Thursday, December 19, 2019

मोबाइल पर शुरू और वहीं खत्म!

इस जमाने में कहाँ ऐसे सुख नसीब होते हैं,
दादी-नानी के किस्सों  में बच्चे अब कहाँ खोते हैं ,
दूर हो जाते हैं लाडले अपने परिवार को ले,
वृद्धजन तो अब आश्रमों में होते हैं ।



मोबाइल पर शुरू और वहीं खत्म!



बालपन में अब वो कहानियाँ कौन सुनता है ,
बच्चों के मन में संस्कार अब कौन  बुनता है,
संस्कृति के पथ को अब कौन चुनता है ,
क्या आदर्श की धुन अब कोई सुनता है?

दादी-नानी का अब प्यार कहाँ मिलता है,
छुट्टियों का समय भी तो असाइनमेंट बनाने में बीतता है,
वो परियां, वो पौराणिक कथाएँ अब कौन कहता है,
अब के बच्चों का जीवन मोबाइल पर शुरू और वहीं खत्म होता है।


_रुचि तिवारी 


Wednesday, November 20, 2019

मॉर्डन लाइफ की एक और स्टोरी!

कई दफा लोगों की बहस होती हैं,
किसी और से नहीं,
खुद से!


कुछ करने को दिल चाहता है ,
पर दिमाग में जंग होती है, 
क्यों ? 
क्योंकि एक सीमित सोच उसमें समाहित होती है!


बचपन से ही समझा दिया जाता है,
समाज का तौर-तरीका बता दिया जाता है,
एक सोच, नहीं; सीमित सोच,
रोक देती है ये-वो करने से,
क्योंकि समाज में इसे बुरा कहा जाता है!


modern life
मॉडर्न लाइफ की एक और स्टोरी!



जब उस दायरे को साथ लिए, 
थोड़ा बाहर आते हैं,
उस सीमित सोच के कारण शायद,
मॉर्डन दुनिया से डिफीट हो जाते हैं!


कोई आइडिया जब घिसा-पिटा हो जाता है,
थींक आउट ऑफ दी बॉक्स कहा जाता है,
कुछ समय इन दायरों को समझने में लग जाता है,
हाँ, सफर का एक और पड़ाव शुरू हो जाता है!


फिर धीरे-धीरे नयी बातें जानते हैं,
उस सोच के आगे भी एक दुनिया है!
इसे अचंभा मानते हैं,
फिर दिमाग के घोड़ों को दौड़ाते हैं,
और लाइफ में प्रैक्टिकल होने लग जाते हैं!


कुछ अलग करने की चाह हो जाती है,
ऑटोमैटिकली, बॉक्स की बाउंड्री बड़ी हो जाती है,
आइडियाज़ में क्रिएटिविटी आ ही जाती है,
मॉर्डन लाइफ की एक और स्टोरी बन जाती है!


उन दायरों को चीर के ही,
बदलाव की पहल होती है,
ये किसने कहा?
कामयाबी में किसी की मेहर (मेहरबानी) होती है!

-रुचि तिवारी









Thursday, September 19, 2019

ख्वाब महज एक ख्वाब ही रहे!


ख्वाबों ने करवटें ले ली है अब, 
न जाने पूरे होंगे कब? 
आंखों में सजा निकले थे हम तब,
अब तो खामोश हो गये हैं ये लब! 

असलियत से रूबरू होने में थोड़ा वक्त लगता है, 
जब भी आंख खुले थोड़ा दर्द होता है, 
ख्वाब ख्वाब ही रहे तो अच्छा होता है, 
भला कौन से आसमां में दिन में तारा होता है!

ख्वाबों के पीछे हम सच भूल जाते हैं,
दौड़े-दौड़े अनजान राह पर पहुंच जाते हैं,
शायद समझने में बहुत वक्त लगा जाते हैं, 
तब तक दरकिनार हम लाखों-करोड़ों काम कर जाते हैं! 

Dream should be only just a dream!
ख्वाब महज एक ख्वाब ही रहे!


धीरे-धीरे अपनों को भूल जाते हैं,
फिर अचानक खुद का साथ छोड़ जाते है,
न जाने कब कैसे दिन, महीने, साल गुजर जाते है,
बरसों पहले हुई खुद से गुफ्तगू की यादों के सहारे रह जाते है! 


ख्वाब महज एक ख्वाब ही रहे,
हंसीन हो या बुरा; सिर्फ़ आंखों में ही बसे,
नींद जब खुले तो बस खट्टी-मीठी उसकी यादें ही रहें,
जरूरी तो नहीं कि एक ख्वाब जिंदगी की असलियत बने!

_ रुचि तिवारी 

Sunday, September 15, 2019

Peak Of Victory!

Crossing the limit of expectations;
nowadays, his dreams are flying,
the soul is unable to bother now
Still; he don't know
All such dreams are becoming true how?
The moments which can be just only imagine,
is actually now becoming true.

Peak of victory!


Thank you God! for such an opportunity,
Step by step he is forwarding towards maturity;
Yes, this wanderer has entered into a new city,
With a belief that one day he will 
Be at the peak of his victory...

_Ruchi Tiwari 

Ig : ruchi_tiwari31

Tuesday, July 16, 2019

जीवन के असल नायक

मेरी हर गलती पर मुझे डाँट लगाया,
मेरे अकेलेपन में मुझे सीने से लगाया,
मेरी सब ख्वाहिशों को अपना बनाया,
मेरी कमी पर मुझे डटना सिखाया,
मेरी नादानियों को हँसकर अपनाया,
मेरी चाहत के सपनों को साकार बनाया,
मेरे डर को हर पल जड़ से मिटाया,
मेरी नाकामयाबियों पर मुझमें भरोसा जगाया,
मेरी कमजो़रियों पर मुझमें हौसला बँधवाया,
हर परिस्थिति में मुझे लड़ना सिखाया,
दुनिया के दस्तूर और रिवाजों को समझाया,
हौसला कभी न खोने का मंत्र पढ़ाया,
मुझमें मेरे सोये हुए अरमानों को जगाया,
खुद को ताक पर रख मुझे अपनी प्राथमिकता बनाया,
दिनों-दिन खुद को छुप छुप कर रूलाया,
मेरी प्यारी सी हँसी के लिए न जाने 
कितने किरदार निभाया,
जीवन के बहुमूल्य रंगों से मिलाया,
इस जन्नत से रूबरू करवाया,
कुछ इस तरह मेरे जीवन के असल नायक(पापा)
ने ताउम्र बखूबी अपना फर्ज़ निभाया!!!
_रुचि तिवारी 
Ig : ruchi_tiwari31

Friday, July 12, 2019

वो संगीत


Music
वो संगीत
वो सुकून,
वो राहत,
वो खुद में खोने की चाहत,
वो मुस्कान,
वो अरमान,
वो मिटी हुई थकान,
वो प्यार,
वो जहान,
वो खुद की मुलाकात,
वो ख्याल,
वो हाल,
वो बेचैन जज्बात,
वो गीत,
वो मीत,
हर दफ़ा  का साथी "वो संगीत"...
_रुचि तिवारी
Ig : ruchi_tiwari31



Monday, July 1, 2019

Her career was ready to fly....

Want to confess that mistake, 
Which put her down in the difficult lake,
She did it for her own sake ,


That was her self respect which can't be buy at the price of cake. 
Might she was habitual for it,
but if she don't want ,she can't do it,
No one can force her to do it,
Yes, that is her own wish whether to do or not do it.
That day she denied ,
Obviously she also fight,
Everyone has their own sight,
She was wrong in someone's might.
Yes, it was difficult for her,
To choose the husband or career of her,
She left that joining letter under the drawer,
And hold the hand of husband dreaming the blossom shower,
After few months , they were apart ,
Oh! no ! why she missed that chance??
Grabbing hands of him was so scary ,
As she decided he will help her in designing future so brightly,
That was her mistake she believed on wrong guy,
Oops she had also spoiled her career which was ready to fly in the sky........
_ Ruchi Tiwari 
Ig : ruchi_tiwari31

Saturday, June 22, 2019

मेरा अस्तित्व ही मेरे पिता की छाया


माय डियर डायरी "पिचकू",
इस शहरीकरण ने सबकी जीवनशैली में न जाने कितने बदलाव ला दिया है। तुम नहीं जानती पर अगर किसी पर असर पड़ा है तो वह रिश्तों में, रिश्तेदारों में, अपनो में।
आज पापा की मौसी घर आई हैं। मैं जब जन्मीं थी तब वह मुझे देखी थी, तब आई थी, घर में फंक्शन हुआ था। तू सोच तब से वो न तो यहाँ आई और न ही हम कभी मिले। अगर मैं सवाल करूँ तो जवाब यह मिलता है कि वक्त ही नहीं था।


