँ को प्रसन्न कर रहे थे । सभी बडे़ बडे़ वादे कर रहे थे। हर एक कन्या ~ लड़की को देवी माना जा रहा था । सब कुछ कितना जल्दी बिसर गया । भूला दिया जितनी भी पूजा-अर्चना , हवन किए , जितनी भी रक्षा के लिए कसमें ली थी , जितना खुद को पवित्र दर्शाया था। सच तो यह है कि वो सब सिर्फ़ दिखावा और ढकोसला था ।
यह मामला उजागर हुआ तो पता चल गया । हो सकता है ऐसी कितनी ही वारदातों को अब तक अंजाम दिया जा चुका हो जिनका पता ही न चला हो।
सच कहूँ तो इस बार नवरात्रि के समय में युवा शक्ति द्वारा नवरात्रि में बलात्कार के खिलाफ़ चलाई जा रही मुहिम , सोशल साइट की विभिन्न पोस्ट एवं स्टेट्स को ध्यान में रखते हुए ऐसी ही एक नई खबर के इंतजार में थी । भूल चूक मुझसे भी हुई हो सकती है कि इस घटना के पहले भी कोई खबर आई हो जिस तक मैं न पहुँच पाई हूँ ।
मामले की गहराई तक जाएँ तो पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार यह पता चलता है कि शुक्रवार की सुबह बालिका अपने नियमित समय पर स्कूल जा रही थी।इसी दौरान बालिका के घर के समीप रहने वाले युवक ने आकर बालिका को लिफ्ट देने के बहाने अपनी गाड़ी पर बैठाया । और बालिका को स्कूल न ले जाकर एक सूनसान स्थान पर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया ।
बात अब यहाँ यह खड़ी हो जाती है कि  एक जमाना था जब बच्चों के लिए पूरा मोहल्ला या गाँव उनका घर कहलाता था । और अपने उस मोहल्ले में सुबह से शाम कब हो जाती थी पता ही नहीं चलता था । क्या इन सब में बालिका की गलती मानी जाए ? एक ओर यहाँ भी ध्यान जाता है कि कौन अब विश्वासपात्र है कौन नहीं ? हमेशा तो सीख यही दी जाती है कि अनजान व्यक्ति बुलाए तो पास नहीं जाना , अंजान व्यक्ति कुछ खाने को दे तो खाना नहीं , अंजानो से दूर रहना इत्यादि । पर अब जो ऐसे असमाजिक तत्व पैदा हो रहे है उनका क्या ? उस 13~14 साल की बालिका तो अपने पडो़स के रहने वाले भईया की बातों में आकर स्कूल जल्दी पहुँचने की आस लिये साथ चली गई । और गलती सिर्फ़ इतनी-सी थी कि उसे यह नही सिखाया गया था कि कुछ भी हो अपने सभी कार्यों को तुम स्वयं ही करना ।  कोई पहचान वाला हो या अंजान हो उसके पास या साथ मत आना जाना , एक दिन की किसी की मदद तुम पर ताउम्र उपकार का बोझ बनी रहेगी। जिस तरह रोज़ जाती हो उसी तरह जाना क्योंकि एक दिन का बदलाव बहुत बडा़ बदलाव साबित हो सकता है ।
                      _रुचि तिवारी
नोट : इस घटना पर लेखिका के निजी विचार हैं ।

Monday, October 22, 2018

खैर , सब ठीक है !!!

फुरसत के दो पल निकाल
खुद की यादों में गुम होना
उनको लगता थोडा़ अजीब है
थोडा़ अकेले होकर फिर कहीं गुम होना
और यादों को याद कर थोडा़ दुखी होना
फिर वर्तमान को देख खुद को सम्भाल लेना
और झटके से कहना खैर सब ठीक है ।
फुरसत के चंद लम्हों में
सबको एक तरफ छोड़ देना
और सिर्फ़ खुद की इच्छा को सुन लेना
सुनकर उसी में जी जान से लीन होना
न समय न समाचार न देश दुनिया की सुध रखना
थोडा़ ज्यादा समय देने के चक्कर में
थोडी़ डाँट डपट खाकर रो लेना
और फिर कहना खैर सब ठीक है ।
हजा़रों सवालों से घिरकर भी उनको नज़रअंदाज़ करना
खुद की ख्वाहिश होने पर भी अपने-आप को मना करना
कब तक परवाह की जाए सबकी ,
अगर एक पल ठहर खुद की सुन ली तो
क्यों उसे इतना ' इंटीमेट ' करना ??
दौड़ भाग भरी जिंदगी है
किसको तुम्हारी खैरियत की पडी़ है
खैर , बाकी सब ठीक है !!
                                   _ रूचि तिवारी

