Saturday, June 22, 2019

मेरा अस्तित्व ही मेरे पिता की छाया


माय डियर डायरी "पिचकू",
इस शहरीकरण ने सबकी जीवनशैली में न जाने कितने बदलाव ला दिया है। तुम नहीं जानती पर अगर किसी पर असर पड़ा है तो वह रिश्तों में, रिश्तेदारों में, अपनो में।
आज पापा की मौसी घर आई हैं। मैं जब जन्मीं थी तब वह मुझे देखी थी, तब आई थी, घर में फंक्शन हुआ था। तू सोच तब से वो न तो यहाँ आई और न ही हम कभी मिले। अगर मैं सवाल करूँ तो जवाब यह मिलता है कि वक्त ही नहीं था।


आज जब उन्होंने मुझे देखा तो सरपट उनके मुँह से सिर्फ़ यही निकला कि बिल्कुल अपने पापा की तरह दिखती है। उनकी छाया लगती है। मैं एकपल को स्तब्ध रह गई। उनकी बातें सुन थोड़ी देर बाद मैं अपने कमरे में आकर बैठ गई। दादी माँ की बातों पर गौर करने बैठ गई। क्या मैं पापा की छाया हूँ? क्या यह वाकई सच है?
जवाब मिला मुझे ~ हाँ, पर सिर्फ़ शक्ल से ही नहीं। यह मैंने जाना। मेरा वजूद उनसे हैं। सब मुझे मस्त मौला कहते हैं,ऐसे रहना पापा ने ही तो सिखाया था। जब मैं छोटी-छोटी बातों पर फिक्र करने लगती थी तब उन्होंने समझाया था कि परेशान होने से परेशानी और बढ़ती हैं, कोई रास्ता नहीं नज़र आता। यह बात गाँठ बाँध ली थी और नतीजतन ऐसी हूँ। पापा ने ही तो हार न मानना सिखाया था। कहा था कि जब भी लगे बस अब यह काम न हो पायेगा समझ लेना तुम महज़ एक कदम पीछे हो, थोड़ी सी और मेहनत कर लोगी तो मंजिल तक पहुँच जाओगी। पापा ने अगर मुझे मेरी गलतियों पर डाँट नहीं लगाये होते तो आज सही-गलत का फर्क नहीं जानती। अगर मैं अपने दोस्तों के बीच एक बेहतरीन खूबसूरत इंसान की मिसाल हूँ तो सिर्फ़ इसलिए की पापा ने ही समझाया था कि तुम्हें एक बेहद लम्बा सफ़र तय करना है जिंदगी का। यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम खूबसूरती से तय करना चाहती हो या भागमभाग बदहाली से। इंसान की खूबसूरती उसकी शक्ल या रंग से नहीं ज़ाहिर होती है। उसकी आत्मा और मन की पवित्रता से होती है। तुम आज जो भी करोगी उसका रिजल्ट तुम्हें कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी रूप में जरूर मिलेगा।
कमजो़रियों को ताकत बनाना, मेरी ख्वाहिशों को अपनी बनाना, खुद को ताक पर रख मुझे अपनी प्राथमिकता बनाना, मेरी मुस्कान के लिए न जाने कितने अभिनय करना, हज़ारों परिस्थिति में भिन्न-भिन्न किरदार निभाना। बहुत कुछ उन्हें देख, जान और समझकर सीखा है मैंने।
आज मैं जो भी हूँ, मेरे वजूद का कारण मेरे पापा का तप, त्याग, स्नेह और भरोसे का परिणाम है। मेरा अस्तित्व ही मेरे  पिता की छाया है।
_रुचि तिवारी

Thursday, June 13, 2019

जौहरी बनिये



डियर पैरेंट्स,
मैं आज आपसे अपनी मन की बात कहना चाहता हूँ। वह बात जो मैं और मेरे जैसे न जाने कितने बच्चे अपने माता पिता से नहीं कह पाते। आप सबको सिर्फ़ होटल या दुकान में छोटे-छोटे बच्चे जो काम करते हैं वह शोषित नज़र आते हैं। इसमें ज़रा-सा भी कोई संदेह नहीं है। हाँ वे हैं। आप हमें भाग्यशाली बताते हैं क्योंकि हम सुख सुविधाओं के उपभोगी हैं। परंतु आप भी जाने अनजाने हमारा शोषण करते हैं। हाँ, मुझे यह कहने में बिल्कुल भी असहज महसूस नहीं हो रहा। आप हमारी एक दूजे से तुलना करते हैं। शर्माजी की बेटा हमेशा अव्वल आता है, तुम क्यों पीछे रह जाते हो? फलां बच्चा कितना होनहार हैं, पढ़ाई में होशियार है।
इस बार तुम्हें 99% लाना ही है, तुम्हें इंजीनियर (डाॅक्टर, आदि) ही बनना है। क्यों ? क्योंकि शुक्ला जी का बेटा भी वही है।
आखिर क्यों? क्यों 99% ही? क्यों डाॅक्टर, इंजीनियर आदि ही? क्यों आप हम पर दबाव बनाते हैं? कम नम्बर आने पर ताने देते हैं? आखिर यह बात क्यों नहीं समझते कि हर किसी की अपनी खूबी और काबलियत होती है। हर किसी का मानसिक स्तर एक सा नहीं होता। सबकी रुचि अलग-अलग होती है।
मेरी आपसे और सभी उन मात पिता से दरख्वास्त है कि प्लीज़! हमें समझें। हमपर दबाव न बनाएँ। हमारा मानसिक शोषण न करें। सही राह पर लाना, अच्छे संस्कारों से सुसज्जित करना कर्तव्य है पर एक खुली मानसिकता और वातावरण प्रदान करना भी कर्तव्य ही है। एक बार हमसे हमारी सुनकर तो देखिए। हमारा निरिक्षण तो किजिए। कभी हम पर, हमारे कृत्यों पर गौर तो करिए। तब तो आप हमें बखूबी समझ पाएँगे और हमारा उज्जवल भविष्य निर्धारित कर सकेंगे। अगर हम आपके हीरे हैं तो आप भी हमारे जौहरी बनिये न।
आशा हैं मेरे मनोभावों को आप समझ सकेंगे।
आपका प्यारा "बेटू"                                                     ......................