आज जब उन्होंने मुझे देखा तो सरपट उनके मुँह से सिर्फ़ यही निकला कि बिल्कुल अपने पापा की तरह दिखती है। उनकी छाया लगती है। मैं एकपल को स्तब्ध रह गई। उनकी बातें सुन थोड़ी देर बाद मैं अपने कमरे में आकर बैठ गई। दादी माँ की बातों पर गौर करने बैठ गई। क्या मैं पापा की छाया हूँ? क्या यह वाकई सच है?
जवाब मिला मुझे ~ हाँ, पर सिर्फ़ शक्ल से ही नहीं। यह मैंने जाना। मेरा वजूद उनसे हैं। सब मुझे मस्त मौला कहते हैं,ऐसे रहना पापा ने ही तो सिखाया था। जब मैं छोटी-छोटी बातों पर फिक्र करने लगती थी तब उन्होंने समझाया था कि परेशान होने से परेशानी और बढ़ती हैं, कोई रास्ता नहीं नज़र आता। यह बात गाँठ बाँध ली थी और नतीजतन ऐसी हूँ। पापा ने ही तो हार न मानना सिखाया था। कहा था कि जब भी लगे बस अब यह काम न हो पायेगा समझ लेना तुम महज़ एक कदम पीछे हो, थोड़ी सी और मेहनत कर लोगी तो मंजिल तक पहुँच जाओगी। पापा ने अगर मुझे मेरी गलतियों पर डाँट नहीं लगाये होते तो आज सही-गलत का फर्क नहीं जानती। अगर मैं अपने दोस्तों के बीच एक बेहतरीन खूबसूरत इंसान की मिसाल हूँ तो सिर्फ़ इसलिए की पापा ने ही समझाया था कि तुम्हें एक बेहद लम्बा सफ़र तय करना है जिंदगी का। यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम खूबसूरती से तय करना चाहती हो या भागमभाग बदहाली से। इंसान की खूबसूरती उसकी शक्ल या रंग से नहीं ज़ाहिर होती है। उसकी आत्मा और मन की पवित्रता से होती है। तुम आज जो भी करोगी उसका रिजल्ट तुम्हें कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी रूप में जरूर मिलेगा।
कमजो़रियों को ताकत बनाना, मेरी ख्वाहिशों को अपनी बनाना, खुद को ताक पर रख मुझे अपनी प्राथमिकता बनाना, मेरी मुस्कान के लिए न जाने कितने अभिनय करना, हज़ारों परिस्थिति में भिन्न-भिन्न किरदार निभाना। बहुत कुछ उन्हें देख, जान और समझकर सीखा है मैंने।
आज मैं जो भी हूँ, मेरे वजूद का कारण मेरे पापा का तप, त्याग, स्नेह और भरोसे का परिणाम है। मेरा अस्तित्व ही मेरे  पिता की छाया है।
_रुचि तिवारी

Thursday, June 13, 2019

जौहरी बनिये



डियर पैरेंट्स,
मैं आज आपसे अपनी मन की बात कहना चाहता हूँ। वह बात जो मैं और मेरे जैसे न जाने कितने बच्चे अपने माता पिता से नहीं कह पाते। आप सबको सिर्फ़ होटल या दुकान में छोटे-छोटे बच्चे जो काम करते हैं वह शोषित नज़र आते हैं। इसमें ज़रा-सा भी कोई संदेह नहीं है। हाँ वे हैं। आप हमें भाग्यशाली बताते हैं क्योंकि हम सुख सुविधाओं के उपभोगी हैं। परंतु आप भी जाने अनजाने हमारा शोषण करते हैं। हाँ, मुझे यह कहने में बिल्कुल भी असहज महसूस नहीं हो रहा। आप हमारी एक दूजे से तुलना करते हैं। शर्माजी की बेटा हमेशा अव्वल आता है, तुम क्यों पीछे रह जाते हो? फलां बच्चा कितना होनहार हैं, पढ़ाई में होशियार है।
इस बार तुम्हें 99% लाना ही है, तुम्हें इंजीनियर (डाॅक्टर, आदि) ही बनना है। क्यों ? क्योंकि शुक्ला जी का बेटा भी वही है।
आखिर क्यों? क्यों 99% ही? क्यों डाॅक्टर, इंजीनियर आदि ही? क्यों आप हम पर दबाव बनाते हैं? कम नम्बर आने पर ताने देते हैं? आखिर यह बात क्यों नहीं समझते कि हर किसी की अपनी खूबी और काबलियत होती है। हर किसी का मानसिक स्तर एक सा नहीं होता। सबकी रुचि अलग-अलग होती है।
मेरी आपसे और सभी उन मात पिता से दरख्वास्त है कि प्लीज़! हमें समझें। हमपर दबाव न बनाएँ। हमारा मानसिक शोषण न करें। सही राह पर लाना, अच्छे संस्कारों से सुसज्जित करना कर्तव्य है पर एक खुली मानसिकता और वातावरण प्रदान करना भी कर्तव्य ही है। एक बार हमसे हमारी सुनकर तो देखिए। हमारा निरिक्षण तो किजिए। कभी हम पर, हमारे कृत्यों पर गौर तो करिए। तब तो आप हमें बखूबी समझ पाएँगे और हमारा उज्जवल भविष्य निर्धारित कर सकेंगे। अगर हम आपके हीरे हैं तो आप भी हमारे जौहरी बनिये न।
आशा हैं मेरे मनोभावों को आप समझ सकेंगे।
आपका प्यारा "बेटू"                                                     ......................

                                           लेखिका _रुचि तिवारी 

Monday, June 10, 2019

नशेड़ी हैं वो


"मैं शायद कभी भी पापा के करीब नहीं जा पाऊँगी माँ ! मुझे उनकी सफाई मत दो ।" आरोही ने ऊँची आवाज़ में झल्लाकर कहा ।

निशा के पास कोई शब्द नहीं थे आरोही से कुछ कहने को।

पर फिर भी हौसला बाँधे बस इतना ही कह सकी "वह तेरे पिता हैं ।"

आरोही एकटक उनको निहार "नहीं ! वो नशेड़ी हैं । पिता होते तो परिवार का ख्याल होता । रोज़ रोज़ नशा करके नहीं आते। कभी भी बेफिजू़ल बात पर तुम्हें ज़लिल नहीं करते और न ही हमेशा घर में तमाशे होते।"

"वो हमसे दूर रह सकते हैं पर नशे से नहीं। 
नशा इस कदर उनके जुनून में सवार हो चुका है कि परिवार की नहीं उन्हें अपने नशे की चिंता होती है।"
इस नशे ने उनसे उनका सब ले लिया है, वे बेखुद हो चुके हैं उन्हें तो यह भी खबर नहीं।

_रुचि तिवारी
Ig : ruchi_tiwari31

Saturday, June 8, 2019

अधूरी दास्ताँ मौजूद है


मेरी डायरी के पिछले पन्नों में,

आज भी वो अधूरी दास्ताँ मौजूद है,

पूरी करने की ख्वाहिशें हैं दिल में,

पर तेरे मेरे उज्जवल भविष्य के

अरमान अभी भी अधूरे हैं,

यूँ तो फुर्सत नहीं हम दोनों को,

पर फिर भी अंदर से मिलने को तरसते हैं,

खोल बाँहें हर शाम तुमसे मिलते यादों में हैं,

मेरी डायरी के पिछले  पन्नों में,

आज भी वो अधूरी दास्ताँ मौजूद है।

वो मन में बोलने की चाह होकर भी

न बोल पाना,

तुम्हें जी भर देखने का वक्त कभी न 

खत्म हो पाना,

उन शैतानियों संग तेरे साथ रहने का 

बहाना बनाना,

और तुम्हें रूकने को न कह पाना,

मेरी डायरी के पिछले पन्नों में,

आज भी वो अधूरी दास्ताँ मौजूद हैं ।


हर रोज़ एक चीख निकलती है डायरी से,

फिर सँभालती हूँ उसे मैं अपनी शायरी से,

हाल ए दर्द बयाँ होता हैं रोज़,

और दुनियाँ मुझे नवाज़ती है वाहवाही से,

मेरी डायरी के पिछले पन्नों में,

आज भी वो अधूरी दास्ताँ मौजूद हैं। 


_ रुचि तिवारी 

 Ig :ruchi_tiwari31

Saturday, June 1, 2019

अगर होता ऐसा जहान!!!

किसी ने मुझसे पूछा कि अगर एक ऐसी दुनिया होती जहाँ की हुकूमत तुम्हारें हाथों में होती और उस दुनिया के पेड़ पशु भी बोलते तो क्या करती ????

मेरा जवाब यह रहा : 

अगर होता एक जहान,
जहाँ पर मैं होती नेता महान,
होते वहाँ के पेड़ और पशु शान,
उनकी जुबां में भी होती जान।

जुबां पे जान ??

हाँ, क्योंकि वो भी बोलते
जैसे बोलते हैं हम इंसान,
सिखाती मैं उनको बनाना खुद की आन,
और हर जुर्म के खिलाफ़ खडे़ होना लेते वो ठान,
बचाते खुद अपनी शिकारियों से जान,

पाठ मैं उनको कुछ ऐसा पढा़ती,
अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठाना सिखाती,
वो मुझसे अपनी तकलीफे़ कहते,
सब मिलजुल एक परिवार में रहते,
अपनी ख्वाहिश तमन्ना कहते,
यूँ ही हर अंदर अंदर न रोते,
कभी न घटते क्रम में होते,
क्योंकि अपने परिवार की रक्षा सब मिलकर करते।
                                                  _रुचि तिवारी

Wednesday, May 29, 2019

मैं चिरैया !!

