26 अक्टूबर 2018 तक नवरात्रि को बीते सिर्फ़ 7 दिन ही हुए थे । फिर भी नवरात्रि का उमंग लोगों में भरा हुआ है । 27 अक्टूबर 2018 को खबर आई कि शहडोल जिला के अमलाई थाना अंतर्गत रूगंठा नर्सरी स्कूल के समीप स्कूल जा रही कक्षा 8वीं की छात्रा के साथ उसी के मोहल्ले के रहवासी युवक ने घिनौनी वारदात को अंजाम दिया ।
अजीब है न , सिर्फ़ 8~10 दिन ही तो हुए हैं । अभी की ही तो बात थी पूरा देश नवरात्रि मना रहा था । हर कोई कन्यापूजन कर रहा था । हर एक युवक , युवतियाँ , बडे़ ~ बूढे़ सभी देवी माँ को प्रसन्न कर रहे थे । सभी बडे़ बडे़ वादे कर रहे थे। हर एक कन्या ~ लड़की को देवी माना जा रहा था । सब कुछ कितना जल्दी बिसर गया । भूला दिया जितनी भी पूजा-अर्चना , हवन किए , जितनी भी रक्षा के लिए कसमें ली थी , जितना खुद को पवित्र दर्शाया था। सच तो यह है कि वो सब सिर्फ़ दिखावा और ढकोसला था ।
यह मामला उजागर हुआ तो पता चल गया । हो सकता है ऐसी कितनी ही वारदातों को अब तक अंजाम दिया जा चुका हो जिनका पता ही न चला हो।
सच कहूँ तो इस बार नवरात्रि के समय में युवा शक्ति द्वारा नवरात्रि में बलात्कार के खिलाफ़ चलाई जा रही मुहिम , सोशल साइट की विभिन्न पोस्ट एवं स्टेट्स को ध्यान में रखते हुए ऐसी ही एक नई खबर के इंतजार में थी । भूल चूक मुझसे भी हुई हो सकती है कि इस घटना के पहले भी कोई खबर आई हो जिस तक मैं न पहुँच पाई हूँ ।
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मामले की गहराई तक जाएँ तो पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार यह पता चलता है कि शुक्रवार की सुबह बालिका अपने नियमित समय पर स्कूल जा रही थी।इसी दौरान बालिका के घर के समीप रहने वाले युवक ने आकर बालिका को लिफ्ट देने के बहाने अपनी गाड़ी पर बैठाया । और बालिका को स्कूल न ले जाकर एक सूनसान स्थान पर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया ।
बात अब यहाँ यह खड़ी हो जाती है कि एक जमाना था जब बच्चों के लिए पूरा मोहल्ला या गाँव उनका घर कहलाता था । और अपने उस मोहल्ले में सुबह से शाम कब हो जाती थी पता ही नहीं चलता था । क्या इन सब में बालिका की गलती मानी जाए ? एक ओर यहाँ भी ध्यान जाता है कि कौन अब विश्वासपात्र है कौन नहीं ? हमेशा तो सीख यही दी जाती है कि अनजान व्यक्ति बुलाए तो पास नहीं जाना , अंजान व्यक्ति कुछ खाने को दे तो खाना नहीं , अंजानो से दूर रहना इत्यादि । पर अब जो ऐसे असमाजिक तत्व पैदा हो रहे है उनका क्या ? उस 13~14 साल की बालिका तो अपने पडो़स के रहने वाले भईया की बातों में आकर स्कूल जल्दी पहुँचने की आस लिये साथ चली गई । और गलती सिर्फ़ इतनी-सी थी कि उसे यह नही सिखाया गया था कि कुछ भी हो अपने सभी कार्यों को तुम स्वयं ही करना । कोई पहचान वाला हो या अंजान हो उसके पास या साथ मत आना जाना , एक दिन की किसी की मदद तुम पर ताउम्र उपकार का बोझ बनी रहेगी। जिस तरह रोज़ जाती हो उसी तरह जाना क्योंकि एक दिन का बदलाव बहुत बडा़ बदलाव साबित हो सकता है ।
_रुचि तिवारी
नोट : इस घटना पर लेखिका के निजी विचार हैं ।
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