Saturday, October 20, 2018

पाबंदी

ये पाबंदी का भी क्या नूर है
लगाने वाला भ्रम में मगरुर है
छाया अलग ही एक फितूर है
झेलने वाला ' बेचारे  ' के नाम से मशहूर है।
साँसों को भी पाबंदी है
कब आना है कब जाना है  उस पर नाकाबंदी है
खाने से भी है इसकी यारी
मिलना न मिलना नसीब है ।
बोलने की जुबां नहीं लफ्ज़ तो पडे़ ढेर है
घूमने की तो सोचना ही फिजूल है
लगा दी पाबंदी रहने, खाने , चलने में
पर सोच तो बढ़ रही है उसी अंधेरे में ।
उम्मीद ही काफी है मुक्ति के लिए
पंख नहीं हौसला चाहिये उड़ने के लिये
एक गूँज उठेगी उस दिन जब
तोड़ ये पाबंदी निकल उडे़गा वो मन ।

Friday, October 19, 2018

तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को

तिल तिल करकर अंदर रोए
तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को
तार तार करदे अंतर्मन को
तरसे वृद्धमन  नि:छल प्रेम को ।
              बूँढी़ आँखे रास्ता ताके
              ढूँढ रहीं उस यौवन को
              जो मगन है मनमौजी में
              और छोड़ दिया इन वृद्धजन को ।
दूर रहकर भेज देते पास इनके धन को
याद जब आती वृद्धजन को निहारते तसवीर को
इस उम्र में खुद ही जाते उस।बाजा़र तरफ को
नज़रअंदाज़ कर देते अपने जोडो़ के दर्द को ।
मंदिर पूजा में लीन होकर दुआ करते एक मिलन को
सपने संजोये रहते मन में तरसे उसके पूरे होने को
पोता पोती से मिलने की रखते मन में  ख्वाहिश को
फोन पर सिर्फ़ बातें सुनते रखते मौन अपने लफ्जों को ।
भोग लेते भौतिक सुख इस्तमाल कर उस धन को
अंदर से रोती है आत्मा अब उनकी एक दर्शन को
कट जाती हैं दिन और राते याद कर उस यौवन के नन्हेपन को
समझकर बोझ उसके ऊपर का भुला देते हैं खुद के गम को ।
तिल तिल करकर अंदर रोए
तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को ........
                       _रूचि तिवारी

Thursday, October 18, 2018

उस संकीर्ण सोच का पतन : एक कोशिश

"अरे ! मिश्रा जी , आपने सुना यादव जी की बेटियाँ तो गजब ही कर रहीं हैं ।"
" अरे ! गोपाल जी अब ऐसा क्या कर दी ? , सच में वकील बन गई क्या बड़ी लड़की ? "
" नहीं नहीं मिश्रा जी , इस बार तो अति की है उनकी छोटी बेटी ने । यादव जी बडे़ गर्व से बता रहे थे कि वो पत्रकारिता की पढा़ई करने जा रही है।  "
" राम राम राम ! सत्यानाश ! सुबह-सुबह से यही खबर सुनाना था आपको । ये यादव जी कुछ ज्यादा ही छूट दे रहें हैं अपनी बेटियों को , लाज शर्म तो बची ही नहीं है।"
" मिश्रा जी , भला आप ही बताओ लड़कियों को वकील , पत्रकार आदि कौन बनाता है । न जाने दिनभर कितने आदमियों से मिलेंगी , कितनो के साथ उठना बैठना करेंगी , कहाँ-कहाँ अकेली जाएँगी  ।"
" हाँ , गोपाल जी , कोर्ट कचहरी भला लड़कियों के जाने  लायक जगह है क्या ? अब वो बगलवाले ठाकुर जी कि बिटिया को ही देख लो । ' सेल्स रिप्रेजेंटेटिव है ।' शर्ट पेंट पहनकर सुबह 10 बजे चली जाती है और रात 9.00 _ 9.30 तक वापस आती है। भला लड़की जात को ये सब शोभा देता है क्या ? "
कितनी अजीब बात है कि आज भी एक ऐसी संकीर्ण सोच का शिकार हमारा समाज है । जहाँ  एक तबका बेटियों के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का रोडा़ लिये खड़ा है।
क्या ऐसी संकीर्ण मानसिकता  एक  विकसित देश का सपना पूरा होने देगी ??
                   ऐसा कौन-सा क्षेत्र है जहाँ  लड़कियों को  लड़कों के साथ कदम सेयकदम मिलाकर नहीं  चलना होगा ? बात सिर्फ़ इतनी सी है कि हमें  अपनी मानसिकता साफ़ कर समाज को उस काबिल  बनाना होगा  जिसमें कोई भी तबका लड़का या लड़की देखकर किसी क्षेत्र का बँटवारा न करे ।
इस नवरात्रि ( दुर्गा विसर्जन ) एवं दशहरा ( दशानन  पतन) करते वक्त एक कोशिश करें  उस संकीर्ण सोच के पतन की जो भेदभाव  को मिटाने  और देश की उन्नति में रोडा़ है।
#happy_navratri
#happy_dushehra
                                             _ रुचि तिवारी
नोट : कहानी में  उपयुक्त पात्र काल्पनिक है एवं विचारों  को प्रकट करने के लिए लेखिका द्वारा माध्यम बनाये गए हैं ।

