Monday, May 20, 2019

मैं तुम सा नहीं पर ....


कितनी आसानी से कहती है वो,
तुम नहीं समझोगे , एक नारी की तड़प ,
उसका दर्द , उसके एहसास ,
उसके अधिकार , उसके रिवाज़ ,
उसकी जिम्मेदारी , उसकी पहचान ,
क्योंकि तुम तो ठहरे एक लड़का ,
जिसे है पुरुष होने का गुमान ।


कैसे समझाऊँ मैं वैसा नहीं यार ,
मैं भी हूँ अकेला और अग्यार ,
जूझता हूँ रोज़ नई कसौटी से,
क्या इतना भी हक नहीं कि मिले मुझे थोड़ा-सा प्यार ।


मानता हूँ जताता नहीं ,
हाल ए दिल मैं बताता नहीं ,
मत समझो गैर जिम्मेदार मुझे ,
रोना तो आता है मुझे भी पर मैं आँसू बहाता नहीं ।


तुम्हारी ही तरह मेरी भी जल्द सुबह दिन की शुरुआत होती है,
नई-नई कसौटियों से रोज़ मुलाकात होती है,
फिर भी मेरे चेहरे पर सिर्फ़ मुस्कान होती है,
क्योंकि मुझपर निर्भर मेरे घरवालों की आस होती हैं ।


घर से निकलता हूँ जो सुबह ,
दिमाग में माँ ,पापा , पत्नी , बेटी के ज़ज्बात होते हैं ,
कमी न हो उनको किसी चीज़ की ,
जरुरतें क्या है उनकी मन में बस यही सवाल होते हैं ।


सबकी फिक्र है मुझे,
और चाहत भी है,
माना बाहर से थोड़ा सख्त सही,
पर इसका मतलब यह नहीं कि परवाह नहीं मुझे।


हजारों सवालों का निरंतर मंथन करता हूँ ,
सबकी भलाई का मैं चिंतन करता हूँ ,
चूक न हो मुझसे खुश रखने में सबको,
दिन रात लाखों कोशिशें इसलिए बार बार करता हूँ ।


कभी झल्लाता कभी चिल्लाता हूँ ,
हाँ , शायद तब मैं खुद से हार जाता हूँ ,
सबकी आस और मान मैं ही तो हूँ ,
यही सोचकर फिर से काम पर लग जाता हूँ ।


कईयों से मिलना और कई काम करता हूँ ,
पर सबकी छोटी से छोटी ख्वाहिश का भी ख्याल रखता हूँ ,
ज़माने से तो लड़ लेता हूँ ,
पर खुद के वजूद में कभी-कभी सवाल करता हूँ ।


एक प्राथना रोज़ करता हूँ ,
माँ की तरह उदार और तुम्हारी तरह सहनशील बनूँ ,
हँस कर हर चुनौतियों का सामना करुँ,
हाँ , एक आदर्श बेटा , पति और पिता रहूँ ।

_रुचि तिवारी
Ig : ruchi_tiwari31

5 comments:

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