Tuesday, October 30, 2018

वक्त की आड़

और अब मैं क्या कहूँ
लफ्ज़ ही बेबुनियाद है
एक तो वक्त की आड़ है
दूजा ऊपरवाले की मार है।
पीड़ा तो अंतर्मन की है
जताना ही बेकार है
क्या दे दोगे तुम हल
जो खुद पर इतना इख्तियार है !
ताक रही आँखे हैं
बैठा संग लिए आस है
एक किरण की चाहत है
सुना था अंधियारे के बाद उजियार है ।
आड़ लगा इस वक्त का
देख लिया रुप सबका
खुद को मखमल पर सोने में भी चैन नहीं
और कहते तुम्हारा हाल सुनने की फुरसत नहीं ।
यूँ इसको शांत सरल न समझो
एक चिंगारी ही काफी है पूरी आग के लिए
वक्त की आड़ सिर्फ़ आज है
होना तो कभी ऊपरवाले को भी मेहरबान हैं ।
                            _ रुचि तिवारी

चला एक राही सपने संजोए

चला एक राही सपने संजोए
मन में उमंग और आशा पिरोए
मस्त मगन एक धुन सवार किए
सपनो को हकीकत में बदलने के लिए
चला एक राही सपने संजोए ।
आशा उम्मीदों की आस लिए
बढे़ हैं पग धीमे धीमे साथ ही एक कसक लिए
काबू पाने हौसला भी है संग लिए
डरे भी तो भला किस लिए
चला एक राही सपने संजोए ।
निश्चय कर मुकाम पाने के लिए
बडे़ ही जतन तथा त्याग किए
बैठा है कितनी मुरादें लिए
अडिग रहने का संकल्प लिए
चला एक राही सपने संजोए ।
                              _ रूचि तिवारी

Sunday, October 28, 2018

अभी नवरात्रि को बीते सिर्फ़ .....

26 अक्टूबर 2018 तक नवरात्रि को बीते सिर्फ़ 7 दिन ही हुए थे । फिर भी नवरात्रि का उमंग लोगों में भरा हुआ है । 27 अक्टूबर 2018 को खबर आई कि शहडोल जिला के अमलाई थाना अंतर्गत रूगंठा नर्सरी स्कूल के समीप स्कूल जा रही कक्षा 8वीं की छात्रा के साथ उसी के मोहल्ले के रहवासी युवक ने घिनौनी वारदात को अंजाम दिया ।
अजीब है न , सिर्फ़ 8~10 दिन ही तो हुए हैं । अभी की ही तो बात थी पूरा देश नवरात्रि मना रहा था । हर कोई कन्यापूजन कर रहा था । हर एक युवक , युवतियाँ , बडे़ ~ बूढे़ सभी देवी माँ को प्रसन्न कर रहे थे । सभी बडे़ बडे़ वादे कर रहे थे। हर एक कन्या ~ लड़की को देवी माना जा रहा था । सब कुछ कितना जल्दी बिसर गया । भूला दिया जितनी भी पूजा-अर्चना , हवन किए , जितनी भी रक्षा के लिए कसमें ली थी , जितना खुद को पवित्र दर्शाया था। सच तो यह है कि वो सब सिर्फ़ दिखावा और ढकोसला था ।
यह मामला उजागर हुआ तो पता चल गया । हो सकता है ऐसी कितनी ही वारदातों को अब तक अंजाम दिया जा चुका हो जिनका पता ही न चला हो।
सच कहूँ तो इस बार नवरात्रि के समय में युवा शक्ति द्वारा नवरात्रि में बलात्कार के खिलाफ़ चलाई जा रही मुहिम , सोशल साइट की विभिन्न पोस्ट एवं स्टेट्स को ध्यान में रखते हुए ऐसी ही एक नई खबर के इंतजार में थी । भूल चूक मुझसे भी हुई हो सकती है कि इस घटना के पहले भी कोई खबर आई हो जिस तक मैं न पहुँच पाई हूँ ।
मामले की गहराई तक जाएँ तो पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार यह पता चलता है कि शुक्रवार की सुबह बालिका अपने नियमित समय पर स्कूल जा रही थी।इसी दौरान बालिका के घर के समीप रहने वाले युवक ने आकर बालिका को लिफ्ट देने के बहाने अपनी गाड़ी पर बैठाया । और बालिका को स्कूल न ले जाकर एक सूनसान स्थान पर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया ।
बात अब यहाँ यह खड़ी हो जाती है कि  एक जमाना था जब बच्चों के लिए पूरा मोहल्ला या गाँव उनका घर कहलाता था । और अपने उस मोहल्ले में सुबह से शाम कब हो जाती थी पता ही नहीं चलता था । क्या इन सब में बालिका की गलती मानी जाए ? एक ओर यहाँ भी ध्यान जाता है कि कौन अब विश्वासपात्र है कौन नहीं ? हमेशा तो सीख यही दी जाती है कि अनजान व्यक्ति बुलाए तो पास नहीं जाना , अंजान व्यक्ति कुछ खाने को दे तो खाना नहीं , अंजानो से दूर रहना इत्यादि । पर अब जो ऐसे असमाजिक तत्व पैदा हो रहे है उनका क्या ? उस 13~14 साल की बालिका तो अपने पडो़स के रहने वाले भईया की बातों में आकर स्कूल जल्दी पहुँचने की आस लिये साथ चली गई । और गलती सिर्फ़ इतनी-सी थी कि उसे यह नही सिखाया गया था कि कुछ भी हो अपने सभी कार्यों को तुम स्वयं ही करना ।  कोई पहचान वाला हो या अंजान हो उसके पास या साथ मत आना जाना , एक दिन की किसी की मदद तुम पर ताउम्र उपकार का बोझ बनी रहेगी। जिस तरह रोज़ जाती हो उसी तरह जाना क्योंकि एक दिन का बदलाव बहुत बडा़ बदलाव साबित हो सकता है ।
                      _रुचि तिवारी
नोट : इस घटना पर लेखिका के निजी विचार हैं ।

