Wednesday, May 29, 2019

मैं चिरैया !!

नमस्ते ! मैं चिरैया ,

या खुदा कैसा ये कहर है,
कहने को तो ग्रीष्म लहर है,
जूझते हम हर पहर हैं,
क्योंकि शायद ये शहर है ।

सिर्फ़ कंठ पर नहीं
उड़ान में भी ठहर है,
बडे़ अच्छे से कहते हो तुम
हमारे पास पर हैं ,
उपर आसमान में बहुत तपन हैं,
काट दिए तुमने सब वृक्ष
हमारे पास नहीं अब घर हैं ।

जलते हमारे भी पंख हैं,
सिर्फ़ तुम्हारा ही नहीं बदन है,
अपने आशियाँ के लिए
रौंद दिए तुमने प्रकृति के नियम हैं,
हम भी बचे अब घटते क्रम में हैं ।

ऐ इंसानों ! करनी अब तुमको मेहर है,
सिर्फ़ हमें ही नहीं पूरे पर्यावरण को बचाना है,
मुरझाई प्रकृति को हँसाना है,
अपना कर्तव्य निभाना है,
हाँ, मानव योनि का कर्ज़ चुकाना है ।
                                    ...........रुचि तिवारी 

Monday, May 20, 2019

मैं तुम सा नहीं पर ....


कितनी आसानी से कहती है वो,
तुम नहीं समझोगे , एक नारी की तड़प ,
उसका दर्द , उसके एहसास ,
उसके अधिकार , उसके रिवाज़ ,
उसकी जिम्मेदारी , उसकी पहचान ,
क्योंकि तुम तो ठहरे एक लड़का ,
जिसे है पुरुष होने का गुमान ।


कैसे समझाऊँ मैं वैसा नहीं यार ,
मैं भी हूँ अकेला और अग्यार ,
जूझता हूँ रोज़ नई कसौटी से,
क्या इतना भी हक नहीं कि मिले मुझे थोड़ा-सा प्यार ।


मानता हूँ जताता नहीं ,
हाल ए दिल मैं बताता नहीं ,
मत समझो गैर जिम्मेदार मुझे ,
रोना तो आता है मुझे भी पर मैं आँसू बहाता नहीं ।


तुम्हारी ही तरह मेरी भी जल्द सुबह दिन की शुरुआत होती है,
नई-नई कसौटियों से रोज़ मुलाकात होती है,
फिर भी मेरे चेहरे पर सिर्फ़ मुस्कान होती है,
क्योंकि मुझपर निर्भर मेरे घरवालों की आस होती हैं ।


घर से निकलता हूँ जो सुबह ,
दिमाग में माँ ,पापा , पत्नी , बेटी के ज़ज्बात होते हैं ,
कमी न हो उनको किसी चीज़ की ,
जरुरतें क्या है उनकी मन में बस यही सवाल होते हैं ।


सबकी फिक्र है मुझे,
और चाहत भी है,
माना बाहर से थोड़ा सख्त सही,
पर इसका मतलब यह नहीं कि परवाह नहीं मुझे।


हजारों सवालों का निरंतर मंथन करता हूँ ,
सबकी भलाई का मैं चिंतन करता हूँ ,
चूक न हो मुझसे खुश रखने में सबको,
दिन रात लाखों कोशिशें इसलिए बार बार करता हूँ ।


कभी झल्लाता कभी चिल्लाता हूँ ,
हाँ , शायद तब मैं खुद से हार जाता हूँ ,
सबकी आस और मान मैं ही तो हूँ ,
यही सोचकर फिर से काम पर लग जाता हूँ ।


कईयों से मिलना और कई काम करता हूँ ,
पर सबकी छोटी से छोटी ख्वाहिश का भी ख्याल रखता हूँ ,
ज़माने से तो लड़ लेता हूँ ,
पर खुद के वजूद में कभी-कभी सवाल करता हूँ ।


एक प्राथना रोज़ करता हूँ ,
माँ की तरह उदार और तुम्हारी तरह सहनशील बनूँ ,
हँस कर हर चुनौतियों का सामना करुँ,
हाँ , एक आदर्श बेटा , पति और पिता रहूँ ।