Tuesday, October 16, 2018

ऐसा क्यों ??

' नवरात्रि ' देवी माँ का त्योहार ।
वो देवी माँ जिनको पूरी दुनिया उनकी अपार शक्ति के लिए याद करती है। घर में माँ ,बहन , बेटियाँ सभी पूजा अर्चना एवं उपवास करती है। साथ-साथ मातारानी से प्राथना करती हैं की माता अपनी शक्ति से हमारे घर की सारी विपदाओं को दूर कर हमारी रक्षा करना ।
     शक्ति का रूप मानी जाने वाली कन्याओं की पूजा भी की जाती है एवं उन्हें भोज भी कराया जाता है। उनमें माता की शक्ति विराजमान है ऐसा माना जाता है ।
तो सवाल यह उठता है कि ~ जबतक वह छोटी  होती है तो उसे शक्ति होने का एहसास कराया  जाता है , उसे  शक्ति का रूप माना जाता है परंतु जब उसकी उम्र वही शक्ति दिखाने कि होने लगती है तो उसे क्यों  दबाया जाता है ??
वह शक्ति है उसे जो़र से बोलने दो पर नहीं अपनी आवाज़ धीमी रखो यह कहा जाता है। वह शक्ति है खुद के  बाहरी काम स्वयं  कर सकती है उसे करने दो पर नहीं तुम अकेली  वह काम कैसे करोगी फलां (कोई पुरुष ) को साथ ले जाओ । वह शक्ति है उसे खुद के विरूद्ध कार्य होने पर बोलने दो पर नहीं तुम ज्यादा बहस मत करो लड़की जैसी रहो कहकर चुप  करा दिया जाता है।
                        ऐसा क्यों ???????
बात सिर्फ़ इतनी है कि जिसके लिए हम माँ जगदंबिका की पूजा अर्चना करते हैं और उन्हें जिसका प्रतीक मानते हैं वह सिर्फ़ उन तक सिमट कर न रह जाए। मूर्तिशक्ति के सामने खड़ी समस्त बेटियों , बहनों और माँ में वही शक्ति उस भक्ति के साथ आ जाए कि जब कोई दुराचारी दुष्कर्म करने की ठाने तब वह शक्ति अपनी शक्ति दिखा खुद का बचाव कर सके , अपने हक के लिए कोई भी लड़की , बहन ,बेटी , पत्नी निडर खड़ी हो सके और घरेलू हिंसा के प्रति हर नारी आवाज़ उठा सके । नारी शक्ति को उसकी असीम शक्ति का एहसास कराएँ ।
              " प्रतीक "को सिर्फ़ चिन्ह न रहने दो
              " शक्ति " को यूँ माटी में न घुलने दो
                पहचान खुद की खुद को करने दो
                चुप्पी तोड़ लफ्जों को बहने दो ।
#women_are_shakti