नमस्ते ! मैं चिरैया ,

या खुदा कैसा ये कहर है,
कहने को तो ग्रीष्म लहर है,
जूझते हम हर पहर हैं,
क्योंकि शायद ये शहर है ।

सिर्फ़ कंठ पर नहीं
उड़ान में भी ठहर है,
बडे़ अच्छे से कहते हो तुम
हमारे पास पर हैं ,
उपर आसमान में बहुत तपन हैं,
काट दिए तुमने सब वृक्ष
हमारे पास नहीं अब घर हैं ।

जलते हमारे भी पंख हैं,
सिर्फ़ तुम्हारा ही नहीं बदन है,
अपने आशियाँ के लिए
रौंद दिए तुमने प्रकृति के नियम हैं,
हम भी बचे अब घटते क्रम में हैं ।

ऐ इंसानों ! करनी अब तुमको मेहर है,
सिर्फ़ हमें ही नहीं पूरे पर्यावरण को बचाना है,
मुरझाई प्रकृति को हँसाना है,
अपना कर्तव्य निभाना है,
हाँ, मानव योनि का कर्ज़ चुकाना है ।
                                    ...........रुचि तिवारी 

Monday, May 20, 2019

मैं तुम सा नहीं पर ....


कितनी आसानी से कहती है वो,
तुम नहीं समझोगे , एक नारी की तड़प ,
उसका दर्द , उसके एहसास ,
उसके अधिकार , उसके रिवाज़ ,
उसकी जिम्मेदारी , उसकी पहचान ,
क्योंकि तुम तो ठहरे एक लड़का ,
जिसे है पुरुष होने का गुमान ।


कैसे समझाऊँ मैं वैसा नहीं यार ,
मैं भी हूँ अकेला और अग्यार ,
जूझता हूँ रोज़ नई कसौटी से,
क्या इतना भी हक नहीं कि मिले मुझे थोड़ा-सा प्यार ।


मानता हूँ जताता नहीं ,
हाल ए दिल मैं बताता नहीं ,
मत समझो गैर जिम्मेदार मुझे ,
रोना तो आता है मुझे भी पर मैं आँसू बहाता नहीं ।


तुम्हारी ही तरह मेरी भी जल्द सुबह दिन की शुरुआत होती है,
नई-नई कसौटियों से रोज़ मुलाकात होती है,
फिर भी मेरे चेहरे पर सिर्फ़ मुस्कान होती है,
क्योंकि मुझपर निर्भर मेरे घरवालों की आस होती हैं ।


घर से निकलता हूँ जो सुबह ,
दिमाग में माँ ,पापा , पत्नी , बेटी के ज़ज्बात होते हैं ,
कमी न हो उनको किसी चीज़ की ,
जरुरतें क्या है उनकी मन में बस यही सवाल होते हैं ।


सबकी फिक्र है मुझे,
और चाहत भी है,
माना बाहर से थोड़ा सख्त सही,
पर इसका मतलब यह नहीं कि परवाह नहीं मुझे।


हजारों सवालों का निरंतर मंथन करता हूँ ,
सबकी भलाई का मैं चिंतन करता हूँ ,
चूक न हो मुझसे खुश रखने में सबको,
दिन रात लाखों कोशिशें इसलिए बार बार करता हूँ ।


कभी झल्लाता कभी चिल्लाता हूँ ,
हाँ , शायद तब मैं खुद से हार जाता हूँ ,
सबकी आस और मान मैं ही तो हूँ ,
यही सोचकर फिर से काम पर लग जाता हूँ ।


कईयों से मिलना और कई काम करता हूँ ,
पर सबकी छोटी से छोटी ख्वाहिश का भी ख्याल रखता हूँ ,
ज़माने से तो लड़ लेता हूँ ,
पर खुद के वजूद में कभी-कभी सवाल करता हूँ ।


एक प्राथना रोज़ करता हूँ ,
माँ की तरह उदार और तुम्हारी तरह सहनशील बनूँ ,
हँस कर हर चुनौतियों का सामना करुँ,
हाँ , एक आदर्श बेटा , पति और पिता रहूँ ।

_रुचि तिवारी
Ig : ruchi_tiwari31

Saturday, May 18, 2019

यादें कमा कर आते हैं

चलो आज थोड़ी "मटरगश्ती" कर आते हैं ,
यादों के "गुल्लक" के लिए ,
कुछ यादें "कमा" कर आते हैं !!!!
किसी को "हँसा" कर आते हैं ,
किसी को "छेड़" कर आते है !!!
किसी की "चोटी" खींच ,
चलो थोड़ा उसे "दौड़ा" के आते हैं !!!
उसे "थका" के आते हैं ,
और खुद "छुप" जाते है !!!
कुछ "मस्ती" , कुछ यादों की कशती ,
में चलो आज "सैर" कर आते हैं !!!
कुछ "खट्टी-मीठी" यादों के साथ ,
स्मृति के "सागर" मे तैर कर आते हैं !!!
थोड़ा तुम "खोना" थोड़ा हम खोयेंगे ,
चलो एक एक "गोता" लगा कर आते हैं !!!
स्मृतियों का एक "आशियाँ" बनाते हैं ,
हमारी तुम्हारी कुछ यादें "सजा" कर आते हैं !!!
चलो आज थोड़ी "मटरगश्ती" कर आते हैं ,
यादों के "गुल्लक" के लिए ,
कुछ यादें "कमा" कर आते हैं !!!! 

                      _रुचि तिवारी एवं आ. लता खरे जी

नोट : यह कविता  दोनों  कवयित्रियों ने मिलकर साझेदारी में लिखी है। आज के युग की लेखन विधा में मशहूर "Collab(जुगलबंदी)" विधा के अंतर्गत इसे पूर्ण किया गया है एवं पब्लिश भी दोनों की सहमति से किया जा रहा है ।

Tuesday, May 14, 2019

अगर नया जन्म लूँ ....

माय डियर डायरी " पिचकू " ,

मैं तुमसे रोज़ाना इतना कुछ कह जाती हूँ यह मुझे तब पता चलता  है जब तुम्हारे सभी पन्ने भर जाने वाले होते हैं वो भी कैसे , सिर्फ़ मेरी बातें सुनते सुनते और फिर तुम्हारा हो जाता है नया जन्म !!! मैं नई डायरी जो खरीद लाती हूँ । तुम न बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हारा बारम्बार पुनर्जन्म हो जाता है वो भी एक ही जगह , एक ही घर में और तो मेरे ही पास मेरी  साथी बन जाती हो । कभी-कभी सोचती हूँ " मैं फिर से पैदा होती तो ? " हाँ , जानती हूँ की यह असंभव है , तुम इतना हँसो मत पर एक बार गौर तो कर ! तुम हर दफा अपने हर नए जन्म में मेरे ही पास आती हो , तुम्हें भी मुझसे काफी शिकायतें होंगी । आखिर तुम मेरी ही तो सुनती हो कभी अपनी नहीं कह पाती ।  पर आज मैं तुमसे साझा करती हूँ कि मुझे क्या शिकायतें हैं और अगर मैं फिर से जन्म लूँ तो कहाँ जन्मूँ ।
 एक ऐसे परिवार में मेरा जन्म हो जहाँ सुकून से सभी रहें , एक दूजे से हँसे बोले , आपस में स्नेह तो हो पर एक दूसरे के लिए समय भी हो । विचारों में बाध्यता न हो न हीं विचार एकल पहलू हो । बदलाव को अपनाया जाता हो और तो और विश्वास की परत भी हो । रिश्तों का नाम लेकर कार्यों में बंधन न हो ,  पंरपराओं और संस्कारों संग आधुनिकता का मिश्रण भी हो । कार्यों को थोपने के बजाए जिम्मेदारी का एहसास हो , टेक्नोलॉजी सिर्फ़ आॅफिस में और घर में प्यार दुलार हो । संबंध मधुर हों मीठी-मीठी तकरार हो । कर्तव्यों के लिए मजबूर करने के बजाय उनकी महत्ता को समझाया जाए । भावों को नहीं जरुरतों को पहले देखा जाए । विचारों में खुलापन और मन में नएपन को अपनाने की ललक हो । कुछ कर गुजरने से पहले ही फैसले की सुनवाई न हो जाए । पौराणिक तरिकों में बदलाव कर एक बार नए को कर देखने में हर्ज कैसा ???
 हाँ , मुझे परिवार में बदलाव चाहिए क्योंकि मैंनें बचपन से सुना है पहले शिक्षक माता पिता होते हैं और पहला विद्यालय परिवार \ घर होता है । पहले मेरा घर बदलेगा कल शायद यह बदलाव किसी और को भी वाजिब लगे और परसों किसी और को । जब  परिवार सहायक होगा तो समाज होगा क्योंकि समाज भी तो परिवार है । एक एक परिवार के मिलने से समाज बनता है और समाज में हम रहते हैं । कई दफा मैंनें  देखा है मनचाहा काम नहीं करने मिलता क्यों ? क्योंकि  समाज क्या कहेगा । जब परिवार में बदलाव आएगा स्वाभाविक है समाज में आएगा । हम यह तो सोच लेते हैं कि समाज क्या कहेगा पर यह भूल जाते हैं समाज हमसे बना है। हाँ ! मुझे बदलाव चाहिए क्योंकि मैंने यह भी सुना था  " वसुधैव कुटुम्बकम " !!!!
चलो मेरी शिकायतों का पिटारा बंद करती हूँ और सो जाती हूँ    पिचकू तू भी आराम कर।

तेरी साथी
रुचि तिवारी ।

Saturday, May 11, 2019

उस बेवफा को !!!