Monday, October 22, 2018

खैर , सब ठीक है !!!

फुरसत के दो पल निकाल
खुद की यादों में गुम होना
उनको लगता थोडा़ अजीब है
थोडा़ अकेले होकर फिर कहीं गुम होना
और यादों को याद कर थोडा़ दुखी होना
फिर वर्तमान को देख खुद को सम्भाल लेना
और झटके से कहना खैर सब ठीक है ।
फुरसत के चंद लम्हों में
सबको एक तरफ छोड़ देना
और सिर्फ़ खुद की इच्छा को सुन लेना
सुनकर उसी में जी जान से लीन होना
न समय न समाचार न देश दुनिया की सुध रखना
थोडा़ ज्यादा समय देने के चक्कर में
थोडी़ डाँट डपट खाकर रो लेना
और फिर कहना खैर सब ठीक है ।
हजा़रों सवालों से घिरकर भी उनको नज़रअंदाज़ करना
खुद की ख्वाहिश होने पर भी अपने-आप को मना करना
कब तक परवाह की जाए सबकी ,
अगर एक पल ठहर खुद की सुन ली तो
क्यों उसे इतना ' इंटीमेट ' करना ??
दौड़ भाग भरी जिंदगी है
किसको तुम्हारी खैरियत की पडी़ है
खैर , बाकी सब ठीक है !!
                                   _ रूचि तिवारी

Saturday, October 20, 2018

पाबंदी

ये पाबंदी का भी क्या नूर है
लगाने वाला भ्रम में मगरुर है
छाया अलग ही एक फितूर है
झेलने वाला ' बेचारे  ' के नाम से मशहूर है।
साँसों को भी पाबंदी है
कब आना है कब जाना है  उस पर नाकाबंदी है
खाने से भी है इसकी यारी
मिलना न मिलना नसीब है ।
बोलने की जुबां नहीं लफ्ज़ तो पडे़ ढेर है
घूमने की तो सोचना ही फिजूल है
लगा दी पाबंदी रहने, खाने , चलने में
पर सोच तो बढ़ रही है उसी अंधेरे में ।
उम्मीद ही काफी है मुक्ति के लिए
पंख नहीं हौसला चाहिये उड़ने के लिये
एक गूँज उठेगी उस दिन जब
तोड़ ये पाबंदी निकल उडे़गा वो मन ।