सिर्फ़ मानवता नहीं जागरूकता भी है लक्ष्य

मानवता की बातें तो हर कोई करता है पर असली इंसान तो वही होता है जो बदलाव का हौसला रख उसे सच बनाता है। कुछ ऐसे ही हौसलेबाज़ है जबलपुर की ह्यूमैनिटी आर्गेनाइजेशन (संस्था ) के युवा सदस्य ।
  हाल ही के बीते रविवार 14 अक्टूबर 2018 को इस युवा पीढ़ी द्वारा की गई नई पहल और उनके हौसले को सलाम । संस्था की अपाराजिता विंग द्वारा #Iamshakti अगुआई में विगत छः महीनों से " सैनिटेरी नैपकिन " के बारे में न सिर्फ़ जागरूकता फैलाई जा रही थी बल्कि ललपुर बस्ती की 40  महिलाओं को मुफ्त बाँटे भी जा रहे थे । परंतु इस रविवार जो हुआ वह बेहद खास और नया था। मानवता का परचम तो लहर ही रहा था पर जब संस्था के सदस्यों को बस्ती की स्वच्छता संबंधी परेशानियों का पता चला तो नई पहल की गई " बायोडिगेर्डेबल सैनिटेरी नैपकिन " उन तक पहुँचाने की। ललपुर बस्ती में नालियों की कमी और डोर टू डोर कचरा कल्केशन गाड़ी न आने की वजह से स्वच्छता की कमी  है । इन समस्याओं को मद्देनज़र रखते हुए युवाओं ने गोवा की एक बायोडिगेर्डेबल सैनिटेरी नैपकिन बेचने वाली " सखी "ब्रांड  के संपर्क में  आए जहाँ से  50रू. में पैकेट को खरीद महिलाओं को 20 रू. में उपलब्ध कराया जा रहा है । उपलब्धता के साथ ही कैसे उपयोग करें , कैसे डिस्पोज़ करें , क्या फायदे है आदि के बारे में बताया जा रहा है एवं जागरूकता फैलाई जा रही है।
              "कुछ कर गुज़र यूँ  थम न तू
                 ले हौसले उडा़न भर तू
                न सिमित रह खुद तक तू
                सोच को दे पंख सच पर अमल कर तू "
        युवाओं की सोच , हौसले और पहल को सलाम।

Monday, October 15, 2018

बस इतनी मेहर.....

ऐ खुदा बस इतनी मेहर कर दे
उसके लबों की वो हँसी मुझे वापस कर दे
झूम जाऊँ फिर एक बार उसे देखकर
बस इतनी है दुआ तुझसे इसे कुबूल कर  ले ।
उन चमकती नज़रों में सिर्फ़ सुनहरे सपने रहने दे
उन लबों पर एक लंबी हँसी रहने दे
चमकने दे उसके चाँद से चेहरे को यूँ ही
मुझे उसे देख मुस्कुराने दे यूँ ही ।
कभी गुमसुम कभी कहीं खोया
यूँ उसका बेचैन होना मुझे रास न आया
उसे मत सिमटने दे खुद में
ऐ खुदा बस इतनी महर कर दे ।
नूर था जो उसने बिखेरा
रहे सदा उसी तरह मस्त मौला
बातें चार की सोलह उसे करने दे
ऐ खुदा बस इतनी सी महर कर दे ।
                                         _ रूचि तिवारी

Saturday, October 13, 2018

फाइनेंस एवं बैंकिंग क्षेत्र की जानी बारिकियाँ

Citizen Journalism , Jabalpur
रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के व्यावसायिक अध्ययन एवं कौशल विकास संस्थान तथा सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड आॅफ इंडिया SEBI के संयुक्त तत्वाधान में आज " फाइनेंशियल ऐजुकेशन (Financial Education) " विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन कौशल विकास विभाग , विज्ञान भवन , रादुविवि में किया गया।
              इस व्याख्यान में छात्र छात्राओं को बैंकिंग एवं फाइनेंस सेक्टर में करियर की संभावनाओं , निवेश के तरीकों , तकनिकी ज्ञान एवं बारिकियों को विस्तारपूर्वक समझाया गया ।
व्याख्यानदाता सेबी के रिसोर्स पर्सन प्रो. आर. सी. जैन तथा सीए सर्जना जैन ने एक ओर जहाँ छात्रों को व्याख्यान और स्टडी मटिरियल उपलब्ध कराया वहीं दूसरी ओर फेस टू फेस इंटरेक्शन ने व्याख्यान को ज्यादा रोमांचक बनाया जहां रिसोर्स पर्सन ने छात्रों से तो सवाल किये ही और तो और उनकी समस्याओं का समाधान भी दिया।छात्रों को एक ओर जहाँ इस क्षेत्र में अपार संभावनाओं से अवगत कराया गया तो वहीं उस मुकाम तक कैसे पहुँचे इसकी विधि भी बताई गई ।
              संस्थान के निदेशक प्रो. सुरेन्द्र सिंह ने छात्रों को बताया कि फाइनेंस ऐजुकेशन सभी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं एवं इसकी सभी भ्रांतियों का समाधान आवश्यक है । कार्यक्रम में मंच संचालन श्रीमती डाॅ. मीनल दुबे ने किया एवं आभार प्रदर्शन डाॅ. अजय मिश्रा ने किया ।