रुला कर मुझे उस बेवफा को बड़ी गज़ब की नींद आई है,
देख लो दुनिया वालों मेरी मोहब्बत क्या रंग लाई है !!!!
मेरी जिंदगी में गमों की बहार उसने लाई है ,
और कहता है वो देख तेरी किस्मत सामने आई है !!!!
मेरे मरे अरमानों की चीख अभी मैंनें कहाँ सुनाई हैं ,
थोड़ा रूक ठहर सब्र कर तेरी किस्मत भी उसी खुदा ने बनाई है !!!!
मेरे हाथों की लकीरों पर मैंनें खुद अपनी किस्मत लिखवाई है ,
तेरे न होने से मैं तन्हा नहीं , हाँ मैंनें कभी तेरी कमीयां नहीं बताई है !!!!
डूबती हमारी कश्ती हर बार हमने मिलकर पार लगाई है ,
पर इस बार फिर तुमने बेवफाई ही जताई है !!!!
मोहब्बत है ये , जलन में तीसरे ने आग लगाई है ,
इतनी सी बात तुम्हें अब तक समझ क्यों नहीं आई है ????
ना बन खुदगर्ज़ यूँ सफर-ए- मोहब्बत में ,
जा़लिम तेरी बेवफाई की दासतां हमने कहाँ किसी को सुनाई है !!!!
कितनी बार तेरी गलतियाँ नादानी समझ भुलाई है ,
 तू बदल रहा है पर मैंनें अब भी हार नहीं अपनाई है !!!!
                                  _रुचि तिवारी एवं नेहल जैन
Instagram : ruchi_tiwari31 & writerspride

नोट : यह कविता  दोनों  लेखिकाओं ने मिलकर साझेदारी में लिखी है। आज के युग की लेखन विधा में मशहूर "Collab" विधा के अंतर्गत इसे पूर्ण किया गया है एवं पब्लिश भी दोनों की सहमति से किया जा रहा है । 


Sunday, May 5, 2019

लौट आना चाहता हूँ माँ !!!

थक चुका हूँ मैं ख्वाबों के पीछे भागते-भागते ,
हार चुका हूँ मैं दूसरों को हराते हराते ,
लौट आना चाहता हूँ माँ,
उन गलियारों में ,
तेरे आँचल की छांव में ,
वो सुकून भरे गाँव में ,
भीड़ भाड़ से दूर ,
जहाँ प्रकृति का बरसता है नूर ,
तेरी ममता में हो जाउँ मगरुर ,
माँ तेरा प्यार पाकर हो जाउँ मशहूर ।
तू मेरा कोहिनूर ,
जाना नहीं अब तुझसे दूर।

मेरी खताओं को अब मुझे सुधारना है,
तेरे हर गम को जड़ से मिटाना है,
तुझे दुनिया से मिलवाना है,
बहुत कुछ दिखाना समझाना है,
तू वहाँ घुटती है , तेरा बेटा भी तो यहाँ अकेला है,
कुछ ही दिनों का माँ बस इंतजार है, 
तेरा बेटा तेरे पास आने को तैयार है।

मिल तुझे सबसे पहले गले लगाना है,
सालों की थकान पल में मिटाना है,
तेरे आँचल की छांव में बैठ जन्नत को देखना है ,
तेरे हाथ से खाकर मन्नतें पूरी करना है ,
तेरी गोद में सिर रख सब भूलना है,
मेरा सबकुछ तू है और अब बस तेरा ही ख्याल रखना है।

_रुचि तिवारी 
 Ig : ruchi_tiwari31

Thursday, May 2, 2019

मैं मजदूर हूँ !!!



नमस्ते !

आज मैं अपनी कुछ बातें आप के साथ साझा करना चाहता हूँ इसलिए यह खुला पत्र आप सबके लिए ।

आशा है आप सब मंगलमय होंगे एवं गर्मी में कूलर , शीतल पेय और फलों का मज़ा ले रहे होंगे ।

मुझे देख मुझसे दूर क्यों हो जाते हैं आप सब ?
मेरी कभी क्यों नहीं सुनते ? 
हमेशा मैं ही क्यों सुनता हूँ आपकी ? 
थोड़ी अजब-गजब लगें शायद मेरी यह बात आपको पर जताने की बड़ी तमन्ना है । मेरे लिबास से ही आप सब मुझे पहचान जाते हैं कि मैं मजदूर हूँ । दिन-रात  , धूप छांव , सर्दी- गर्मी कैसे भी हालात हो बिना  किसी बहाने के काम मैं  करता हूँ । वो गद्दी वाली कुर्सी पर बैठे साहब और मेम लोग बस हुकूम करती हैं और मुझे काम करना होता है । कभी किसी ऊँची बिल्डिंग में , कभी सड़कों में , कभी खेतों में , कभी माल ढोने में , कभी होर्डिंग लगाने में आदि आदि । मेरा कोई ठौर ठिकाना नहीं । कभी रेत के ढेर पर मिलूंँगा तो कभी मालगोदामों में , कभी धूल के आशियाने में तो कभी सूरज की कड़कड़ाती चमक में खेलता हुआ और हाँ ! शायद कभी ठेला ठेलते या रिक्शा खींचते । मुझे तो बड़ी आसानी से मजदूर बोलते हैं आप पर क्या कभी गौर किया की ये मेरा नहीं , मजदूर शब्द का नहीं अपितु कार्य का उपहास है ।  वो भी उस कार्य का जो या तो आप नहीं करना चाहते या असमर्थ है  ।  यहाँ तक की आप हमारे कारण ही आराम फरमा पा रहे हैं ।

एक निवेदन है आप कार्यों का उपहास न करें और न ही मानव योनि का । हाँ ! मैं मजदूर हूँ पर मजबूर नहीं । मेहनत मेरी क्षमता मेरा गुरुर हैं । क्योंकि मैं वह काम करने में पीछे नहीं हटता जिससे आप सब हटते हैं । ज्यादा नहीं पर आपसे मैं यह अपेक्षा तो रख ही सकता हूँ की मुझे भी मानव ही समझे । 

धन्यवाद !
हमेशा काम आने वाला ,
आपका तिरस्कृत " मजदूर "

लेखिका _ रुचि तिवारी 

Tuesday, April 23, 2019

स्वीप में बाल कलाकारों का कमाल !!!

" काय बिन्ना ! वोट डारवे जेहो की नयी ? .... काय तुम्हें पता नइया वोट डारवो कित्तो जरूरी है ? ..... जे लेओ कर लेओ बात ! तुम तो पढी़ लिखी मेमसाब हो फिर भी देश लाजे अपनी जिम्मेदारी से जी चुरा रयी हो ! ...... हम तो भज्जा अपनो सारो काम काज बाद में करहें , सबसे पहले वोट डाल के आहें ..... " 
अरे अरे अरे !!!!! इसे पढ़कर अचंभित मत होइये ।  मैं  यहाँ  आपको  "मत्तो बाई " के  बुंदेलखंडी बोली  के  चुलबुले पर एक दम सटीक डाॅयलागों से रूबरू करवा रही हूँ ।  अब आप सोच रहे होंगे की मत्तो बाई कौन सी  अभिनेत्रि है ??? तो आगे बढ़ते बढ़ते पूरी कथा वाचन करती हूँ.....
मतदाता जागरुकता अभियान और स्वीप (सिस्टिमैटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलै्कटोरल पार्टिसिपेशन) के कार्यकमों का मुख्य किरदार है " मत्तो बाई " । जिसने इस जिम्मेदारी ली है जन जन को मतदान के लिए जागरूक करने की ।

मत्तो बाई और कोई नहीं बल्कि संभागीय बाल भवन की बाल अभिनय कलाकार है । संभागीय बाल भवन स्वीप , मतदाता जागरूकता अभियान का पार्टनर है और यह एक नई पहल है जब बाल कलाकारों / नाबालिगों को ऐसे कार्यक्रमों में जोड़ा गया है । हैरतअंगेज बात यह है कि इनको इस जिम्मेदारी के विषय में ज्यादा ज्ञान न होने के बावजूद अपने-आप को किसी से कम नहीं समझते और तो और जब अधिकारियों की चुनाव ड्यूटी लगने पर जहाँ वो काम को देख मुँह बिचकाते हैं वहीं ये उर्जावान कलाकार अपने गुरूजनों से अगले कार्यक्रम की तारीख पूछते नहीं थकते ।

मत्तो बाई की टेर ......
मत्तो बाई का किरदार निभा रहीं पलक गुप्ता महज अभी पंद्रह वर्ष की है और बहुत ही अच्छी बाल अभिनय कलाकार है । जब उनसे पूँछा गया कि वो अपने इस किरदार में खुश हैं या नहीं तो उन्होंने बताया कि जब उन्हें मत्तो बाई का किरदार निभाने कहा गया तो नाम सुनकर अजीब लगा क्योंकि किरदार के उद्देश्य के बारे में नहीं बताया गया था पर जैसै ही पता चला वो तुरंत राजी हो गई । पहल पहल ज्यादा तो नहीं पता था पर खुशियों का अंबार तब लगा जब पता चला कि बहुत सारे बच्चों में से मुझे चुना गया है और मेरी पर्फारमेंस सभी को बहुत पसंद आ रही है और लगातार सराहना मिल रही है । और छोटी सी उम्र से ही सहभागिता का मौका मिला । मत्तो बाई अपने हमउम्र साथियों से ये अपील करना चाहती हैं की हम स्कूल में सिविक्स (नागरिक शास्त्र ) एक विषय के तौर पर परिक्षाओं में पास होने के लिए सिर्फ़ न पढे़ उससे अपने अधिकारों , कर्तव्यों के प्रति खुद तो सजग हो हीं साथ ही साथ बडो़ को भी करें ।


