Monday, February 25, 2019

कलम के सहारे

मिनट , घंटे , दिन , हफ़्ते गुज़रे ,
न जाने कितने शब्द हमने बोले ,
शैतानियों , नादानियों में थे बिखरे ,
हाय ! कितनी मस्ती में थे उलझे ।

वो साथ में आना ,
और तेरे साथ ही जाना ,
आधे से ज्यादा समय तेरे साथ बिताना ,
हँसी खुशी वो वक्त का गुज़रना ,
और दिन का शाम में ढलना ।

तेरी अठखेलियाँ ,
मेरी शैतानियाँ,
तेरी रुसवाईयाँ ,
मेरी नादानियाँ ,
भूल सी हुई गलतियाँ ,
हाय ! तेरा बिफ़रना और मेरा मनाना ।

सुहाने दिन गुज़र रहे थे ,
हम भी तो बेबाकी से कह रहे थे ,
मंजिल की ओर चल रहे थे ,
शायद कुछ सुनकर अनसुना कर रहे थे।

क्या अनसुना किया ,
वो हर एक अल्फ़ाज़ जो आँखे चीखती रहीं ,
हम नज़रअंदाज़ करते रहे ,
अल्फ़ाज़ लबों पर तब आए नहीं ,
और फिर कलम के सहारे हम चीखते रहे।

_रुचि तिवारी



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