Friday, October 12, 2018

विथ हर : अ स्किल्ड गर्ल फोर्स

11 अक्टूबर एक ऐसा विशेष दिवस है, जो कि “अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस” के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। दिसम्बर 2011 में यूएन ने 11 अक्टूबर 2012 से इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस की स्थापना पर लिंग समानता पर 2030 तक काबू पाने का उद्देश्य निर्धारित किया गया।
हर वर्ष यह दिवस एक विशेष थीम के साथ मनाया जाता है, जिसका चयन महिला सशक्तिकरण को  केन्द्र में रखकर किया जाता है। वर्ष 2012 में पहले अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम की बात करे तो, उसकी थीम ” बाल विवाह की समाप्ति ” थी और हर वर्ष लगातार नई-नई थीम के साथ इस वर्ष 7वां अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस " विथ हर:अ स्किलड गर्ल फोर्स " थीम पर मनाया गया।
इस वर्ष इस थीम के चयन की वजह यह रही कि 10 प्रतिशत छोटी उम्र की बच्चियाँ आज भी स्कूल की छांव से काफी दूर है। वही किशोरियों मे कौशल की कमी देखने को मिल रही है जो कि सशक्तिकरण में एक बहुत बड़ा रोड़ा है।
उपाय :
यूएन (UN)की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 600 मिलियन किशोरियों में हर एक में इतनी क्षमता, रचनात्मकता एवं शाक्ति है कि वे वैश्विक स्तर की इंडस्ट्री तच पहुंच सकती है। इसके लिए सबसे पहले समाज को कुछ पहल एवं आवश्यक कदम उठाने होगे।
जैसे कि-
* लिंग समानता एवं उसके प्रति प्रतिक्रिया एवं मानसिकता में बदलवा लना पड़ेगा।
* Science (विज्ञान), Technology (तकनीक), Engineering  (इंजीनियरिंग ) एवं Maths (गणित) STEM विषयों व क्षेत्रों में बालिकाओं को बढ़ावा देना।
* एक पहल स्कूलों, काॅलेज में किशोरियों को प्रक्टिकल नाॅलेज की ओर अग्रसर करना। जैसै कि : करियर मार्गदर्शन , इंटर्नशिप , आंत्रपेन्युरशिप आदि ।
* पब्लिक एवं प्राईवेट सेक्टर की तरफ रुझान।
इन जैसे कुछ कदमों को उठाकर हम बालिकाओं में आत्मविश्वास उत्पन्न कर सकते है।
आइए एक पहल करते है और इन बच्चियों को भविष्य़ में डाॅक्टर म, इंजीनियर, वकील, जज, आईएएस, टीचर ,पायलट , फ्रिलांसर , स्तंभकार आदि बनाने का संकल्प लेते है।
                  लेखिका- रूचि तिवारी
नोट- उपयुक्त लेख में विभिन स्त्रोतों से डाटा इक्कठा करके लेखिका ने अपने विचार पेश किये हैं ।

Saturday, October 6, 2018

थोडी़ फुर्सत खुद के नाम कर दो....

