Tuesday, May 14, 2019

अगर नया जन्म लूँ ....

माय डियर डायरी " पिचकू " ,

मैं तुमसे रोज़ाना इतना कुछ कह जाती हूँ यह मुझे तब पता चलता  है जब तुम्हारे सभी पन्ने भर जाने वाले होते हैं वो भी कैसे , सिर्फ़ मेरी बातें सुनते सुनते और फिर तुम्हारा हो जाता है नया जन्म !!! मैं नई डायरी जो खरीद लाती हूँ । तुम न बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हारा बारम्बार पुनर्जन्म हो जाता है वो भी एक ही जगह , एक ही घर में और तो मेरे ही पास मेरी  साथी बन जाती हो । कभी-कभी सोचती हूँ " मैं फिर से पैदा होती तो ? " हाँ , जानती हूँ की यह असंभव है , तुम इतना हँसो मत पर एक बार गौर तो कर ! तुम हर दफा अपने हर नए जन्म में मेरे ही पास आती हो , तुम्हें भी मुझसे काफी शिकायतें होंगी । आखिर तुम मेरी ही तो सुनती हो कभी अपनी नहीं कह पाती ।  पर आज मैं तुमसे साझा करती हूँ कि मुझे क्या शिकायतें हैं और अगर मैं फिर से जन्म लूँ तो कहाँ जन्मूँ ।
 एक ऐसे परिवार में मेरा जन्म हो जहाँ सुकून से सभी रहें , एक दूजे से हँसे बोले , आपस में स्नेह तो हो पर एक दूसरे के लिए समय भी हो । विचारों में बाध्यता न हो न हीं विचार एकल पहलू हो । बदलाव को अपनाया जाता हो और तो और विश्वास की परत भी हो । रिश्तों का नाम लेकर कार्यों में बंधन न हो ,  पंरपराओं और संस्कारों संग आधुनिकता का मिश्रण भी हो । कार्यों को थोपने के बजाए जिम्मेदारी का एहसास हो , टेक्नोलॉजी सिर्फ़ आॅफिस में और घर में प्यार दुलार हो । संबंध मधुर हों मीठी-मीठी तकरार हो । कर्तव्यों के लिए मजबूर करने के बजाय उनकी महत्ता को समझाया जाए । भावों को नहीं जरुरतों को पहले देखा जाए । विचारों में खुलापन और मन में नएपन को अपनाने की ललक हो । कुछ कर गुजरने से पहले ही फैसले की सुनवाई न हो जाए । पौराणिक तरिकों में बदलाव कर एक बार नए को कर देखने में हर्ज कैसा ???
 हाँ , मुझे परिवार में बदलाव चाहिए क्योंकि मैंनें बचपन से सुना है पहले शिक्षक माता पिता होते हैं और पहला विद्यालय परिवार \ घर होता है । पहले मेरा घर बदलेगा कल शायद यह बदलाव किसी और को भी वाजिब लगे और परसों किसी और को । जब  परिवार सहायक होगा तो समाज होगा क्योंकि समाज भी तो परिवार है । एक एक परिवार के मिलने से समाज बनता है और समाज में हम रहते हैं । कई दफा मैंनें  देखा है मनचाहा काम नहीं करने मिलता क्यों ? क्योंकि  समाज क्या कहेगा । जब परिवार में बदलाव आएगा स्वाभाविक है समाज में आएगा । हम यह तो सोच लेते हैं कि समाज क्या कहेगा पर यह भूल जाते हैं समाज हमसे बना है। हाँ ! मुझे बदलाव चाहिए क्योंकि मैंने यह भी सुना था  " वसुधैव कुटुम्बकम " !!!!
चलो मेरी शिकायतों का पिटारा बंद करती हूँ और सो जाती हूँ    पिचकू तू भी आराम कर।

तेरी साथी
रुचि तिवारी ।

2 comments:

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KK, 90's के दौर का वो नाम जिसकी आवाज सुन हम सभी बड़े हुए। 'कुछ करने की हो आस-आस... आशाएं' या 'अभी-अभी तो मिले हो, अभी न करो ...