बेशक एक मुलाकात होगी,
किसी राह या किसी मोड़ पर,
होठों पर दबे हजार सवाल,
बाहर आने को आतुर होंगे,
उन सवालों के जवाब पाने,
जो बातों के सिलसिले में अधूरे रह गए थे।
जवाब दोनों को चाहिए,
उन सवालों के नहीं; जिन्हें पूछने पर भी जवाब नहीं मिला,
बल्कि उन सवालों के जो तुम्हें देखकर मन में उठे,
वो सवाल, जब तुमने कुछ कहा और मैं स्तब्ध रह गई थी।
मुलाकात के दौरान,
इन सभी सवालों को एक माला में पिरोकर लाउंगी,
तुम माला तोड़ना और एक-एक मोती में चीखते सवाल का जवाब देना,
फिर इस मुलाकात को मैं 'सार्थक मुलाकात' का नाम दूंगी।
- रुचि तिवारी
सार्थक मुलाक़ात की आकांक्षाओं को व्यक्त करती बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteऐसी सार्थक मुलाक़ात की उम्मीद बनी रहे। भावपूर्ण रचना। बधाई।
ReplyDeleteWwwah ��
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