थोडी़ फुर्सत खुद के नाम कर दो
अपनी थकान कहीं दान कर दो
यूँ खुद को बोझिल बनाना
मेरे यार बंद सरेआम कर दो ।
इस कश्मकश को विदा कर दो
थोड़ा खुद को रिहा कर दो
यूँ सिमटे न रहो
थोडी़ फुर्सत खुद के नाम कर दो ।
निकल आओ उस बाधित समय से
जहाँ साँसों पर भी  पाबंदी है
जो फिक्स कर लिया है तुमने यूँ रूटीन
क्या तुम्हें मिल रहा है भरपूर पसंद पोर्टीन
थोडी़ खुली हवा में जी आओ
उस प्यारी सी ठंडी हवा की झलक ले आओ
उन मधुर गीतों की रागिनी सुन आओ
जाओ थोड़ा खुद को खुद से मिला आओ ।
पल दो पल बैठ अपनो के संग
ले आओ जीवन में नया उमंग
झूमेगी हर एक तरंग
खुद के ही जो हो जाओगे संग ।
जाना थोडी़ दूर उस एकांत में
जिससे भाग रहे तुम एक अरसे से
खो गए हो जो इस भीड़ में
एक नज़र डाल लो ज़रा खुद पे ।
यूँ तो हो गए मस्त मगन इस हाल में
क्या भीतर भी है मन खुशहाली में ???
छोड़ दिया है जो खुद का साथ
अब तो पकड़ लो खुद का हाथ ।
ये भीड़ सदा बढ़ती जाएगी
न जाने कितनी अड़चनें आती जाएँगी
उनसे सामना करने में खुद को भूल न जाओ
थोडी़ फुर्सत खुद के नाम करते जाओ ।
                                  _रुचि तिवारी

Tuesday, October 2, 2018

यूँ उस मासूम का मजा़क न करो

यूँ  मासूमियत का खुले आम कत्ल न करो
यूँ उस नन्हें पर अत्याचार न करो
यूँ उस मासूम का मजा़क न करो
यूँ उसे बुरा कहकर बदनाम न करो ।
स्थितियों का मारा है
जग उसे कहता बेचारा है
गुज़र रही है जो उस पर
एकलौता गवाह उसका खुदा है।
यूँ आँखों में चमक लिये
निहार रहा है मन में कुछ कसक लिए
न्योंछावर कर रहा है बचपन अपनों के लिए
और जियेगा भी तो भला किसके लिए ।
बारह की उमर लिए
चल रहा है एक बोझ लिए
सह रहा है सब उस खुशी के लिए
जो बङी मुश्किल से बनी है उसके लिए ।
उम्र से ज्यादा कर्ज में है डूबा
कर्ज से ज्यादा है फर्ज में डूबा
उस फर्ज की खातिर
छोड़ दिया छूना खिलौना ।
यूँ थककर आने पर भी
नहीं झलकती एक शिकंज उस चेहरे पर
क्योंकि उसकी माई बैठी होती है उसे सहलाने तख्त पर
छू हो जाती है यू थकान
जब देखता माँ के चेहरे पर वो मुस्कान ।
यूँ तो उस मासूम को भी है खेलना पसंद
पर किस्मत ने मचाई है हुङ़दंग
माँ कि चिंता करती है उसे तंग
बाप तो चला गया करके जंग।
जंग से तो कभी भला हुआ नहीं
उसकी माँ की चलने की शक्ति रही नहीं
यूँ हिम्मत उसमें आई
खुद ही चल दिया करने चढा़ई।
जग तो करवाने लगा उससे कमाई
क्या कभी जग को शर्म आई??
न कभी जग ने दया दिखाई
और उस मासूम को बना दिया बाल मज़दूर मेरे भाई।
             _रुचि तिवारी

Friday, July 20, 2018

विडंबना ......

जिंदगी का दूसरा नाम
इत्मिनान नहीं जनाब
अगर ऐसा होता
तो हर कोई खुदगर्ज़ नहीं होता .....
             काँप जाती है रूह
              अक्सर ये सोचकर ही
               मैं बढ़ गया आगे
               तो क्या ये जा़लिम दुनिया पीछे रहेगी ?????
खैर , मैं नहीं चाहता
आगे-पीछे का खेल खेलना
तलाश में हूँ की मिले मुझे सुकून
कम्बख्त वो भी है कह रहा
इतनी आसानी से 'तू ' मुझे तलाश रहा ......
               किस दर पर जाऊँ कि हो जाएं मुराद पुरी
               भटक यहाँ भी रहा , भटका वहाँ भी
                विडंबना में हूँ फंसा कि
                दुख अकेले होने का है या
                 गम सबका हो कर भी न होने का.........
मंजिल चंद ही कदमों की दूरी पर है
पर.........
आज मेरे कदम डगमगा रहे
हौसले मुझे छोड़ कहीं जा रहे
                  खोलना है उन्हीं हौसले के पंखों को
                  नज़रें ताक रहीं उन राहों को
                   जु़बान से बयां नहीं कर पाता
                   आँखों में छुपा भी नहीं पाता
             काश! "वो" होती समझ लेती मुझसे बिन पुछे
             कि उसका "लाल" अंधेरे में क्यों जा रहा???
             कि उसका "लाल" अंधेरे में क्यों जा रहा???
जानती थी वो समझती थी वो
मेरा अटूट विशवास थी वो
हाँ, अगर होती वो तो मैं
यूँ ताक न रहा होता
अपने चमकते नैनों में सिर्फ
सपने संजोए होता ............
                    अब फंसा हूँ उस उलझन में
                    अपने सपनों को तवज्जो दे दूँ
                     या जुट जाऊँ जि़म्मेदारियों में
                    जिसका फर्ज है सुलझाने का
                          किस्मत का खेल है
                     "वही" आज मुझे उलझा रहा......
                    "वही" आज मुझे उलझा रहा.......
                              