_रुचि तिवारी
Ig : ruchi_tiwari31

Saturday, May 18, 2019

यादें कमा कर आते हैं

चलो आज थोड़ी "मटरगश्ती" कर आते हैं ,
यादों के "गुल्लक" के लिए ,
कुछ यादें "कमा" कर आते हैं !!!!
किसी को "हँसा" कर आते हैं ,
किसी को "छेड़" कर आते है !!!
किसी की "चोटी" खींच ,
चलो थोड़ा उसे "दौड़ा" के आते हैं !!!
उसे "थका" के आते हैं ,
और खुद "छुप" जाते है !!!
कुछ "मस्ती" , कुछ यादों की कशती ,
में चलो आज "सैर" कर आते हैं !!!
कुछ "खट्टी-मीठी" यादों के साथ ,
स्मृति के "सागर" मे तैर कर आते हैं !!!
थोड़ा तुम "खोना" थोड़ा हम खोयेंगे ,
चलो एक एक "गोता" लगा कर आते हैं !!!
स्मृतियों का एक "आशियाँ" बनाते हैं ,
हमारी तुम्हारी कुछ यादें "सजा" कर आते हैं !!!
चलो आज थोड़ी "मटरगश्ती" कर आते हैं ,
यादों के "गुल्लक" के लिए ,
कुछ यादें "कमा" कर आते हैं !!!! 

                      _रुचि तिवारी एवं आ. लता खरे जी

नोट : यह कविता  दोनों  कवयित्रियों ने मिलकर साझेदारी में लिखी है। आज के युग की लेखन विधा में मशहूर "Collab(जुगलबंदी)" विधा के अंतर्गत इसे पूर्ण किया गया है एवं पब्लिश भी दोनों की सहमति से किया जा रहा है ।

Tuesday, May 14, 2019

अगर नया जन्म लूँ ....

माय डियर डायरी " पिचकू " ,

मैं तुमसे रोज़ाना इतना कुछ कह जाती हूँ यह मुझे तब पता चलता  है जब तुम्हारे सभी पन्ने भर जाने वाले होते हैं वो भी कैसे , सिर्फ़ मेरी बातें सुनते सुनते और फिर तुम्हारा हो जाता है नया जन्म !!! मैं नई डायरी जो खरीद लाती हूँ । तुम न बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हारा बारम्बार पुनर्जन्म हो जाता है वो भी एक ही जगह , एक ही घर में और तो मेरे ही पास मेरी  साथी बन जाती हो । कभी-कभी सोचती हूँ " मैं फिर से पैदा होती तो ? " हाँ , जानती हूँ की यह असंभव है , तुम इतना हँसो मत पर एक बार गौर तो कर ! तुम हर दफा अपने हर नए जन्म में मेरे ही पास आती हो , तुम्हें भी मुझसे काफी शिकायतें होंगी । आखिर तुम मेरी ही तो सुनती हो कभी अपनी नहीं कह पाती ।  पर आज मैं तुमसे साझा करती हूँ कि मुझे क्या शिकायतें हैं और अगर मैं फिर से जन्म लूँ तो कहाँ जन्मूँ ।
 एक ऐसे परिवार में मेरा जन्म हो जहाँ सुकून से सभी रहें , एक दूजे से हँसे बोले , आपस में स्नेह तो हो पर एक दूसरे के लिए समय भी हो । विचारों में बाध्यता न हो न हीं विचार एकल पहलू हो । बदलाव को अपनाया जाता हो और तो और विश्वास की परत भी हो । रिश्तों का नाम लेकर कार्यों में बंधन न हो ,  पंरपराओं और संस्कारों संग आधुनिकता का मिश्रण भी हो । कार्यों को थोपने के बजाए जिम्मेदारी का एहसास हो , टेक्नोलॉजी सिर्फ़ आॅफिस में और घर में प्यार दुलार हो । संबंध मधुर हों मीठी-मीठी तकरार हो । कर्तव्यों के लिए मजबूर करने के बजाय उनकी महत्ता को समझाया जाए । भावों को नहीं जरुरतों को पहले देखा जाए । विचारों में खुलापन और मन में नएपन को अपनाने की ललक हो । कुछ कर गुजरने से पहले ही फैसले की सुनवाई न हो जाए । पौराणिक तरिकों में बदलाव कर एक बार नए को कर देखने में हर्ज कैसा ???
 हाँ , मुझे परिवार में बदलाव चाहिए क्योंकि मैंनें बचपन से सुना है पहले शिक्षक माता पिता होते हैं और पहला विद्यालय परिवार \ घर होता है । पहले मेरा घर बदलेगा कल शायद यह बदलाव किसी और को भी वाजिब लगे और परसों किसी और को । जब  परिवार सहायक होगा तो समाज होगा क्योंकि समाज भी तो परिवार है । एक एक परिवार के मिलने से समाज बनता है और समाज में हम रहते हैं । कई दफा मैंनें  देखा है मनचाहा काम नहीं करने मिलता क्यों ? क्योंकि  समाज क्या कहेगा । जब परिवार में बदलाव आएगा स्वाभाविक है समाज में आएगा । हम यह तो सोच लेते हैं कि समाज क्या कहेगा पर यह भूल जाते हैं समाज हमसे बना है। हाँ ! मुझे बदलाव चाहिए क्योंकि मैंने यह भी सुना था  " वसुधैव कुटुम्बकम " !!!!
चलो मेरी शिकायतों का पिटारा बंद करती हूँ और सो जाती हूँ    पिचकू तू भी आराम कर।

