Wednesday, November 14, 2018

शुक्रिया दीपावली

ओ दीपावली ! तुमको शुक्रिया ।
तुमने दिल उमंग से भर दिया ।
रोशनी थी जो दीयों ने दिया
उनसे सबका घर जगमग जगमग किया।
झिलमिल झिलमिल लडी़ जली
भीनि सी खुशबु उडी़
आपस की आना कानी जली
खुशियों की एक लहर चली।
सूखे रिश्तों में महक पडी़
पास हुई मिठास जो थी कहीं दूर खड़ी
इन गूँजते मकानों में
ठहाकों की फिर आवाज खिली।
छूट गई थी यादें जो वो
सबके मिलने से ताजा हुई
कुछ पुराने किस्सों की
अलबेली ही शुरूआत हुई
मिलना सबका कुछ यूँ हुआ
रिश्तों में गहराई का खुदा कुआं
यूँ थोड़ी फुरसत अपनो को दी
खुद के भीतर ही एक रोशनी कर दी।
वो जगमग जलता दीपक
एक पाठ सीखा गया
छोटी सी है वो लौ
दूर करती है पूरे अँधेरे को वो ।
उन खट्टास को छोड़ मीठा तुम घोल गई
साल भर के लिए फिर बेशकीमती याद  दे गई ।
मिला दी एक बार फिर सबको
अब तो फुरसुत ही कहा है अपनो को ।
शुक्रिया दीपावली ! एक नई आस जगाने को।
शुक्रिया दीपावली  ! हम सबको मिलाने को ।
शुक्रिया दीपावली ! चहुँओर रोशनी जगमगाने को ।
शुक्रिया दीपावली ! खुशियाँ फैलाने को।
               
                                            _ रूचि तिवारी

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