" बूथ तलक तुम जाना ...... मतदान करके आना ..... अपना फर्ज़ निभाना ..... मतदान करके आना ......" 
ये डायलाॅग नहीं है अपितु गाने के बोल हैं । पंद्रह वर्षीय बाल कवियित्री उन्नति तिवारी  के जो कि अपनी स्वरचित कविताओं और गीतों के माध्यम से जनता को जागरूक कर रही हैं । जब उनसे पूँछा गया कि वो क्या अपनी कोशिशों में कामयाब हो पा रही हैं तो उन्होंने बताया की बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं । आज के दौर में जहाँ फिल्मी गानों का चलन अत्यधिक है वहाँ पर भी हर आयुवर्ग मेरे गीत सुन रहा है , प्रभावित हो रहा है और प्रशंसा भी कर रहा है । जब मेरी गुरुमाँ ने गीत लिखने कहा तो मैं थोड़ी असहज हुई पर चुनावी माहौल था और कुछ दिन पहले ही विधानसभा चुनाव हुए थे तो उस माहौल की यादें भी ज़हन में थी इसलिए काफ़ी अच्छा कर पाई ।  बाल कवियित्री ये अपील करना चाहती हैं की शत् प्रतिशत मतदान से ही देश का विकास होगा इसलिए मतदान अवश्य करें । अपनी जिम्मेदारी निभाएं।

गुरु शिष्य परंपरा का है निर्वहन
संभागीय बाल भवन संचालक श्री गिरिश बिल्लौरे जी ने बताया कि आज भी बाल भवन में गुरु शिष्य परंपरा ही चलती है । और हमारे इन बाल कलाकारों की नींव हैं बच्चों की गुरुमाँ  डाॅ रेणु पान्डे एवं शिप्रा सुल्लेरे जी , जो निरंतर बच्चों की पाॅलिशिंग कर उन्हें निखार रही हैं । और हर कार्यक्रम में रचनात्मकता की ऊँचाइयों के शिखर पर जाकर एकदम नया मसालेदार फ्लेवर नागरिकों के समक्ष प्रस्तुत करने पेश कर रही हैं ।

बाल भवन संचालक बताते हैं कि मूलतः हर कार्यक्रम में स्टैंडर्ड भाषा ली जाती है जिस कारण समाज के कुछ वर्ग नहीं जुड़ पाते हैं इसलिए हमारी बोली बुंदेलखंडी फ्लेवर को भी इस बार समाहित किया जिससे मनोरंजन भी हो , हर वर्ग तक बात भी पहुँचे , जो चीजें छूट रहीं हैं (हमारी बोली के प्रति स्नेह) , और एक बंधे बंधाएं फार्मेट से निकल कुछ नई पहल करें ।


इन बाल कलाकारों के लिए बस यही शब्द हैं :
छोटे पैकेट बडे़ धमाल .....
स्वीप में बाल कलाकारों का कमाल !!!!

लेखिका _ रुचि तिवारी 
Ground reporting : रुचि तिवारी , वृष्टि नारद , साकेत सिंह , कशिश पारवानी । 





Sunday, April 21, 2019

देश के महात्योहार के लिए दौड़ा पूरा शहर

ढलते सूरज और निकलते हुए चाँद की लालिमा के बीच जैसे ही शहर की सड़कें रंग बिरंगी लाडट्स जली और शहरवासियों नें रंग बिरंगी टि शर्टस् में दौड़ लगाई शहर का नज़ारा देखते ही बना । मौका था जबलपुर शनिवार 20 अप्रैल 2019  शाम 7 बजे से  हुई  " नियाॅन रन _ रन फाॅर डमोक्रेसी " रेस का । जिसमें शहरवासियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया । शहर के इतिहास में शायद पहली बार ऐसी रेस का आयोजन किया गया जो कि शाम को हुई और बहुत ही मनोरंजक एवं रचनात्मक शैली में संपन्न हुई ।
' नियाॅन रन _रन फाॅर डेमोक्रेसी ' का आईडिया शहर के  निगमायुक्त जी ने पेश किया चूँकि गर्मी का मौसम होने के कारण धूप हो जाती है एवं आॅफिशियल वर्कर्स तथा स्कूल काॅलेज स्टूडेंटस् की टाईमिंग भी मिसमैच हो जाती है इसलिए शहर में शाम के समय रेस का " ईवनिंग कार्निवाल " के रूप में आयोजन किया गया ।



पूरे 5 किलोमीटर की इस रेस में दस स्टाॅपस् बनाए गए थे जहाँ लोगों को डी जे राॅक म्युजिक एवं विभिन्न मनोरंजक प्रस्तुतियों का लाभ मिला। शहर की सड़कों पर लगी जगमग रंग बिरंगी लाईटों नें  सड़कों की चमक
में चार चाँद लगाई । विभिन्न काॅलेज के स्टूडेंटस् एवं कई कलाकारों ने जहाँ मनोरंजक प्रस्तुतियां दी वहीं बाल भवन के बच्चों एवं मत्तो बाई ने मतदान के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाई । कलाकारों द्वारा फिल्मीं गानों , रचनात्मक प्रस्तुतियों एवं डी जे के हाई वाल्यूम ने शहरवासियों की ऊर्जाशक्ति दोगुनी की ।
सुहानी शाम में जब कलरफुल शर्टस् के साथ सबको रेडियम बैंड्स दिए गए  , तो चमचमाते बैंड्स से सबके चेहरे भी चमक उठे और शाम और मस्तानी हो गई ।  शहरवासियों को उनके " राईट टू वोट " के प्रति जागरूक करने के लिए इस रेस में शहर के हर वर्ग एवं हर उम्र के लोगों नें बढ़ चढ़कर न केवल सिर्फ़ हिस्सा  लिया बल्कि प्रशासन की तारीफ़ भी की । जबलपुर के महाविद्यालयों में बाहर से आए जो विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं और शहर में ही निवास कर रहे हैं उन्होंने भी अपना उत्साह दिखाते हुए भाग लिया और मतदान की शपथ भी ग्रहण की । एक नयापन एवं रचनात्मक पहल  जहाँ लोगों के मोहा  वहीं सुव्यवस्था ने भी सबको आकर्षित किया क्योंकि जगह जगह पर बने स्टाॅपस् पर पानी की बाॅटलें , फर्स्ट एड हैल्प की सुविधा भी मुहैया कराई गई थी । रेस को कम्पलीट करने के बाद में मिले   रफ़्रिश्मन्ट से  बच्चे कुछ ज्यादा ही खुश नज़र आए ।
शहर में ऐसा समागम जहाँ हर आयु वर्ग सम्मिलित हुआ एक काबिल ए तारीफ़ पहल थी । स्वीप ( सिस्टिमैटिक वोटरस् ऐजुकेशन एंड ईलै्कटोरल पार्टिसिपेशन ) , नगर निगम एवं जबलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड की सुव्यवस्था , मनोरंजन एवं जागरूकता के रचनात्मक प्रयास के लिए वाह वाही तो बनती है । शहरवासियों को मतदान की शपथ दिलाकर ही रेस को हरी झंडी दिखाई गई थी और मैं भी आप सबसे यह अपील करना चाहती हूँ कि अपना दायित्व  जरूर निभाएं  , वोट करने जरूर जाएं ।  देश के इस महात्योहार को मनाएं , मतदान करके अवश्य आएं ।
लेखिका   रुचि तिवारी
Ground Reporting : रुचि तिवारी , वृष्टि नारद , साकेत सिंह । 

Sunday, April 7, 2019

अ ह्यूमन ! दैट्स इट !!!!


"तू हमेशा मेरे साथ रहेगी न ??" समीर ने रिया से भरे हुए गले से दबी आवाज़ में पूँछा ।

"अरे पागल ! मैं हमेशा तेरे साथ रहूँगी । तू ऐसा क्यों सोच रहा है?? क्या हुआ तुझे , और तू इतना उदास क्यों हैं ? " रिया ने समीर से पूँछा ।

"रिया सुन अगर मैं तुझे ऐसा कुछ जो बहुत ही कड़वा सच हो वो बताऊँ तो क्या तू मुझसे दोस्ती तोड़ देगी ?" समीर ने खुद को धांधस देते हुए थोड़ी हिम्मत जुटाकर कहा।

" देख ! तू हमारी दोस्ती के बीच किसी और को तो नहीं ले आया है न ! तू इतनी अजीब बातें क्यों कर रहा है आज ? बता जल्दी ।" रिया ने समीर से जिज्ञासापूर्वक पूछा ।

"रिया ऐसा कुछ भी नहीं है । बट टुडे आई एम वैरी सीरियस रिया । लिसन वैरी केयरफुली । मैं तुमसे ये बात और नहीं छुपा सकता ।" समीर ने कहा ।

"कैन यू कम  डायरेक्ट टू दी प्वाइंट ?? जलेबी की तरह क्यों घुमा रहा है ?  यार प्लीज़ सीधा-सीधा बोल न ।" रिया थोड़ी सहमी और दबी आवाज़ में बोली।

रिया और समीर दोनों एक दूसरे को बोलने सुनने का इंतज़ार कर रहे थे । समीर बार बार हिम्मत कर के भी हार जाता और रिया बस उसे टकटकी लगाए निहारती रही। काफी समय बाद बैठे-बैठे समीर अचानक बोला ~ " रिया , सब मुझे चिढ़ाते रहते हैं , मेरा मज़ाक बनाते हैं , न जाने क्या क्या  कहते है तुम्हें मुझसे दिक्कत नहीं होती ? "