                            _रूचि तिवारी

Monday, April 30, 2018

यूँ तो मैं नकारात्मक नहीं !!!

मीडिया  एक बहुत ही व्यापक क्षेत्र है जिससे कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है । व्यापार हो या राजनीति , खेल या  फैशन ~ ग्लैमर , शिक्षा हो या मनोरंजन चाहे फिर  क्यों ही हो  राशिफल हर एक टार्गेट रीडर्स(अॉडियंस) के समूह के लिए समूचा  जानकारियां इकट्ठा फर्ज है मीडिया का ।
                  मीडिया है ही जनता\समाज के लिए और जब जनता से फीडबैक लिया जाता है तो मीडिया के विषय  पर सबसे बड़ा सवाल यह  खड़ा कर दिया जाता है कि मीडिया में इतनी नकारात्मकता क्यों आ रही है । मैं नहीं मानतीं की मीडिया में सिर्फ नकारात्मक खबरों को ही दर्शाया जाता है । मीडिया का तात्पर्य अगर जनता सिर्फ टी.वी. या अखबार तक रखती है तो वह अभी तक जागरूक नहीं है । मीडिया की बहुत सारी शाखाएं हैं जिनमें अखबार और न्यूज चैनल के अलावा मैग्जीन, फिल्म, रेडियो  आदि आते है।
                बात शुरू हुई थी मीडिया में नकारात्मकता को लेकर । जाहिर है मीडिया वही दर्शाती है जो समाज में घटित होता है । इस कड़ी में मीडिया की शाखा फिल्म और धारावाहिक में थोड़ा अंतर हो जाता है क्योंकि वह काल्पनिकताओं को पंख देते हुए अपने संदेश की बखूबी उड़ान भरता है।
वहीं अमूमन लोगों के ज़हन में रहने वाली शाखा न्यूज़ चैनलों की बात की जाए तो वह वही दर्शा रहे हैं जो समाज में घटित हो रहा हैं । अगर समाज में नकारात्मक घटनाएँ  अधिक हो रहीं हैं तो स्वभावतः खबरें वहीं बनेगी और इन सबके बावजूद मीडिया समाज के सकारात्मक परिपेक्ष्य को दर्शाकर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहीं है।
         बात इतनी सी स्पष्ट करना चाह रहीं हूँ कि जहाँ अखबार और न्यूज़ चैनलों में ऐक्सिडेंट , रेप जैसी कई अन्य नकारात्मक न्यूज़ दिखाई जाती है तो वहीं किसानों की समस्याओं को उठाया जाता है , पानी की किल्लत भी दर्शाती है और मासूमों एवं बेगुनाहों की  आवाज को भी उठाया जाता है ।
   अब तो फिल्में भी सिर्फ़ मनोरंजन का साधन और काल्पनिकता की दुनिया नहीं रह गई । अब वहां दंगल, अकीरा, पिंक, टाॅयलेट, पैडमैन जैसी अनेक फिल्में है जो न सिर्फ़ जागरूक करती है  वरन आत्मविश्वास भी एक नई उर्जा के साथ उत्पन्न करती हैं ।
             समाज को ऐसी अनकही बात समझनी चाहिए जो कि बयां नहीं हो पा रही हैं ।

थैंक्यू KK! हम रहें या न रहें कल, कल याद आएंगे ये पल, प्यार के पल...

KK, 90's के दौर का वो नाम जिसकी आवाज सुन हम सभी बड़े हुए। 'कुछ करने की हो आस-आस... आशाएं' या 'अभी-अभी तो मिले हो, अभी न करो ...