Wednesday, May 29, 2019

मैं चिरैया !!

नमस्ते ! मैं चिरैया ,

या खुदा कैसा ये कहर है,
कहने को तो ग्रीष्म लहर है,
जूझते हम हर पहर हैं,
क्योंकि शायद ये शहर है ।

सिर्फ़ कंठ पर नहीं
उड़ान में भी ठहर है,
बडे़ अच्छे से कहते हो तुम
हमारे पास पर हैं ,
उपर आसमान में बहुत तपन हैं,
काट दिए तुमने सब वृक्ष
हमारे पास नहीं अब घर हैं ।

जलते हमारे भी पंख हैं,
सिर्फ़ तुम्हारा ही नहीं बदन है,
अपने आशियाँ के लिए
रौंद दिए तुमने प्रकृति के नियम हैं,
हम भी बचे अब घटते क्रम में हैं ।

ऐ इंसानों ! करनी अब तुमको मेहर है,
सिर्फ़ हमें ही नहीं पूरे पर्यावरण को बचाना है,
मुरझाई प्रकृति को हँसाना है,
अपना कर्तव्य निभाना है,
हाँ, मानव योनि का कर्ज़ चुकाना है ।
                                    ...........रुचि तिवारी 

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