लेकर पन्ना और स्याही,
बने हैं हर सड़क के राही ,
हैं ये सबके माही ,
निकले हैं कलम के सिपाही ।
शब्दों से करते हैं ये वार ,
नहीं चाहिए और कोई औजार ,
कलम और पन्ने से इनको प्यार ,
झट से उँकेरे मन में आए सभी विचार ।
लफ्जों का होता हर पल ख्याल ,
बेबाकी से कहने पर कभी न करते ये मलाल ,
बखूबी बयां करते हैं हर हाल ,
देखो तो ज़रा इनकी खूबसूरत चाल ।
भिन्न भिन्न विधा आज़माते ,
हर विषय पर हैं चढ़ जाते ,
अनुसंधान तक है उतर आते,
लिखने को क्या नहीं कर जाते ।
जनता को अवगत हैं करवाते,
कल्पना संग सच्चाई बतलाते ,
साहित्य में संस्कृति सजाते,
यूँ हीं कलम के सिपाही नहीं कहलाते ।
निर्भीक हो कलम चलाते,
लाज अपनी दाव पर लगाते,
आँधी पानी नहीं इन्हें रोक पाते,
जब जब ये कलम चलाते ।
आलोचक ,प्रोत्साहन सब हैं मिलते,
राम राम करते हैं ये चलते ,
कभी नहीं इनके कर थकते,
न ही विचारों में जंग है लगते।
जादूगर हैं लफ्जों के,
माली हैं विधाओं के,
किसान हैं विचारों के,
सिपाही हैं ये कलम के।
_रुचि तिवारी......