तेरी साथी
रुचि तिवारी ।

Saturday, May 11, 2019

उस बेवफा को !!!


रुला कर मुझे उस बेवफा को बड़ी गज़ब की नींद आई है,
देख लो दुनिया वालों मेरी मोहब्बत क्या रंग लाई है !!!!
मेरी जिंदगी में गमों की बहार उसने लाई है ,
और कहता है वो देख तेरी किस्मत सामने आई है !!!!
मेरे मरे अरमानों की चीख अभी मैंनें कहाँ सुनाई हैं ,
थोड़ा रूक ठहर सब्र कर तेरी किस्मत भी उसी खुदा ने बनाई है !!!!
मेरे हाथों की लकीरों पर मैंनें खुद अपनी किस्मत लिखवाई है ,
तेरे न होने से मैं तन्हा नहीं , हाँ मैंनें कभी तेरी कमीयां नहीं बताई है !!!!
डूबती हमारी कश्ती हर बार हमने मिलकर पार लगाई है ,
पर इस बार फिर तुमने बेवफाई ही जताई है !!!!
मोहब्बत है ये , जलन में तीसरे ने आग लगाई है ,
इतनी सी बात तुम्हें अब तक समझ क्यों नहीं आई है ????
ना बन खुदगर्ज़ यूँ सफर-ए- मोहब्बत में ,
जा़लिम तेरी बेवफाई की दासतां हमने कहाँ किसी को सुनाई है !!!!
कितनी बार तेरी गलतियाँ नादानी समझ भुलाई है ,
 तू बदल रहा है पर मैंनें अब भी हार नहीं अपनाई है !!!!
                                  _रुचि तिवारी एवं नेहल जैन
Instagram : ruchi_tiwari31 & writerspride

नोट : यह कविता  दोनों  लेखिकाओं ने मिलकर साझेदारी में लिखी है। आज के युग की लेखन विधा में मशहूर "Collab" विधा के अंतर्गत इसे पूर्ण किया गया है एवं पब्लिश भी दोनों की सहमति से किया जा रहा है । 


Sunday, May 5, 2019

लौट आना चाहता हूँ माँ !!!

