Friday, October 19, 2018

तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को

तिल तिल करकर अंदर रोए
तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को
तार तार करदे अंतर्मन को
तरसे वृद्धमन  नि:छल प्रेम को ।
              बूँढी़ आँखे रास्ता ताके
              ढूँढ रहीं उस यौवन को
              जो मगन है मनमौजी में
              और छोड़ दिया इन वृद्धजन को ।
दूर रहकर भेज देते पास इनके धन को
याद जब आती वृद्धजन को निहारते तसवीर को
इस उम्र में खुद ही जाते उस।बाजा़र तरफ को
नज़रअंदाज़ कर देते अपने जोडो़ के दर्द को ।
मंदिर पूजा में लीन होकर दुआ करते एक मिलन को
सपने संजोये रहते मन में तरसे उसके पूरे होने को
पोता पोती से मिलने की रखते मन में  ख्वाहिश को
फोन पर सिर्फ़ बातें सुनते रखते मौन अपने लफ्जों को ।
भोग लेते भौतिक सुख इस्तमाल कर उस धन को
अंदर से रोती है आत्मा अब उनकी एक दर्शन को
कट जाती हैं दिन और राते याद कर उस यौवन के नन्हेपन को
समझकर बोझ उसके ऊपर का भुला देते हैं खुद के गम को ।
तिल तिल करकर अंदर रोए
तरसे वृद्धमन अचल प्रेम को ........
                       _रूचि तिवारी

No comments:

Post a Comment

थैंक्यू KK! हम रहें या न रहें कल, कल याद आएंगे ये पल, प्यार के पल...

KK, 90's के दौर का वो नाम जिसकी आवाज सुन हम सभी बड़े हुए। 'कुछ करने की हो आस-आस... आशाएं' या 'अभी-अभी तो मिले हो, अभी न करो ...