Friday, October 19, 2018

तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को

तिल तिल करकर अंदर रोए
तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को
तार तार करदे अंतर्मन को
तरसे वृद्धमन  नि:छल प्रेम को ।
              बूँढी़ आँखे रास्ता ताके
              ढूँढ रहीं उस यौवन को
              जो मगन है मनमौजी में
              और छोड़ दिया इन वृद्धजन को ।
दूर रहकर भेज देते पास इनके धन को
याद जब आती वृद्धजन को निहारते तसवीर को
इस उम्र में खुद ही जाते उस।बाजा़र तरफ को
नज़रअंदाज़ कर देते अपने जोडो़ के दर्द को ।
मंदिर पूजा में लीन होकर दुआ करते एक मिलन को
सपने संजोये रहते मन में तरसे उसके पूरे होने को
पोता पोती से मिलने की रखते मन में  ख्वाहिश को
फोन पर सिर्फ़ बातें सुनते रखते मौन अपने लफ्जों को ।
भोग लेते भौतिक सुख इस्तमाल कर उस धन को
अंदर से रोती है आत्मा अब उनकी एक दर्शन को
कट जाती हैं दिन और राते याद कर उस यौवन के नन्हेपन को
समझकर बोझ उसके ऊपर का भुला देते हैं खुद के गम को ।
तिल तिल करकर अंदर रोए
तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को ........
                       _रूचि तिवारी

Thursday, October 18, 2018

उस संकीर्ण सोच का पतन : एक कोशिश

"अरे ! मिश्रा जी , आपने सुना यादव जी की बेटियाँ तो गजब ही कर रहीं हैं ।"
" अरे ! गोपाल जी अब ऐसा क्या कर दी ? , सच में वकील बन गई क्या बड़ी लड़की ? "
" नहीं नहीं मिश्रा जी , इस बार तो अति की है उनकी छोटी बेटी ने । यादव जी बडे़ गर्व से बता रहे थे कि वो पत्रकारिता की पढा़ई करने जा रही है।  "
" राम राम राम ! सत्यानाश ! सुबह-सुबह से यही खबर सुनाना था आपको । ये यादव जी कुछ ज्यादा ही छूट दे रहें हैं अपनी बेटियों को , लाज शर्म तो बची ही नहीं है।"
" मिश्रा जी , भला आप ही बताओ लड़कियों को वकील , पत्रकार आदि कौन बनाता है । न जाने दिनभर कितने आदमियों से मिलेंगी , कितनो के साथ उठना बैठना करेंगी , कहाँ-कहाँ अकेली जाएँगी  ।"
" हाँ , गोपाल जी , कोर्ट कचहरी भला लड़कियों के जाने  लायक जगह है क्या ? अब वो बगलवाले ठाकुर जी कि बिटिया को ही देख लो । ' सेल्स रिप्रेजेंटेटिव है ।' शर्ट पेंट पहनकर सुबह 10 बजे चली जाती है और रात 9.00 _ 9.30 तक वापस आती है। भला लड़की जात को ये सब शोभा देता है क्या ? "
कितनी अजीब बात है कि आज भी एक ऐसी संकीर्ण सोच का शिकार हमारा समाज है । जहाँ  एक तबका बेटियों के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का रोडा़ लिये खड़ा है।
क्या ऐसी संकीर्ण मानसिकता  एक  विकसित देश का सपना पूरा होने देगी ??
                   ऐसा कौन-सा क्षेत्र है जहाँ  लड़कियों को  लड़कों के साथ कदम सेयकदम मिलाकर नहीं  चलना होगा ? बात सिर्फ़ इतनी सी है कि हमें  अपनी मानसिकता साफ़ कर समाज को उस काबिल  बनाना होगा  जिसमें कोई भी तबका लड़का या लड़की देखकर किसी क्षेत्र का बँटवारा न करे ।
इस नवरात्रि ( दुर्गा विसर्जन ) एवं दशहरा ( दशानन  पतन) करते वक्त एक कोशिश करें  उस संकीर्ण सोच के पतन की जो भेदभाव  को मिटाने  और देश की उन्नति में रोडा़ है।
#happy_navratri
#happy_dushehra
                                             _ रुचि तिवारी
नोट : कहानी में  उपयुक्त पात्र काल्पनिक है एवं विचारों  को प्रकट करने के लिए लेखिका द्वारा माध्यम बनाये गए हैं ।

