Monday, March 11, 2019

परीक्षा

भरे समाज उस नारी की हो रही थी बुराई ,
मैंनें भी पूँछ ही ली तुमको यह बात किसने बताई ?
माँ मुझे खींच कर तुरंत अंदर लाई ,
बोली तुझमें इतनी हिम्मत कैसे आई ?

मैं बोली , मैं कुछ समझी नहीं माई ,
कहाँ मैंनें अपनी ताकत दिखाई ?
वो बोलीं भरे समाज तूने जुबां कैसे चलाई ?
क्या तूने लाज शर्म सब है बेच खाई

मेरी आँखे तब चौंक गई ,
मैं अपनी नजरों में गिर गई ,
फिर भी मैं माँ से पूँछ गई ,
इसमें मैं क्या गलत कर गई ?

मेरा बोलना क्यों गलत है ?
लोगों का बातें बनाना क्यों नहीं ?
मेरा टोकना क्यों गलत है ?
लोगों का नज़रिया क्यों नहीं ?

माँ मेरे मन को भाप गई ,
कौतूहल को नाप गई ,
सही समय है समझ गई ,
मुझे समझाने बैठ गई ।

ओ मेरी बिटिया रानी ,
बडे़ गौर से सुनना ,
सब है तुमको समझना ,
आज नहीं तो कल दुनियादारी में है पड़ना ।

हो तुम एक नारी , हर क्षण नई परीक्षा से है गुज़रना,
पल पल राह में मिलेंगे काँटे , पथ से मत मुकरना,
बोलेंगे लोग, टोकेंगे लोग , तुम मत डरना,
उस नारी से आज सीख लो जिसके लिए तुमने शुरु किया कहना।

भटकाएँगे , धमकाएँगे, तुमको वो डराएँगे ,
ओ मेरी प्यारी बिटिया , हर बढ़ते पग पर तुमसे वो टकराएँगे,
कदम कदम तुमको वो परिक्षण कर आजमाएँगे,
जीवन एक कसौटी नाम देकर बहुत परीक्षा करवाएंगे ।

जीवन की हर परीक्षा तुमको आस निराश देगी ,
तुम थकना मत तुम रूकना मत ,
बस बढ़ती जाना,
निराशा में भी आशा जगाना , यही है जीवन की असल परिक्षा।

_ रुचि तिवारी
Instagram : ruchi_tiwari31

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