एक सरल सी शब्दों की माला बनना चाहती है,
वो कविता बनना चाहती है!
शब्दों की शक्ति में खुद की आत्मा पिरोना चाहती है,
वो कविता बनना चाहती है!
सुकुन का जरिया और शख्स के लबों पर ठहरना चाहती है,
वो कविता बनना चाहती है!
शक्ति, माया, मोह, वासना, प्रेम का राग बनना चाहती है,
वो कविता बनना चाहती है!
बिन कहे भी सब कुछ कहना चाहती है,
वो कविता बनना चाहती है!
खुद के लिए प्रशंसा सुनना चाहती है,
वो कविता बनान चाहती है!
जीवन के हर रस को छंद में पीरोना चाहती है,
वो कविता बनान चाहती है!
कल्पनाओं को जीना चाहती है,
वो कविता बनान चाहती है!
बेड़ियों से दूर बस बहना चाहती है,
वो कविता बनना चाहती है!
स्याही, कलम, कागज और सपनों में रहना चाहती है,
वो कविता बनान चाहती है!
न होकर भी वो होना चाहती है,
वो कविता बनान चाहती है!
एक अमिट-अमर लफ्जों की छाप छोड़ना चाहती है,
वो कविता बनान चाहती है!
वो कविता बनान चाहती है!
अच्छा लिखा
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