Tuesday, October 16, 2018

ऐसा क्यों ??

' नवरात्रि ' देवी माँ का त्योहार ।
वो देवी माँ जिनको पूरी दुनिया उनकी अपार शक्ति के लिए याद करती है। घर में माँ ,बहन , बेटियाँ सभी पूजा अर्चना एवं उपवास करती है। साथ-साथ मातारानी से प्राथना करती हैं की माता अपनी शक्ति से हमारे घर की सारी विपदाओं को दूर कर हमारी रक्षा करना ।
     शक्ति का रूप मानी जाने वाली कन्याओं की पूजा भी की जाती है एवं उन्हें भोज भी कराया जाता है। उनमें माता की शक्ति विराजमान है ऐसा माना जाता है ।
तो सवाल यह उठता है कि ~ जबतक वह छोटी  होती है तो उसे शक्ति होने का एहसास कराया  जाता है , उसे  शक्ति का रूप माना जाता है परंतु जब उसकी उम्र वही शक्ति दिखाने कि होने लगती है तो उसे क्यों  दबाया जाता है ??
वह शक्ति है उसे जो़र से बोलने दो पर नहीं अपनी आवाज़ धीमी रखो यह कहा जाता है। वह शक्ति है खुद के  बाहरी काम स्वयं  कर सकती है उसे करने दो पर नहीं तुम अकेली  वह काम कैसे करोगी फलां (कोई पुरुष ) को साथ ले जाओ । वह शक्ति है उसे खुद के विरूद्ध कार्य होने पर बोलने दो पर नहीं तुम ज्यादा बहस मत करो लड़की जैसी रहो कहकर चुप  करा दिया जाता है।
                        ऐसा क्यों ???????
बात सिर्फ़ इतनी है कि जिसके लिए हम माँ जगदंबिका की पूजा अर्चना करते हैं और उन्हें जिसका प्रतीक मानते हैं वह सिर्फ़ उन तक सिमट कर न रह जाए। मूर्तिशक्ति के सामने खड़ी समस्त बेटियों , बहनों और माँ में वही शक्ति उस भक्ति के साथ आ जाए कि जब कोई दुराचारी दुष्कर्म करने की ठाने तब वह शक्ति अपनी शक्ति दिखा खुद का बचाव कर सके , अपने हक के लिए कोई भी लड़की , बहन ,बेटी , पत्नी निडर खड़ी हो सके और घरेलू हिंसा के प्रति हर नारी आवाज़ उठा सके । नारी शक्ति को उसकी असीम शक्ति का एहसास कराएँ ।
              " प्रतीक "को सिर्फ़ चिन्ह न रहने दो
              " शक्ति " को यूँ माटी में न घुलने दो
                पहचान खुद की खुद को करने दो
                चुप्पी तोड़ लफ्जों को बहने दो ।
#women_are_shakti

