"तू हमेशा मेरे साथ रहेगी न ??" समीर ने रिया से भरे हुए गले से दबी आवाज़ में पूँछा ।
"अरे पागल ! मैं हमेशा तेरे साथ रहूँगी । तू ऐसा क्यों सोच रहा है?? क्या हुआ तुझे , और तू इतना उदास क्यों हैं ? " रिया ने समीर से पूँछा ।
"रिया सुन अगर मैं तुझे ऐसा कुछ जो बहुत ही कड़वा सच हो वो बताऊँ तो क्या तू मुझसे दोस्ती तोड़ देगी ?" समीर ने खुद को धांधस देते हुए थोड़ी हिम्मत जुटाकर कहा।
" देख ! तू हमारी दोस्ती के बीच किसी और को तो नहीं ले आया है न ! तू इतनी अजीब बातें क्यों कर रहा है आज ? बता जल्दी ।" रिया ने समीर से जिज्ञासापूर्वक पूछा ।
"रिया ऐसा कुछ भी नहीं है । बट टुडे आई एम वैरी सीरियस रिया । लिसन वैरी केयरफुली । मैं तुमसे ये बात और नहीं छुपा सकता ।" समीर ने कहा ।
"कैन यू कम डायरेक्ट टू दी प्वाइंट ?? जलेबी की तरह क्यों घुमा रहा है ? यार प्लीज़ सीधा-सीधा बोल न ।" रिया थोड़ी सहमी और दबी आवाज़ में बोली।
रिया और समीर दोनों एक दूसरे को बोलने सुनने का इंतज़ार कर रहे थे । समीर बार बार हिम्मत कर के भी हार जाता और रिया बस उसे टकटकी लगाए निहारती रही। काफी समय बाद बैठे-बैठे समीर अचानक बोला ~ " रिया , सब मुझे चिढ़ाते रहते हैं , मेरा मज़ाक बनाते हैं , न जाने क्या क्या कहते है तुम्हें मुझसे दिक्कत नहीं होती ? "
रिया एक मिनट को तो चुपचाप रही पर फिर बोली "वो तेरा नहीं खुद का मजाक उड़ा हैं । क्योंकि वो भगवान की रचना का अनादर कर रहें है। दे काॅल यू "गे" न , बट डिड दे नो अबाउट देम ? दे जस्ट मेक फन आॅफ एवरीथिंग । भगवान ने न उन्हें वैसे ही बनाया है जैसे हम तुम नार्मल आदमी औरत है । दे आर आल्सो अ ह्यूमन । दे टू हैव दी सेम राइट्स विच वी हैव । इवन उनकी लाईफ न इस सोसाइटी ने बर्बाद कर दी है । वो सबकी खुशियों में अपने गम को छुपाकर शामिल होते है। समाज उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं देता पर जब उनके यहाँ खुशियों का माहौल होता है तब बस उनकी याद आती है , उस समय उनको लगता है अरे इनका आशीर्वाद नहीं मिला तो जीवन में कमी रहेगी । इट मिन्स दे हैव मच इम्पारटेंस ईन सोसाइटी बट दी सोसाइटी डोंट वांट टू एकसेप्ट इट । एक बात समझ ले समीर वो कुछ भी हो , हैं तो इंसान ही न । जब लड़का-लड़की एक समान हैं तो किन्नर भी उन्हीं के समान है । दे डिसर्व ए बैटर लाईफ एंड इक्वल आॅपरचुनिटिस् ।"
रिया की बातों ने समीर के मन में हिम्मत की ज्योति जलाई और रिया का हाथ पकड़कर उसे सबके सामने काॅलेज आॅडिटोरियम में ले जाकर सबके सामने अपने लिंग , अपने वजूद का अस्तित्व बताया ।
समीर यह जानता था कि वह अब हँसी का पात्र बनेगा पर वह खुद के अस्तित्व के लिए लड़ने को तैयार हो चुका था। अब लड़ाई थी समाज में समानता की । खुलकर जीने की।
_रुचि तिवारी
Very nice story 👌👌👌
ReplyDeleteVery nice story
ReplyDeletethankyou
DeleteVery nice Being gay is not a disorder,its as normal as being straight .a human thats it
ReplyDeleteabsolutely sakshi.... and thankyou...
ReplyDeleteFantastic��❤
ReplyDeletethankyou..
DeleteYou are right
ReplyDeleteSabko samaan adhikaar hai hum are desh mai
Sirf boys ko nhin
Wah kya likha hai aap ne
ReplyDeleteSuperb yr heart touching story...
ReplyDeletethankyou
DeleteNice buddy kya likhte ho aap
ReplyDeleteIsi trh aap aage bdhte rho
thankyou
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