तो किसी कि एक बंद कमरा।
ऐसा कमरा जहां सालों की यादें कैद हैं,
लेकिन उन यादों को जीने वाला कोई नहीं।
अब उस कमरे की ओर कोई नहीं निहारता,
कुछ पुराने सामान अब भी हैं वहां,
जिनकी शायद अब जरूरत नहीं,
इसलिए उस कमरे को निहारने की किसी को भी फुर्सत नहीं।
जिसकी जिंदगी बाजार है,
वहां रोज़ नए लोगों का आना-जाना है,
विचारों का आदान-प्रदान है,
मिलन है, स्फूर्ति है, खुशी है।
बंद कमरा एक खिड़की निहार रहा है,
रोशनी की तलाश है,
चाह है उसे किसी अपने को पाने की,
तो वहीं बाजार सुकून तलाश रहा है,
जहां दो पल उसे फुर्सत के मिलें
और वो खुद को स्थिर कर सके।
-रुचि तिवारी
अपनों की तलाश में हर ज़िन्दगी बेहाल है। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
ReplyDeleteबाज़ार और बंद कमरे के बीच ज़िन्दगी की कशमकश को बयां करती बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया👌
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