                                           लेखिका _रुचि तिवारी 

Monday, June 10, 2019

नशेड़ी हैं वो


"मैं शायद कभी भी पापा के करीब नहीं जा पाऊँगी माँ ! मुझे उनकी सफाई मत दो ।" आरोही ने ऊँची आवाज़ में झल्लाकर कहा ।

निशा के पास कोई शब्द नहीं थे आरोही से कुछ कहने को।

पर फिर भी हौसला बाँधे बस इतना ही कह सकी "वह तेरे पिता हैं ।"

आरोही एकटक उनको निहार "नहीं ! वो नशेड़ी हैं । पिता होते तो परिवार का ख्याल होता । रोज़ रोज़ नशा करके नहीं आते। कभी भी बेफिजू़ल बात पर तुम्हें ज़लिल नहीं करते और न ही हमेशा घर में तमाशे होते।"

"वो हमसे दूर रह सकते हैं पर नशे से नहीं। 
नशा इस कदर उनके जुनून में सवार हो चुका है कि परिवार की नहीं उन्हें अपने नशे की चिंता होती है।"
इस नशे ने उनसे उनका सब ले लिया है, वे बेखुद हो चुके हैं उन्हें तो यह भी खबर नहीं।

_रुचि तिवारी
Ig : ruchi_tiwari31

Saturday, June 8, 2019

अधूरी दास्ताँ मौजूद है


मेरी डायरी के पिछले पन्नों में,

आज भी वो अधूरी दास्ताँ मौजूद है,

पूरी करने की ख्वाहिशें हैं दिल में,

पर तेरे मेरे उज्जवल भविष्य के

अरमान अभी भी अधूरे हैं,

यूँ तो फुर्सत नहीं हम दोनों को,

पर फिर भी अंदर से मिलने को तरसते हैं,

खोल बाँहें हर शाम तुमसे मिलते यादों में हैं,

मेरी डायरी के पिछले  पन्नों में,

आज भी वो अधूरी दास्ताँ मौजूद है।

वो मन में बोलने की चाह होकर भी

न बोल पाना,

तुम्हें जी भर देखने का वक्त कभी न 

खत्म हो पाना,

उन शैतानियों संग तेरे साथ रहने का 

बहाना बनाना,

और तुम्हें रूकने को न कह पाना,

मेरी डायरी के पिछले पन्नों में,

आज भी वो अधूरी दास्ताँ मौजूद हैं ।


हर रोज़ एक चीख निकलती है डायरी से,

फिर सँभालती हूँ उसे मैं अपनी शायरी से,

हाल ए दर्द बयाँ होता हैं रोज़,

और दुनियाँ मुझे नवाज़ती है वाहवाही से,

मेरी डायरी के पिछले पन्नों में,

आज भी वो अधूरी दास्ताँ मौजूद हैं। 


_ रुचि तिवारी 

 Ig :ruchi_tiwari31

Saturday, June 1, 2019

अगर होता ऐसा जहान!!!

किसी ने मुझसे पूछा कि अगर एक ऐसी दुनिया होती जहाँ की हुकूमत तुम्हारें हाथों में होती और उस दुनिया के पेड़ पशु भी बोलते तो क्या करती ????

मेरा जवाब यह रहा : 

अगर होता एक जहान,
जहाँ पर मैं होती नेता महान,
होते वहाँ के पेड़ और पशु शान,
उनकी जुबां में भी होती जान।

जुबां पे जान ??

हाँ, क्योंकि वो भी बोलते
जैसे बोलते हैं हम इंसान,
सिखाती मैं उनको बनाना खुद की आन,
और हर जुर्म के खिलाफ़ खडे़ होना लेते वो ठान,
बचाते खुद अपनी शिकारियों से जान,

पाठ मैं उनको कुछ ऐसा पढा़ती,
अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठाना सिखाती,
वो मुझसे अपनी तकलीफे़ कहते,
सब मिलजुल एक परिवार में रहते,
अपनी ख्वाहिश तमन्ना कहते,
यूँ ही हर अंदर अंदर न रोते,
कभी न घटते क्रम में होते,
क्योंकि अपने परिवार की रक्षा सब मिलकर करते।
                                                  _रुचि तिवारी

थैंक्यू KK! हम रहें या न रहें कल, कल याद आएंगे ये पल, प्यार के पल...

KK, 90's के दौर का वो नाम जिसकी आवाज सुन हम सभी बड़े हुए। 'कुछ करने की हो आस-आस... आशाएं' या 'अभी-अभी तो मिले हो, अभी न करो ...