नमस्ते !
आज मैं अपनी कुछ बातें आप के साथ साझा करना चाहता हूँ इसलिए यह खुला पत्र आप सबके लिए ।
आशा है आप सब मंगलमय होंगे एवं गर्मी में कूलर , शीतल पेय और फलों का मज़ा ले रहे होंगे ।
मुझे देख मुझसे दूर क्यों हो जाते हैं आप सब ?
मेरी कभी क्यों नहीं सुनते ?
हमेशा मैं ही क्यों सुनता हूँ आपकी ?
थोड़ी अजब-गजब लगें शायद मेरी यह बात आपको पर जताने की बड़ी तमन्ना है । मेरे लिबास से ही आप सब मुझे पहचान जाते हैं कि मैं मजदूर हूँ । दिन-रात , धूप छांव , सर्दी- गर्मी कैसे भी हालात हो बिना किसी बहाने के काम मैं करता हूँ । वो गद्दी वाली कुर्सी पर बैठे साहब और मेम लोग बस हुकूम करती हैं और मुझे काम करना होता है । कभी किसी ऊँची बिल्डिंग में , कभी सड़कों में , कभी खेतों में , कभी माल ढोने में , कभी होर्डिंग लगाने में आदि आदि । मेरा कोई ठौर ठिकाना नहीं । कभी रेत के ढेर पर मिलूंँगा तो कभी मालगोदामों में , कभी धूल के आशियाने में तो कभी सूरज की कड़कड़ाती चमक में खेलता हुआ और हाँ ! शायद कभी ठेला ठेलते या रिक्शा खींचते । मुझे तो बड़ी आसानी से मजदूर बोलते हैं आप पर क्या कभी गौर किया की ये मेरा नहीं , मजदूर शब्द का नहीं अपितु कार्य का उपहास है । वो भी उस कार्य का जो या तो आप नहीं करना चाहते या असमर्थ है । यहाँ तक की आप हमारे कारण ही आराम फरमा पा रहे हैं ।
एक निवेदन है आप कार्यों का उपहास न करें और न ही मानव योनि का । हाँ ! मैं मजदूर हूँ पर मजबूर नहीं । मेहनत मेरी क्षमता मेरा गुरुर हैं । क्योंकि मैं वह काम करने में पीछे नहीं हटता जिससे आप सब हटते हैं । ज्यादा नहीं पर आपसे मैं यह अपेक्षा तो रख ही सकता हूँ की मुझे भी मानव ही समझे ।
धन्यवाद !
हमेशा काम आने वाला ,
आपका तिरस्कृत " मजदूर "
लेखिका _ रुचि तिवारी
ह्रदयस्पर्शी लेख
ReplyDeletenice...............
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