सिर्फ़ मानवता नहीं जागरूकता भी है लक्ष्य

मानवता की बातें तो हर कोई करता है पर असली इंसान तो वही होता है जो बदलाव का हौसला रख उसे सच बनाता है। कुछ ऐसे ही हौसलेबाज़ है जबलपुर की ह्यूमैनिटी आर्गेनाइजेशन (संस्था ) के युवा सदस्य ।
  हाल ही के बीते रविवार 14 अक्टूबर 2018 को इस युवा पीढ़ी द्वारा की गई नई पहल और उनके हौसले को सलाम । संस्था की अपाराजिता विंग द्वारा #Iamshakti अगुआई में विगत छः महीनों से " सैनिटेरी नैपकिन " के बारे में न सिर्फ़ जागरूकता फैलाई जा रही थी बल्कि ललपुर बस्ती की 40  महिलाओं को मुफ्त बाँटे भी जा रहे थे । परंतु इस रविवार जो हुआ वह बेहद खास और नया था। मानवता का परचम तो लहर ही रहा था पर जब संस्था के सदस्यों को बस्ती की स्वच्छता संबंधी परेशानियों का पता चला तो नई पहल की गई " बायोडिगेर्डेबल सैनिटेरी नैपकिन " उन तक पहुँचाने की। ललपुर बस्ती में नालियों की कमी और डोर टू डोर कचरा कल्केशन गाड़ी न आने की वजह से स्वच्छता की कमी  है । इन समस्याओं को मद्देनज़र रखते हुए युवाओं ने गोवा की एक बायोडिगेर्डेबल सैनिटेरी नैपकिन बेचने वाली " सखी "ब्रांड  के संपर्क में  आए जहाँ से  50रू. में पैकेट को खरीद महिलाओं को 20 रू. में उपलब्ध कराया जा रहा है । उपलब्धता के साथ ही कैसे उपयोग करें , कैसे डिस्पोज़ करें , क्या फायदे है आदि के बारे में बताया जा रहा है एवं जागरूकता फैलाई जा रही है।
              "कुछ कर गुज़र यूँ  थम न तू
                 ले हौसले उडा़न भर तू
                न सिमित रह खुद तक तू
                सोच को दे पंख सच पर अमल कर तू "
        युवाओं की सोच , हौसले और पहल को सलाम।

Monday, October 15, 2018

बस इतनी मेहर.....

ऐ खुदा बस इतनी मेहर कर दे
उसके लबों की वो हँसी मुझे वापस कर दे
झूम जाऊँ फिर एक बार उसे देखकर
बस इतनी है दुआ तुझसे इसे कुबूल कर  ले ।
उन चमकती नज़रों में सिर्फ़ सुनहरे सपने रहने दे
उन लबों पर एक लंबी हँसी रहने दे
चमकने दे उसके चाँद से चेहरे को यूँ ही
मुझे उसे देख मुस्कुराने दे यूँ ही ।
कभी गुमसुम कभी कहीं खोया
यूँ उसका बेचैन होना मुझे रास न आया
उसे मत सिमटने दे खुद में
ऐ खुदा बस इतनी महर कर दे ।
नूर था जो उसने बिखेरा
रहे सदा उसी तरह मस्त मौला
बातें चार की सोलह उसे करने दे
ऐ खुदा बस इतनी सी महर कर दे ।
                                         _ रूचि तिवारी

Saturday, October 13, 2018

फाइनेंस एवं बैंकिंग क्षेत्र की जानी बारिकियाँ

Citizen Journalism , Jabalpur
रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के व्यावसायिक अध्ययन एवं कौशल विकास संस्थान तथा सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड आॅफ इंडिया SEBI के संयुक्त तत्वाधान में आज " फाइनेंशियल ऐजुकेशन (Financial Education) " विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन कौशल विकास विभाग , विज्ञान भवन , रादुविवि में किया गया।
              इस व्याख्यान में छात्र छात्राओं को बैंकिंग एवं फाइनेंस सेक्टर में करियर की संभावनाओं , निवेश के तरीकों , तकनिकी ज्ञान एवं बारिकियों को विस्तारपूर्वक समझाया गया ।
व्याख्यानदाता सेबी के रिसोर्स पर्सन प्रो. आर. सी. जैन तथा सीए सर्जना जैन ने एक ओर जहाँ छात्रों को व्याख्यान और स्टडी मटिरियल उपलब्ध कराया वहीं दूसरी ओर फेस टू फेस इंटरेक्शन ने व्याख्यान को ज्यादा रोमांचक बनाया जहां रिसोर्स पर्सन ने छात्रों से तो सवाल किये ही और तो और उनकी समस्याओं का समाधान भी दिया।छात्रों को एक ओर जहाँ इस क्षेत्र में अपार संभावनाओं से अवगत कराया गया तो वहीं उस मुकाम तक कैसे पहुँचे इसकी विधि भी बताई गई ।
              संस्थान के निदेशक प्रो. सुरेन्द्र सिंह ने छात्रों को बताया कि फाइनेंस ऐजुकेशन सभी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं एवं इसकी सभी भ्रांतियों का समाधान आवश्यक है । कार्यक्रम में मंच संचालन श्रीमती डाॅ. मीनल दुबे ने किया एवं आभार प्रदर्शन डाॅ. अजय मिश्रा ने किया ।