रिया एक मिनट को तो चुपचाप रही पर फिर बोली "वो तेरा नहीं खुद का मजाक उड़ा हैं । क्योंकि वो भगवान की  रचना का अनादर कर रहें है। दे काॅल यू "गे" न , बट डिड दे नो अबाउट देम ? दे जस्ट मेक फन आॅफ एवरीथिंग । भगवान ने न उन्हें वैसे ही बनाया है जैसे हम तुम नार्मल आदमी औरत है । दे आर आल्सो अ ह्यूमन । दे टू हैव दी सेम राइट्स विच वी हैव । इवन उनकी लाईफ न इस सोसाइटी ने बर्बाद कर दी है । वो सबकी खुशियों में अपने गम को छुपाकर शामिल होते है। समाज उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं देता पर जब उनके यहाँ खुशियों का माहौल होता है तब बस उनकी याद आती है , उस समय उनको लगता है अरे इनका आशीर्वाद नहीं मिला तो जीवन में कमी रहेगी । इट मिन्स दे हैव मच इम्पारटेंस ईन सोसाइटी बट दी सोसाइटी डोंट वांट टू एकसेप्ट इट । एक बात समझ ले समीर वो कुछ भी हो , हैं तो इंसान ही न । जब लड़का-लड़की एक समान हैं तो किन्नर भी उन्हीं के समान है । दे डिसर्व ए बैटर लाईफ एंड इक्वल आॅपरचुनिटिस् ।"

रिया की बातों ने समीर के मन में हिम्मत की ज्योति जलाई और रिया का हाथ पकड़कर उसे सबके सामने काॅलेज आॅडिटोरियम में ले जाकर सबके सामने अपने लिंग , अपने वजूद का अस्तित्व बताया ।

समीर यह जानता था कि वह अब हँसी का पात्र बनेगा पर वह खुद के अस्तित्व के लिए लड़ने को तैयार हो चुका था। अब लड़ाई  थी समाज में समानता की । खुलकर जीने की।

_रुचि तिवारी

Saturday, April 6, 2019

सबसे पहले वोट, फिर करना कोई काम नोट

06 अप्रैल 2019, शनिवार
जबलपुर ।

एक ओर जहाँ चुनाव पूरे देश में ज़ोर शोर से सर चढ़कर बोल रहा है वहीं कार्यपालिका मतदान की तैयारियों  के साथ-साथ मतदाता को जागरुक करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है । समाज के हर वर्ग तक पहुँचकर वोट करने की अपील कर रही है। इसी उद्देश्य से आज स्वीप (SVEEP) के मतदाता जागरुकता अभियान के अंतर्गत "मतदान करें हम" कार्यक्रम का आयोजन सतपुड़ा क्लब, सिविल लाईन , जबलपुर में रेल्वे अधिकारियों को मतदान के लिए प्रेरित करने किया गया । इस अभियान के अंतर्गत बालकलाकार भी जागरुकता में अपना पूर्ण समर्थन दे रहे हैं ।

आयोजन की शुरूआत में ही जबलपुर के युथ ब्रांड अम्बेस्डर आर जे (RJ) रिक्की ने सभी अधिकारियों से दरख्वास्त की कि मतदान दिवस को अवकाश या पिकनिक दिवस बिल्कुल न बनाएँ , मतदान करने जरुर जाएँ ।

बाल भवन के प्रतिभाशाली बाल कलाकारों ने अपनी प्रतिभा के माध्यम से अधिकारियों से मतदान करने की अपील की। कलाकारों नें नाटक , गायन , चित्रकला एवं नृत्य विधा में अपनी प्रतिभाओं का प्रदर्शन किया । आयोजन में मत्तो बाई ने पूरे समय मतदान की आवश्यकता का बारम्बार ज्ञात करवाया । कलाकारों द्वारा प्रस्तुत की गई हर प्रस्तुति मतदान केंद्रित थी , जहाँ " जागो जागो देश के मतदाता " , " बूथ तलक तुम जाना , मतदान करके अवश्य आना" गीतों ने काफी प्रभाव डाला ।

कार्यक्रम में जिला पंचायत अधिकारी एवं स्वीप की नोडल आॅफिसर (CEO) IAS श्रीमति रजनी सिंह जी ने समाज के विभिन्न वर्गों के मतदान की आवश्यकता एवं स्वीप के विभिन्न योजनाओं से रुबरु करवाया । स्वीप के अभियान के अंतर्गत आगमी दिनों में होने वाली "नियोन रन" (रन फाॅर डेमोक्रेसी) 20 अप्रैल में भी भागीदारी लेने की अपील की।

जबलपुर रेल्वे डिविजन के डी आर एम (DRM) डाॅ . मनोज सिंह ने चुनाव को लोकतंत्र का त्योहार बताया और वोट डालने के लिए सबसे अपील की। उन्होनें कहा कि     मतदान का शत प्रतिशत कराने 18 हजार रेल कर्मियों के पोलिंग हेतु सुनिश्चित प्रयास कराए जाएँगे ।  उन्होंने कहा कि जबलपुर डिविजन के अंदर आने वाले सभी स्टेशनों पर मतदान के लिए जिंगल्स व शाॅर्ट फिल्म चलाकर लोगों को जागरुक किया जाएगा ।  साथ ही रेल्वे साधनों पर मतदान को बढ़ावा देने नि:शुल्क विज्ञापन चलाए जाएँगे ।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि IAS श्री राघवेन्द्र सिंह (DM) बक्सर , बिहार , डाॅ . मनोज सिंह (DRM) , सुधीर सरवरिया (ADRM) , डाॅ . नील रेखा ,महिला अध्यक्ष (WWO) आदि अधिकारी उपस्थित रहे । बाल कलाकारों में पलक गुप्ता , प्रगीत शर्मा , मानसी सोनी , रंजना निशाद , श्रेया खंडेलवाल , उन्नति तिवारी ,विशेष शर्मा , शिखा पटेल , अविनाश कश्यप , यशी तिवारी , आर्या सेन मौजूद रहें । आयोजन में श्री गिरीश बिल्लौरे , श्री अखिलेश पटेल , डाॅ . रानू पांडे आदि की उपस्थिति रही एवं श्री अभिराम खरे senior DFM ने कार्यक्रम की  अध्यक्षता की।
_रुचि तिवारी



Sunday, March 24, 2019

कलम के सिपाही


लेकर पन्ना और स्याही,
बने हैं हर सड़क के राही ,
हैं ये सबके माही ,
निकले हैं कलम के सिपाही ।

शब्दों से करते हैं ये वार ,
नहीं चाहिए और कोई औजार ,
कलम और पन्ने से इनको प्यार ,
झट से उँकेरे मन में आए सभी विचार ।

लफ्जों का होता हर पल ख्याल ,
बेबाकी से कहने पर कभी न करते ये मलाल ,
बखूबी बयां करते हैं हर हाल ,
देखो तो ज़रा इनकी खूबसूरत चाल ।

भिन्न भिन्न विधा आज़माते ,
हर विषय पर हैं चढ़ जाते ,
अनुसंधान तक है उतर आते,
लिखने को क्या नहीं कर जाते ।

जनता को अवगत हैं करवाते,
कल्पना संग सच्चाई बतलाते ,
साहित्य में संस्कृति सजाते,
यूँ हीं कलम के सिपाही नहीं कहलाते ।

निर्भीक हो कलम चलाते,
लाज अपनी दाव पर लगाते,
आँधी पानी नहीं इन्हें रोक पाते,
जब जब ये कलम चलाते ।

आलोचक ,प्रोत्साहन सब हैं मिलते,
राम राम करते हैं ये चलते ,
कभी नहीं इनके कर थकते,
न ही विचारों में जंग है लगते।

जादूगर हैं लफ्जों के,
माली हैं विधाओं के,
किसान हैं विचारों के,
सिपाही हैं ये कलम के।

                            _रुचि तिवारी......

Wednesday, March 13, 2019

हमारा बसंत होगा

माई ,ये बसंत क्या होता है ? रवि ने दुलारी से पूछा ।

बाद में बताती हूँ , अभी फटाफट काम करने दे । दुलारी जल्दबाजी में काम समेटे हुई बोली।

पीछे खड़ी श्यामा दीदी ने रवि के बोल सुन ली थी सो रवि को अपने पास बुलाया और समझाया।

श्यामा दीदी वहीं है जिनके घर रवि की माई काम करती है।

बसंत एक ऋतु होती है। ऋतु को तुम मौसम समझ लो। बसंत को ऋतुराज कहा जाता है। पतझड़ के बाद आई ये ऋतु प्रकृति को सजाती है। मनमोहिनी है । पर्यावरण में हरियाली छा जाती है। पेड़ नए नए फूलों से लद जाते है । प्यारी प्यारी हवा प्रकृति के सुनहरे रूप की ओर आकर्षित करती है । बसंत ऋतु सबको बहुत पसंद है । इस ऋतु को तुम ऐसे समझो की ये पर्यावरण की खुशी की कुंजी है क्योंकि पतझड़ जहाँ पर्यावरण का निखार उजाड़ देता है वहीं बसंत आकर पर्यावरण का घर फिर खुशियों से सजा देता है। श्यामा दीदी ने रवि को बहुत प्यार से समाझाया।

बड़ी माँ मतलब की जब मैं पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बन जाऊँगा , तब मेरा बसंत आएगा।  पाँच वर्षीय रवि की इतनी बड़ी बात सुन श्यामा दीदी बोली ,कहना क्या चाह रहे हो रवि?  बड़ी माँ , मतलब जब मैं बड़ा अफसर बन जाऊँगा तो मेरी माई को घर घर जाकर काम नहीं करना पडे़गा , कोई उसका तिरस्कार नहीं करेगा और सब मेरे दोस्त बन जाएँगे । तभी तो हमारा बसंत होगा।

                                           _रुचि तिवारी
                                               जबलपुर

Monday, March 11, 2019

परीक्षा

भरे समाज उस नारी की हो रही थी बुराई ,
मैंनें भी पूँछ ही ली तुमको यह बात किसने बताई ?
माँ मुझे खींच कर तुरंत अंदर लाई ,
बोली तुझमें इतनी हिम्मत कैसे आई ?