थक चुका हूँ मैं ख्वाबों के पीछे भागते-भागते ,
हार चुका हूँ मैं दूसरों को हराते हराते ,
लौट आना चाहता हूँ माँ,
उन गलियारों में ,
तेरे आँचल की छांव में ,
वो सुकून भरे गाँव में ,
भीड़ भाड़ से दूर ,
जहाँ प्रकृति का बरसता है नूर ,
तेरी ममता में हो जाउँ मगरुर ,
माँ तेरा प्यार पाकर हो जाउँ मशहूर ।
तू मेरा कोहिनूर ,
जाना नहीं अब तुझसे दूर।

मेरी खताओं को अब मुझे सुधारना है,
तेरे हर गम को जड़ से मिटाना है,
तुझे दुनिया से मिलवाना है,
बहुत कुछ दिखाना समझाना है,
तू वहाँ घुटती है , तेरा बेटा भी तो यहाँ अकेला है,
कुछ ही दिनों का माँ बस इंतजार है, 
तेरा बेटा तेरे पास आने को तैयार है।

मिल तुझे सबसे पहले गले लगाना है,
सालों की थकान पल में मिटाना है,
तेरे आँचल की छांव में बैठ जन्नत को देखना है ,
तेरे हाथ से खाकर मन्नतें पूरी करना है ,
तेरी गोद में सिर रख सब भूलना है,
मेरा सबकुछ तू है और अब बस तेरा ही ख्याल रखना है।

_रुचि तिवारी 
 Ig : ruchi_tiwari31

Thursday, May 2, 2019

मैं मजदूर हूँ !!!



नमस्ते !

आज मैं अपनी कुछ बातें आप के साथ साझा करना चाहता हूँ इसलिए यह खुला पत्र आप सबके लिए ।

आशा है आप सब मंगलमय होंगे एवं गर्मी में कूलर , शीतल पेय और फलों का मज़ा ले रहे होंगे ।

मुझे देख मुझसे दूर क्यों हो जाते हैं आप सब ?
मेरी कभी क्यों नहीं सुनते ? 
हमेशा मैं ही क्यों सुनता हूँ आपकी ? 
थोड़ी अजब-गजब लगें शायद मेरी यह बात आपको पर जताने की बड़ी तमन्ना है । मेरे लिबास से ही आप सब मुझे पहचान जाते हैं कि मैं मजदूर हूँ । दिन-रात  , धूप छांव , सर्दी- गर्मी कैसे भी हालात हो बिना  किसी बहाने के काम मैं  करता हूँ । वो गद्दी वाली कुर्सी पर बैठे साहब और मेम लोग बस हुकूम करती हैं और मुझे काम करना होता है । कभी किसी ऊँची बिल्डिंग में , कभी सड़कों में , कभी खेतों में , कभी माल ढोने में , कभी होर्डिंग लगाने में आदि आदि । मेरा कोई ठौर ठिकाना नहीं । कभी रेत के ढेर पर मिलूंँगा तो कभी मालगोदामों में , कभी धूल के आशियाने में तो कभी सूरज की कड़कड़ाती चमक में खेलता हुआ और हाँ ! शायद कभी ठेला ठेलते या रिक्शा खींचते । मुझे तो बड़ी आसानी से मजदूर बोलते हैं आप पर क्या कभी गौर किया की ये मेरा नहीं , मजदूर शब्द का नहीं अपितु कार्य का उपहास है ।  वो भी उस कार्य का जो या तो आप नहीं करना चाहते या असमर्थ है  ।  यहाँ तक की आप हमारे कारण ही आराम फरमा पा रहे हैं ।

एक निवेदन है आप कार्यों का उपहास न करें और न ही मानव योनि का । हाँ ! मैं मजदूर हूँ पर मजबूर नहीं । मेहनत मेरी क्षमता मेरा गुरुर हैं । क्योंकि मैं वह काम करने में पीछे नहीं हटता जिससे आप सब हटते हैं । ज्यादा नहीं पर आपसे मैं यह अपेक्षा तो रख ही सकता हूँ की मुझे भी मानव ही समझे । 

धन्यवाद !
हमेशा काम आने वाला ,
आपका तिरस्कृत " मजदूर "

लेखिका _ रुचि तिवारी 

थैंक्यू KK! हम रहें या न रहें कल, कल याद आएंगे ये पल, प्यार के पल...

KK, 90's के दौर का वो नाम जिसकी आवाज सुन हम सभी बड़े हुए। 'कुछ करने की हो आस-आस... आशाएं' या 'अभी-अभी तो मिले हो, अभी न करो ...