Friday, October 12, 2018

विथ हर : अ स्किल्ड गर्ल फोर्स

11 अक्टूबर एक ऐसा विशेष दिवस है, जो कि “अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस” के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है। दिसम्बर 2011 में यूएन ने 11 अक्टूबर 2012 से इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस की स्थापना पर लिंग समानता पर 2030 तक काबू पाने का उद्देश्य निर्धारित किया गया।
हर वर्ष यह दिवस एक विशेष थीम के साथ मनाया जाता है, जिसका चयन महिला सशक्तिकरण को  केन्द्र में रखकर किया जाता है। वर्ष 2012 में पहले अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम की बात करे तो, उसकी थीम ” बाल विवाह की समाप्ति ” थी और हर वर्ष लगातार नई-नई थीम के साथ इस वर्ष 7वां अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस " विथ हर:अ स्किलड गर्ल फोर्स " थीम पर मनाया गया।
इस वर्ष इस थीम के चयन की वजह यह रही कि 10 प्रतिशत छोटी उम्र की बच्चियाँ आज भी स्कूल की छांव से काफी दूर है। वही किशोरियों मे कौशल की कमी देखने को मिल रही है जो कि सशक्तिकरण में एक बहुत बड़ा रोड़ा है।
उपाय :
यूएन (UN)की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 600 मिलियन किशोरियों में हर एक में इतनी क्षमता, रचनात्मकता एवं शाक्ति है कि वे वैश्विक स्तर की इंडस्ट्री तच पहुंच सकती है। इसके लिए सबसे पहले समाज को कुछ पहल एवं आवश्यक कदम उठाने होगे।
जैसे कि-
* लिंग समानता एवं उसके प्रति प्रतिक्रिया एवं मानसिकता में बदलवा लना पड़ेगा।
* Science (विज्ञान), Technology (तकनीक), Engineering  (इंजीनियरिंग ) एवं Maths (गणित) STEM विषयों व क्षेत्रों में बालिकाओं को बढ़ावा देना।
* एक पहल स्कूलों, काॅलेज में किशोरियों को प्रक्टिकल नाॅलेज की ओर अग्रसर करना। जैसै कि : करियर मार्गदर्शन , इंटर्नशिप , आंत्रपेन्युरशिप आदि ।
* पब्लिक एवं प्राईवेट सेक्टर की तरफ रुझान।
इन जैसे कुछ कदमों को उठाकर हम बालिकाओं में आत्मविश्वास उत्पन्न कर सकते है।
आइए एक पहल करते है और इन बच्चियों को भविष्य़ में डाॅक्टर म, इंजीनियर, वकील, जज, आईएएस, टीचर ,पायलट , फ्रिलांसर , स्तंभकार आदि बनाने का संकल्प लेते है।
                  लेखिका- रूचि तिवारी
नोट- उपयुक्त लेख में विभिन स्त्रोतों से डाटा इक्कठा करके लेखिका ने अपने विचार पेश किये हैं ।

Saturday, October 6, 2018

थोडी़ फुर्सत खुद के नाम कर दो....