मैं बोली , मैं कुछ समझी नहीं माई ,
कहाँ मैंनें अपनी ताकत दिखाई ?
वो बोलीं भरे समाज तूने जुबां कैसे चलाई ?
क्या तूने लाज शर्म सब है बेच खाई

मेरी आँखे तब चौंक गई ,
मैं अपनी नजरों में गिर गई ,
फिर भी मैं माँ से पूँछ गई ,
इसमें मैं क्या गलत कर गई ?

मेरा बोलना क्यों गलत है ?
लोगों का बातें बनाना क्यों नहीं ?
मेरा टोकना क्यों गलत है ?
लोगों का नज़रिया क्यों नहीं ?

माँ मेरे मन को भाप गई ,
कौतूहल को नाप गई ,
सही समय है समझ गई ,
मुझे समझाने बैठ गई ।

ओ मेरी बिटिया रानी ,
बडे़ गौर से सुनना ,
सब है तुमको समझना ,
आज नहीं तो कल दुनियादारी में है पड़ना ।

हो तुम एक नारी , हर क्षण नई परीक्षा से है गुज़रना,
पल पल राह में मिलेंगे काँटे , पथ से मत मुकरना,
बोलेंगे लोग, टोकेंगे लोग , तुम मत डरना,
उस नारी से आज सीख लो जिसके लिए तुमने शुरु किया कहना।

भटकाएँगे , धमकाएँगे, तुमको वो डराएँगे ,
ओ मेरी प्यारी बिटिया , हर बढ़ते पग पर तुमसे वो टकराएँगे,
कदम कदम तुमको वो परिक्षण कर आजमाएँगे,
जीवन एक कसौटी नाम देकर बहुत परीक्षा करवाएंगे ।

जीवन की हर परीक्षा तुमको आस निराश देगी ,
तुम थकना मत तुम रूकना मत ,
बस बढ़ती जाना,
निराशा में भी आशा जगाना , यही है जीवन की असल परिक्षा।

_ रुचि तिवारी
Instagram : ruchi_tiwari31

Sunday, March 3, 2019

You Have To Be....



You came in my life as a cherub , she said .

What I had done , why are you saying this? , he replied.

You were there when no one was there to guide me, motivate me , encourage me and the most important who believe on me. Yeah , that I can also do it. , she mentioned .

I just saw the glitter of your eyes towards the work , I recognized your that ability which might has been not visible to others yet. And I just make a effort . Don't call me as a cherub .
He explained.

Why should not ? You came in my life kept your all efforts , make me able and now going . Is it not enough for saying you cherub ?  She asked .

He just smiled and understood that she doesn't 't want to let him go.

She asked again , now who will help me decisions ? Who will tell me difference ? With whom I will freely and fearlessly talk ?
He replied : No one is with you forever . You have to be first of all your own. Once you will be your you will be able to manage any condition . Just believe in yourself. I'm always yours . Whenever you will need me I will be inside you ,beside you,  just recognise your self.

Ruchi Tiwari

Monday, February 25, 2019

कलम के सहारे

मिनट , घंटे , दिन , हफ़्ते गुज़रे ,
न जाने कितने शब्द हमने बोले ,
शैतानियों , नादानियों में थे बिखरे ,
हाय ! कितनी मस्ती में थे उलझे ।

वो साथ में आना ,
और तेरे साथ ही जाना ,
आधे से ज्यादा समय तेरे साथ बिताना ,
हँसी खुशी वो वक्त का गुज़रना ,
और दिन का शाम में ढलना ।

तेरी अठखेलियाँ ,
मेरी शैतानियाँ,
तेरी रुसवाईयाँ ,
मेरी नादानियाँ ,
भूल सी हुई गलतियाँ ,
हाय ! तेरा बिफ़रना और मेरा मनाना ।

सुहाने दिन गुज़र रहे थे ,
हम भी तो बेबाकी से कह रहे थे ,
मंजिल की ओर चल रहे थे ,
शायद कुछ सुनकर अनसुना कर रहे थे।

क्या अनसुना किया ,
वो हर एक अल्फ़ाज़ जो आँखे चीखती रहीं ,
हम नज़रअंदाज़ करते रहे ,
अल्फ़ाज़ लबों पर तब आए नहीं ,
और फिर कलम के सहारे हम चीखते रहे।

_रुचि तिवारी



Wednesday, February 20, 2019

Farewell speech


Teacher : I am very happy while announcing that you guys are going to have your farewell party next week. Best wishes to you all .

After the announcement the whole class just started  flying in air with the seven colors except me. The discussions started among the batchmates but a great decision debate was going-on  inside me . When  everyone was on busy in  making decisions I was busy in fighting with my aspirations and the fears. In spite of being happy for beginning of new chapter of life I was scaring with the new glittering lights.
My inner voice was saying 15 years you were here....Your second home...Your family having teacher's as mother ~ father, friends as brother ~sister, guider ,motivator , how will you able to leave them all ....
How will you live without the unknown persons as now after school you have to go out for higher studies. The world which is full of frauds will be you able to survive ? And many more such kind of thoughts while the other side of my inside the inner  voice was holding my hand giving relief and was saying only few days are left, let's make the memories so hard that can't never be forgot.  Now, the time has came when you have to start a new chapter of life where you will not only live but learn how to survive , how to adjust , how to prove yourself ,  now the time has came when you have to put your all efforts in showing that     " you are ".  "What you are among this crowd " ?

I heard this side of my soul and just started preparing for my first farewell with my second family.

If today I m on the stage in front of all of you so just because of my souls that voice which encouraged me . Yes , its true that my other side voice realised me to recognize me that what you all are for me but that side was holding me to stop here which you all my lovely teachers had not ever teach me... My dear friends whom always pushed me in every activity , whether in the field of academic or cultural , whether it was project or practical , whether it was sorrow or enjoyment you all encouraged me ever.
I am unable to say thank or greet anyone but I really say that I m going to miss all these memories everyday , every minute when I will trying to make new friends at college , when I   am going to arguing with teachers , when I will make any assignments or going on any hangout whatever I will do just going to remember you all every second.

The great applause just heard and my eyes with almost everyone was wet and when I all this completed unable to understand that literally was that I  And had depicted my condition after the announcement . I left the stage and came down getting lots of blessing from teachers and friends .

Ruchi Tiwari

Saturday, February 16, 2019

मुसाफ़िर घर से निकलता है


वक्त का पहिया चलता है,
मुसाफ़िर घर से निकलता है,
अग्यारों से जा मिलता है,
दुनिया के दस्तूर समझता है,
पग पग मंजिल ओर बढ़ता है,
अपना इतिहास गढ़ता है,
पल पल में खुद ही सँवरता है,
न जाने कब कब खुद से जंग करता है,
गिरते पड़ते चलता है ,
लकीरें से लड़ता भिड़ता है ,
टीलों से टकराता है ,
मुसाफ़िर चलता जाता है,
कभी बहकता कभी ठहरता ,
स्वविवेक को आज़माता है ,
इस रंगीन जमात में ,
सबका साँचा रूप दिखता है,
दिन महीने रात सब गिनते चलता है,
लक्ष्य की भूख लिए इत्माम की ओर चलता है,
जैसे जैसे सफलता की ओर बढ़ता है ,
धीरे धीरे ही अपनी किस्मत बदलता है ।
                             
                        _रुचि तिवारी

Friday, February 8, 2019

अस्तित्व की राह पर...

तमन्नाओं ने मुझे किस राह पर लाया,
मैं कभी तकाज़ा ही नहीं लगा पाया,
पूँछा जो खुद से मैनें खुद की रज़ा,
पहला ही अक्षर ‘अ’ से “आस्तित्व” आया..।
आरजू की राह से जो आस्तित्व के पथ पर आई,
खुद को मैं अकेला न पाई ,
थी एक बहुत बड़ी भीड़,
जिसमें हर कोई ढूँढ रहा था अपनी रीढ़।
एक पिता मिले मुझे उस राह में,
लीन थे जो अंतर्मन की आह में।
बेबसी और लाचारी टपक रही थी चेहरे से,
क्योंकि नकाबिल थे वो अपनी नजरो में।
बेबाकी से मैनें पूँछ ही लिया,
आप कैसे और क्यों इस राह में भला ???
नाकामयाब थे बेटे की फरियाद में,
सो अपने वजूद को तलाशने मैं चला।
आगे जो चंद कदम मैं बढ़ाई,
जाकर एक बूढ़ी माँ से टकराई ,
देख उनकी हालत, आँखे मेरी भर आईं ,
इस उम्र में अपने बेटे को वो कैसे न सुहाई??
दूर कुछ कदम एक बेटा था खड़ा,
बेबसी की सीमा तक था चढ़ चुका,
घर वालो पर बोझ था वो बना,
घर का बेटा होकर भी ज़िम्मेदारी न बांट सका।
आंखे पोंछ मैं आगे बढ़ रही थी,
मुसलसल सबसे मिलते चल रही थी।
एक पीड़ित लड़की किनारे रो रही थी,
अपने आस्तित्व  को ही कोस  रही थी।
सितमगिरी को सह रही थी,
खुद से ही कितना कुछ कह रही थी।
कदमों का सिलसिला फिर बढ़ा,
जाकर नदी के तट पर रुका।
ज्यो ही मुँह धुलने को हाथ था बढ़ा ,
मैनें खुद को तुरंत पकड़ा।
उस इठलाती नदी में अब वो बात नहीं रही,
अपनी हस्ती से कही वो खो रही।
चाहा मैनें जानना वजह उसकी बदहाली की,
बोली मैं अपना वजूद ही गंवा चुकी।
न मुझमे अब कल-कल का स्वर है,
और न ही वो इठलाती धार।
सूख चुकी मैं इस कदर कि,
एक लंबे नाले जैसा हुआ हाल।
दौड़ी भागी मैं बिना एक पल गँवाए,
खडे़ थे वो कटे हुए पेड़ अपनी जड़ जमाए,
सूखी शाखों से मुझसे कहलवाए,
तुम इंसानों को मेरे हर पत्ते क्यों न भाए ???
जम गये ऐसे पैर मेरे,
होंठो पर सिकुडन आई।
खुद के आस्तित्व को सब तलाश रहे,
प्रकृति की सुध कैसे न आई।
एक वीरान सा महल है,
सब लड़ रहे अपने वजूद की लड़ाई।
ये एक ऐसी कश्मकश है,
कि जुदा हो रहे है अब भाई-भाई…..!!!
                       _रुचि तिवारी।

Wednesday, January 30, 2019

ये जिंदगी भी ....

ये जिंदगी भी कितने रंग उड़ाती है ,
पहर दर पहर नए सपने सजाती है ,
सोचकर कई दफा ख्वाब सुहाने ,
मेरी आँखे हर मरतफ़ा नई चमक लाती है ।
ये जिंदगी कितना कुछ दिखाती है ,
कभी किसी का दर्द तो कभी प्यार जताती है ,
याद करने बैठ जाऊँ जो सबको ,
तो नैनों में हजार तस्वीर उतर जाती है।
ये जिंदगी कितना कुछ कर जाती है ,
हर किसी की झोली भर जाती है ,
कहीं मोह या दया भाव तो कहीं लालच या अहं दे जाती है ,
खुद का जो देखूँ दामन तो सिर्फ़ कलम रह जाती है ।
ये जिंदगी कितने गीत सुनाती है ,
मुसलसल नई-नई धुन गाती है ,
खो जाती हूँ जो इसमें कहीं ,
तो लबों पर मेरे सिर्फ़ कविताएँ रह जाती है।
ये जिंदगी भी ............
                            .......रुचि तिवारी

Tuesday, January 15, 2019

देश के वीर

बंजरो में रहते हैं ,
उपजाऊ को बचाते हैं ,
दिन रात जागते हैं ,
और हमें महफूज़ बनाते हैं ,
गर्मी ठंडी में भी जंग में जाते हैं ,
हमारे लिए अपनी जान पर खेल जाते हैं,
ये परमगति को पाते हैं ,
और शहीद कहलाते हैं ,
अपना घर पल में छोड़ ,
सरहद को चले जाते हैं ,
देश को महफूज़ बनाने गोली छाती पर खाते हैं ,
हर विपत्ति का सामना डटकर कर जाते हैं ,
धरा,आकाश ,नीर हर जगह पर जाते हैं ,
देश की वीर जवान हर हद को चीर जाते हैं ।
                              _रुचि तिवारी
#भारत माँ की शान हैं
#देश की ये जान हैं
#सेना दिवस
#armyday

Thursday, January 10, 2019

विश्व हिंदी दिवस

आज का दिन एक विशेष दिवस के रूप में भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में मनाया जा रहा हैं । और यह दिवस कोई साधारण दिवस नहीं अपितु एक भाषाई दिवस है , " विश्व हिंदी दिवस " है।
हिंदी एक ऐसी भाषा है जो समुंदर है और जिसमें न जानें कितनी छोटी बडी़ नदियाँ (भाषाएँ, बोलियाँ) आकर समाहित होती जा रहीं हैं और हिंदी उन्हें सहृदय स्वीकार भी कर रही हैं ।
हिंदी का विशाल हृदय सबको पल भर में अपना बना लेता है और इस तरह अनेक भाषा बोली उसमें घुल मिल जाती हैं कि परायापन समझ ही नहीं आता ।
              क्यों मनाते हैं दिवस ?
प्रायः हम सभी दिवस तो मना लेते हैं पर हमें यह नहीं पता होता की हमने यह विशेष दिवस मनाया क्यों या उस विषय पर विशेष दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
दुनिया में हिंदी के व्यापक प्रचार के लिए 10 जनवरी 1975 को नागपुर में पहला विश्व हिंदी सम्मलेन का आयोजन हुआ । और फिर सिलसिला निरंतर चला । साल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने हर वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाए जाने की घोषणा की और तब से हिंदी के प्रचार हेतु हर वर्ष मनाया जाने लगा ।
                   हिंदी का प्रभाव :
हिंदी का वैश्विक स्तर पर काफी प्रभाव हुआ है ।
»     एक तरफ़ जहाँ पहले मोबाइल कीबोर्ड  में केवल अंग्रेज़ी फौंट उपलब्ध रहते थे वहाँ हिंदी को स्थान मिला ।
»    इंटरनेट पर कंटेंट और इंफाॅरमेशन जहाँ हिंदी भाषा  में नहीं मिलती थी वहाँ अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी को प्राथमिकता दी गई  ।
»    सभी सर्च ईंजनस् पर हिंदी टाईपिंग एवं वाॅइस कमांड दोनों तरीकों से सर्च करने की प्रक्रिया ने हिंदी के महत्व को दर्शाया।
»     विभिन्न वेबसाइटों पर मौजूद हिंदी साहित्य , लेख, आलेख, कविता ,गज़ल ,मुक्तक , ब्लाॅग , रचनाओं ने हिंदी का अलग स्थान दर्ज किया ।
»     अब आॅनलाईन न सिर्फ़ अंग्रेज़ी माध्यम की किताबें मिल रहीं हैं वरन् हिंदी के उपन्यास , कहानी-संग्रह और किताबों का अंबार एवं PDF फाॅरमेट भी मौजूद है ।
»   सोशल साईटों पर हिंदी स्टेट्स एवं पोस्टों का बढ़ता रूझान ।
»   अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को पढ़ने-लिखने और बोलने सीखने का ग्राॅफ बढा़।
हिंदी की सर्वसमाहित करने की प्रवृत्ति ने कहीं-न-कहीं हिंदी को प्रदूषित कर दिया है। एक ओर जहाँ साहित्यिक भाषा से दूरी होती जा रही है वहीं दूसरी ओर गलत उच्चारण और मात्राओं के अज्ञान को बढा़वा मिल रहा हैं । हिंदी को प्रदूषण से मुक्त कराने हम सभी को अपने-अपने स्तर पर कई छोटे-बड़े प्रयास करने होंगें ।
                                               _रुचि तिवारी
               

Sunday, January 6, 2019

नए चैप्टर के असाइनमेंट ...

टीचर (जिंदगी) ने हमारी बुक का नया चैप्टर (साल) शुरू कर दिया है । उस चैप्टर (साल) का पहला टाॅपिक (जनवरी) चल रहा है। टीचर (जिंदगी) ने बहुत कुछ बताया है इस चैप्टर में करने को ।  उन्होंने समझाया इस चैप्टर (साल) में 12 टाॅपिक (महीने)और 365 सब~ टाॅपिक (दिन) हैं । हर एक सब~टाॅपिक (दिन) तुम्हें हर रोज़ कोई न कोई नया ज्ञान देगा ।  तुम्हारे सभी टाॅपिक तुम्हें चुनौतियां देंगे खुद को साबित करने की । और तुम सबको अपने वजूद का निर्माण इन्ही टाॅपिक एवं सब~टाॅपिक से मिली सीख से करना होगा। स्टूडेंट्स (लोगों) ने कई सारे असाइनमेंट (रेजोल्यूशन) के बारें में समझकर अपने चैप्टर (साल) को मनोहारी एवं टीचर (जिंदगी) को इम्प्रेस करने की ठान ली हैं ।
जो स्टूडेंट्स (लोग) पिछले चैप्टर में किसी कारण से अपने असाइनमेंट (रेजोल्यूशन) में पिछड़ गए थे या ज्यादा नंबर (सुख~सुविधा) नहीं ले पाए थे , इस बार पूर्णतः फोकस कर रहें है ज्यादा से ज्यादा नंबर पाने और क्लास (दुनिया) के इतने सारे स्टूडेंट्स (लोगों) के बीच में फिर से न पिछड़ने की ।
रेजोल्यूशन (असाइनमेंट)तो स्टूडेंट्स(लोगों) ने लिए पर टीचर (जिंदगी) जो इस चैप्टर(साल) में इतनी सारी चुनौतियां देने वाली हैं उन चुनौतियों से सामना करते हुए कब तक असाइनमेंट पूरा करेंगे या खुद को बदल लेंगें ये तो नया चैप्टर(साल) बताएगा ।

थैंक्यू KK! हम रहें या न रहें कल, कल याद आएंगे ये पल, प्यार के पल...

KK, 90's के दौर का वो नाम जिसकी आवाज सुन हम सभी बड़े हुए। 'कुछ करने की हो आस-आस... आशाएं' या 'अभी-अभी तो मिले हो, अभी न करो ...