थोडी़ फुर्सत खुद के नाम कर दो
अपनी थकान कहीं दान कर दो
यूँ खुद को बोझिल बनाना
मेरे यार बंद सरेआम कर दो ।
इस कश्मकश को विदा कर दो
थोड़ा खुद को रिहा कर दो
यूँ सिमटे न रहो
थोडी़ फुर्सत खुद के नाम कर दो ।
निकल आओ उस बाधित समय से
जहाँ साँसों पर भी  पाबंदी है
जो फिक्स कर लिया है तुमने यूँ रूटीन
क्या तुम्हें मिल रहा है भरपूर पसंद पोर्टीन
थोडी़ खुली हवा में जी आओ
उस प्यारी सी ठंडी हवा की झलक ले आओ
उन मधुर गीतों की रागिनी सुन आओ
जाओ थोड़ा खुद को खुद से मिला आओ ।
पल दो पल बैठ अपनो के संग
ले आओ जीवन में नया उमंग
झूमेगी हर एक तरंग
खुद के ही जो हो जाओगे संग ।
जाना थोडी़ दूर उस एकांत में
जिससे भाग रहे तुम एक अरसे से
खो गए हो जो इस भीड़ में
एक नज़र डाल लो ज़रा खुद पे ।
यूँ तो हो गए मस्त मगन इस हाल में
क्या भीतर भी है मन खुशहाली में ???
छोड़ दिया है जो खुद का साथ
अब तो पकड़ लो खुद का हाथ ।
ये भीड़ सदा बढ़ती जाएगी
न जाने कितनी अड़चनें आती जाएँगी
उनसे सामना करने में खुद को भूल न जाओ
थोडी़ फुर्सत खुद के नाम करते जाओ ।
                                  _रुचि तिवारी

Tuesday, October 2, 2018

यूँ उस मासूम का मजा़क न करो

यूँ  मासूमियत का खुले आम कत्ल न करो
यूँ उस नन्हें पर अत्याचार न करो
यूँ उस मासूम का मजा़क न करो
यूँ उसे बुरा कहकर बदनाम न करो ।
स्थितियों का मारा है
जग उसे कहता बेचारा है
गुज़र रही है जो उस पर
एकलौता गवाह उसका खुदा है।
यूँ आँखों में चमक लिये
निहार रहा है मन में कुछ कसक लिए
न्योंछावर कर रहा है बचपन अपनों के लिए
और जियेगा भी तो भला किसके लिए ।
बारह की उमर लिए
चल रहा है एक बोझ लिए
सह रहा है सब उस खुशी के लिए
जो बङी मुश्किल से बनी है उसके लिए ।
उम्र से ज्यादा कर्ज में है डूबा
कर्ज से ज्यादा है फर्ज में डूबा
उस फर्ज की खातिर
छोड़ दिया छूना खिलौना ।
यूँ थककर आने पर भी
नहीं झलकती एक शिकंज उस चेहरे पर
क्योंकि उसकी माई बैठी होती है उसे सहलाने तख्त पर
छू हो जाती है यू थकान
जब देखता माँ के चेहरे पर वो मुस्कान ।
यूँ तो उस मासूम को भी है खेलना पसंद
पर किस्मत ने मचाई है हुङ़दंग
माँ कि चिंता करती है उसे तंग
बाप तो चला गया करके जंग।
जंग से तो कभी भला हुआ नहीं
उसकी माँ की चलने की शक्ति रही नहीं
यूँ हिम्मत उसमें आई
खुद ही चल दिया करने चढा़ई।
जग तो करवाने लगा उससे कमाई
क्या कभी जग को शर्म आई??
न कभी जग ने दया दिखाई
और उस मासूम को बना दिया बाल मज़दूर मेरे भाई।
             _रुचि तिवारी

थैंक्यू KK! हम रहें या न रहें कल, कल याद आएंगे ये पल, प्यार के पल...

KK, 90's के दौर का वो नाम जिसकी आवाज सुन हम सभी बड़े हुए। 'कुछ करने की हो आस-आस... आशाएं' या 'अभी-अभी तो मिले हो, अभी न करो ...